ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 फरवरी से 16 फरवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

विज्ञान की अन्य विधाओं में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का अपना विशेष स्थान है। हम अक्सर शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त, शुभ विवाह के लिए सर्वोत्तम कुंडली मिलान आदि करते हैं। साथ ही हम इसकी स्वीकार्यता सुहृदय पाठकों के विवेक पर छोड़ते हैं। हमें प्रसन्नता है कि ज्योतिषाचार्य पं अनिल पाण्डेय जी ने ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के विशेष अनुरोध पर साप्ताहिक राशिफल प्रत्येक शनिवार को साझा करना स्वीकार किया है। इसके लिए हम सभी आपके हृदयतल से आभारी हैं। साथ ही हम अपने पाठकों से भी जानना चाहेंगे कि इस स्तम्भ के बारे में उनकी क्या राय है ? 

☆ ज्योतिष साहित्य ☆ साप्ताहिक राशिफल (10 फरवरी से 16 फरवरी 2025) ☆ ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय ☆

जय श्री राम। भारतवर्ष में एक ऐसा वर्ग भी है जो की भारत के पुराने ज्ञान-विज्ञान को झूठा मानता है। उसके अनुसार ज्योतिष लोगों को भ्रमित करता है। मैं पंडित अनिल पांडे ऐसे लोगों को बताना चाहता हूं कि वह इस साप्ताहिक राशिफल को लग्न राशि के अनुसार पढ़ें और देखें कि यह सत्य निकल रहा है। अगर भी अपना राशिफल चंद्र राशि देखते हैं तो भी वह 60% से ऊपर सही निकलेगा। ज्योतिष भ्रमित करने की विद्या नहीं है वरन वह बहुत आगे का विज्ञान है।

इस सप्ताह 12 फरवरी को प्रयागराज के संगम में अमृत की वर्षा होगी और एक बहुत बड़ा हिंदू जनमानस वहां पर इसका आनंद ले रहा होगा। इस सप्ताह सूर्य 13 तारीख को 2:14 AM से कुंभ राशि में प्रवेश करेगा बुध ग्रह 11 तारीख को 12:12 PM से कुंभ राशि में गोचर करने लगेगा। इसके अलावा वक्री मंगल मिथुन राशि में, गुरु वृष राशि में शुक्र और वक्री राहु मीन राशि में तथा शनि कुंभ राशि में गोचर करेंगे।

आइये अब हम राशिवार राशिफल की चर्चा करते हैं।

मेष राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का योग है। व्यापार में आपको लाभ होगा। द्वादश भाव में बैठकर शुक्र कचहरी के कार्यों में आपको सफलता दिलाएगा। परंतु उसके लिए आपको पर्याप्त परिश्रम भी करना पड़ेगा। शत्रुओं से आपको सावधान रहना चाहिए भाई बहनों के साथ संबंध थोड़े अच्छे और थोड़े खराब होंगे। आपको अपने संतान से अच्छा सहयोग प्राप्त हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 10, 11 और 12 तारीख किसी भी कार्य को करने के लिए उत्तम है। 15 और 16 तारीख को आपके कार्यों को करने के प्रति सावधानी बरतना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान शिव का दूध और जल से अभिषेक करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

वृष राशि

इस सप्ताह आपका, आपके जीवनसाथी का और आपके माता जी का स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। पिताजी के स्वास्थ्य में थोड़ी सी मानसिक परेशानी हो सकती है। आपको अपने संतान से सहयोग प्राप्त होगा। एकादश भाव में बैठकर शुक्र आपको धन लाभ दिलायेगा। व्यापार में आपको लाभ होगा। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए उपयुक्त है। सप्ताह के बाकी दिन सामान्य है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन रुद्राष्टक का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मिथुन राशि

इस सप्ताह कार्यालय में आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। लग्न में बैठे हुए मंगल के कारण आप दुर्घटनाओं से बचेंगे। आपका स्वास्थ्य सामान्य रहेगा अर्थात जैसा है वैसा ही रहेगा। आपके खर्चों में वृद्धि जारी रहेगी। सामाजिक प्रतिष्ठा ठीक रहेगी। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 फरवरी किसी भी कार्य हेतु अनुकूल है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपके कार्य करने में थोड़ा परिश्रम करना पड़ेगा। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन आदित्य स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

कर्क राशि

इस सप्ताह आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य पहले जैसा ही रहेगा। कचहरी के कार्यों में अगर आप सावधानी बरतेंगे तो आपको सफलता मिल सकती है। धन आने का योग है। भाग्य आपका भरपूर से साथ देगा। आठवें भाव में बैठे सूर्य के कारण आपको चाहिए कि आप दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करें। इस सप्ताह आपके लिए 10 फरवरी के दोपहर के बाद से तथा 11 और 12 तारीख लाभदायक है। 10 फरवरी को दोपहर तक आपको कोई भी कार्य बड़े सचेत होकर करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन भगवान सूर्य को तांबे के पत्र में जल अक्षत और लाल पुष्प डालकर जल अर्पण करें। सप्ताह का शुभ दिन सोमवार है।

सिंह राशि

इस सप्ताह आपका और आपके माता जी का स्वास्थ्य उत्तम रहेगा। पिताजी के पेट में थोड़ी समस्या हो सकती है। आपके जीवनसाथी का व्यवसाय उत्तम चलेगा। जीवनसाथी को मानसिक तनाव संभव है। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 फरवरी किसी भी कार्य को करने के लिए अनुकूल है। 10, 11 और 12 फरवरी को आपको कोई कार्य करने के पहले पूरी सावधानी बरतना चाहिए। मामूली धन आने का योग है। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गणेश अथर्व शीर्ष का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

कन्या राशि

अविवाहित जातकों के लिए यह सप्ताह उत्तम है। विवाह के कई प्रस्ताव आ सकते हैं। प्रेम संबंधों में वृद्धि संभव है। भाग्य आपका सामान्य रूप से साथ देगा। कार्यालय में आपकी स्थिति सामान्य रहेगी। आपके शत्रु इस सप्ताह आपका विरोध कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 फरवरी शुभ फलदायक है। 13 और 14 फरवरी को आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

तुला राशि

इस सप्ताह आपका और आपके पूरे परिवार का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। परिश्रम करने पर आपको निरंतर सफलताएं मिलेंगी। शत्रुओं पर आप विजय प्राप्त कर सकते हैं। परंतु इसके लिए आपको प्रयास करने होंगे। कचहरी के कार्यों में इस सप्ताह आपके रिस्क नहीं लेना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 10, 11 और 12 फरवरी कार्यों को करने के लिए फलदायक है। 15 और 16 फरवरी को आपको कार्यों को करने के पहले पूरी सावधानी बरतना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

वृश्चिक राशि

इस सप्ताह आपको अपने संतान से बहुत अच्छा सहयोग प्राप्त होगा। छात्रों की पढ़ाई उत्तम चलेगी। आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। जीवनसाथी और पिताजी का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। सूर्य को शत्रु भाव में होने के कारण आपके माताजी को मानसिक कष्ट हो सकता है। इसके अलावा इस सप्ताह आपको अपने सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रति सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 13 और 14 फरवरी परिणाम दायक हैं। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन लाल मसूर की दाल का दान करें और मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में जाकर कम से कम तीन बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। सप्ताह का शुभ दिन बृहस्पतिवार है।

धनु राशि

इस सप्ताह आपका और आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आपके भाग्य भाव को सूर्य सप्तम दृष्टि से देख रहा है। अतः भाग्य आपका साथ देगा। भाग्य से आपके कई कार्य हो सकते हैं। कार्यालय में आपको सतर्क रहना चाहिए। भाई बहनों के साथ संबंधों में तनाव हो सकता है। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 फरवरी हितवर्धक है। 10, 11 और 12 फरवरी को आपको सतर्क रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

मकर राशि

इस सप्ताह आपको धन की प्राप्ति हो सकती है। आपका व्यापार उत्तम चलेगा। भाइयों के साथ संबंध ठीक हो सकते हैं। आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। भाग्य आपका साथ देगा। नवम भाव में बैठा हुआ केतु आपको लंबी यात्राएं कर सकता है। छात्रों की पढ़ाई ठीक चलेगी। अगर आप प्रयास करेंगे तो आप शत्रुओं को समाप्त कर सकते हैं। इस सप्ताह आपके लिए 11 और 12 12 फरवरी शुभ है। 10 तारीख को दोपहर के पहले तथा 13 और 14 फरवरी को आपको सावधान रहकर कार्य करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गाय को हरा चारा खिलाएं। सप्ताह का शुभ दिन शनिवार है।

कुंभ राशि

इस सप्ताह आपके पास धन आने का अच्छा योग है। धन सभी प्रकार के रास्तों से आएगा। आपके माताजी और पिताजी का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। लग्न भाव में बैठकर बुध आपको व्यापारिक सफलता दिलाएगा। आपके जीवन साथी को भी उनके कार्यों में सफलता मिल सकती है। आपका व्यापार उत्तम चलेगा। आपको थोड़ा मानसिक कष्ट हो सकता है। इस सप्ताह आपको 13 और 14 फरवरी को विभिन्न कार्यों में सफलता प्राप्त हो सकती है। सप्ताह के बाकी दिनों में आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करें। सप्ताह का शुभ दिन शुक्रवार है।

मीन राशि

इस सप्ताह आपकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो सकती है। भाई बहनों के साथ संबंध ठीक रहेगा। कचहरी के कार्यों में सावधानी बरतने पर आपको सफलता प्राप्त हो सकती है। भाग्य आपका साथ देगा। विवाह के संबंधों में बाधा आ सकती है। प्रेम संबंधों में आपको सावधान रहना चाहिए। इस सप्ताह आपके लिए 15 और 16 फरवरी फल दायक है। 13 और 14 फरवरी को आपको सावधान रहते हुए कार्यों को करना चाहिए। इस सप्ताह आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन घर की बनी पहली रोटी गौ माता को दें। सप्ताह का शुभ दिन रविवार है।

 

ध्यान दें कि यह सामान्य भविष्यवाणी है। अगर आप व्यक्तिगत और सटीक भविष्वाणी जानना चाहते हैं तो आपको मुझसे दूरभाष पर या व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाना चाहिए। मां शारदा से प्रार्थना है या आप सदैव स्वस्थ सुखी और संपन्न रहें। जय मां शारदा।

 राशि चिन्ह साभार – List Of Zodiac Signs In Marathi | बारा राशी नावे व चिन्हे (lovequotesking.com)

निवेदक:-

ज्योतिषाचार्य पं अनिल कुमार पाण्डेय

(प्रश्न कुंडली विशेषज्ञ और वास्तु शास्त्री)

सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, मध्यप्रदेश विद्युत् मंडल 

संपर्क – साकेत धाम कॉलोनी, मकरोनिया, सागर- 470004 मध्यप्रदेश 

मो – 8959594400

ईमेल – 

यूट्यूब चैनल >> आसरा ज्योतिष 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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हिन्दी साहित्य – संस्मरण ☆ साहित्य से दोस्ती : विकास नारायण राय ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

श्री कमलेश भारतीय 

(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)

☆ संस्मरण – साहित्य से दोस्ती : विकास नारायण राय ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆

आज एक ऐसे व्यक्तित्व को याद करने जा रहा हूँ, जिन्होंने अपने दम पर ‘ साहित्य से दोस्ती’ जैसी मुहिम चलाई ।इसी के अंतर्गत कभी ‘ प्रेमचंद से दोस्ती’ तो कभी अम्बेडकर, तो कभी छोटूराम से दोस्ती जैसे अभियान चलाये और पूरा हरियाणा नाप दिया, पाट दिया साहित्य से दोस्ती के नाम पर !

इनसे मुलाकात तो हिसार के पुलिस पब्लिक स्कूल में हुई, जब मुझे बच्चों द्वारा लिखित कथा प्रतियोगिता के सम्मान समारोह में छोटी बेटी प्राची के चलते जाना पड़ा और पूरा समारोह ऐसे आयोजित किया गया, जैसे वरिष्ठ लेखकों को पुरस्कार बांटे जा रहे हों ! तभी कुछ कुछ हमारी भी दोस्ती इनसे हो गयी थी । उन दिनों वे करनाल के शायद मधुवन में उच्च पुलिस अधिकारी थे और अपने कड़क स्वभाव के लिए जाने जाते थे लेकिन साहित्य के लिए उनका दिल बहुत ही संवेदनशील था और आज भी है।

साहित्य से दोस्ती से पहले सन् 1992 -1993 के आसपास श्री राय ने ‘साहित्य उपक्रम’ नाम से एक प्रकाशन शुरू किया था और इसके तुरंत बाद ‘साहित्य से दोस्ती’ मुहिम भी चला दी । इसमें प्रेमचंद, भगत सिंह, छोटूराम व अम्बेडकर से दोस्ती जैसे अनेक अभियान चलाये । एक वैन किताबों से भरी चलती थी, जिसमें इनके मिशन के अनुसार सस्ते मूल्य पर अच्छी साहित्यिक किताबें उपलब्ध रहती थीं। जैसे कभी एनबीटी और रुसी साहित्य की पुस्तकें आसानी से मिलती थीं ।

आखिर ऐसा अभियान क्या चलाया ?

हमारे समय में कितनी ही समस्याएं हैं , जैसे कन्या भ्रूण हत्या, साम्प्रदायिक और प्रकृति को बचाने जैसी अनेक समस्याएं हैं ओर नयी पीढ़ी को इनके प्रति संवेदनशील बनाना ही इन दोस्तियों का मूल उद्देश्य रहा और आज भी है। किताबें आम आदमी की पाॅकेट को देखकर ही प्रकाशित की जानी चाहिएं और उपलब्ध होनी चाहिएं।

जब इनसे करनाल के पाश पुस्तकलय के बारे में पूछा तब श्री राय ने बताया कि आतंकवाद के दौरान हरियाणा पुलिस के दो अधिकारी और दो सिपाही पटियाला में शहीद हो गये थे । इनकी स्मृति में यह विचार चला कि या तो अस्पताल बनाया जाये या फिर पुस्तकालय ! आखिरकार फेसला पाश पुस्तकालय बनाने का हुआ ।  बहुत संवेदना और भाव से यह पुस्तकालय बनाया गया लेकिन समय के साथ साथ इसकी उपयोगिता पर सवाल उठे और आखिरकार इसे बंद कर दिया गया पर इससे हमारा अभियान खत्म नहीं हुआ । ‘साहित्य उपक्रम’ प्रकाशन आज भी चल रहा है ! आजकल श्री राय फरीदाबाद रहते हैं और वही कुछ न कुछ लिखते पढ़ते रहते हैं। यह साहित्य से दोस्ती पता नहीं हरियाणा में कितने लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम करती आ रही है ! यह दोस्ती ज़िदाबाद ! लोगों के बीच किताबें लेकर जाते रहेंगे ! यह विश्वास दिलाते हैं वी एन राय ने ताकि बच्चे अपने समाज और अपनी समस्याएं को समझ सकें!

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी

संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१२ ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१२ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

विरूपाक्ष मंदिर

बस से उतरकर सबसे पहले विरूपाक्ष मंदिर पहुंचे। विरुपाक्ष मंदिर खंडहरों के बीच बचा रह गया था। अभी भी यहाँ पूजा होती है। यह भगवान शिव को समर्पित है, जिन्हें यहां विरुपाक्ष-पम्पा पथी के नाम से जाना जाता है। शिव “विरुपाक्ष” के नाम से जाने जाते हैं। यह मंदिर  तुंगभद्रा नदी के तट पर है। विरुपाक्ष अर्थात् विरूप अक्ष, विरूप का अर्थ है कोई रूप नहीं, और अक्ष का अर्थ है आंखें। इसका अर्थ हुआ बिना आँख वाली दृष्टि। जब आप थोड़ा और गहराई में जाते हैं, तो आप देखते हैं कि चेतना आँखों के बिना देख सकती है, त्वचा के बिना महसूस कर सकती है, जीभ के बिना स्वाद ले सकती है और कानों के बिना सुन सकती है। ऐसी चीजें गहरी ‘समाधि’ में सपनों की तरह ही घटित होने लगती हैं। चेतना अमूर्त है। आप पांच इंद्रियों में से किसी के भी बिना सपने देखते हैं; सूंघते हैं, चखते हैं, आप सब कुछ करते हैं ना? तो विरुपाक्ष वह चेतना है जिसकी आंखें तो हैं लेकिन मूर्त आकार नहीं है।  समस्त ब्रह्मांड में शिव चेतना बिना किसी आकार के जड़ को चेतन करती है, जैसे बिजली दिखाई नहीं देती मगर पंखे को घुमाने लगती है। छठी इंद्रिय का अतीन्द्रिय अहसास ही विरूपाक्ष है। इंद्र की पाँच इन्द्रियों से परे छठी इन्द्रिय का मनोवैज्ञानिक सिद्धांत तो बहुत बाद उन्नीसवीं सदी में सिग्मंड फ्रॉड के अध्ययन के बाद आया। उसके बहुत पहले विरुपाक्ष चेतन शिव की मूर्ति बन चुकी थी।

विरूपाक्ष मंदिर का इतिहास लगभग 7वीं शताब्दी से अबाधित है। विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य-2 ने करवाया था जो इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था। पुरातात्विक अध्ययन से इसे बारहवीं सदी के पूर्व का बताया गया है। विरुपाक्ष-पम्पा विजयनगर राजधानी के स्थित होने से बहुत पहले से अस्तित्व में था। शिव से संबंधित शिलालेख 9वीं और 10वीं शताब्दी के हैं। जो एक छोटे से मंदिर के रूप में शुरू हुआ वह विजयनगर शासकों के अधीन एक बड़े परिसर में बदल गया। साक्ष्य इंगित करते हैं कि चालुक्य और होयसल काल के अंत में मंदिर में कुछ अतिरिक्त निर्माण किए गए थे, हालांकि अधिकांश मंदिर भवनों का श्रेय विजयनगर काल को दिया जाता है। विशाल मंदिर भवन का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के शासक देव राय द्वितीय के अधीन एक सरदार, लक्कना दंडेशा द्वारा किया गया था।

विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर का निर्माण और विस्तार किया। मंदिर के हॉल में संगीत, नृत्य, नाटक, और देवताओं के विवाह से जुड़े कार्यक्रम आयोजित होते थे। विरुपाक्ष मंदिर में  शिव, पम्पा और दुर्गा मंदिरों के कुछ हिस्से 11वीं शताब्दी में मौजूद थे। इसका विस्तार विजयनगर युग के दौरान किया गया था। यह मंदिर छोटे मंदिरों का एक समूह है, एक नियमित रूप से रंगा हुआ, 160 फीट ऊंचा गोपुरम, अद्वैत वेदांत परंपरा के विद्यारण्य को समर्पित एक हिंदू मठ, एक पानी की टंकी, एक रसोई, अन्य स्मारक और 2,460 फीट लंबा खंडहर पत्थर से बनी दुकानों का बाजार, जिसके पूर्वी छोर पर एक नंदी मंदिर है।

विरुपाक्ष मंदिर को द्रविड़ शैली में बनाया गया है। द्रविड़ शैली के मंदिरों की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं कि ये मंदिर आमतौर पर आयताकार प्रांगण में बने होते हैं। इन मंदिरों का आधार वर्गाकार होता है और शिखर पिरामिडनुमा होता है। इन मंदिरों के शिखर के ऊपर स्तूपिका बनी होती है। इन मंदिरों के प्रवेश द्वार को गोपुरम कहते हैं। इस मंदिर की सबसे खास विशेषताओं में, इसे बनाने और सजाने के लिए गणितीय अवधारणाओं का उपयोग हुआ है। मंदिर का मुख्य आकार त्रिकोणीय है। जैसे ही आप मंदिर के शीर्ष को देखते हैं, पैटर्न विभाजित हो जाते हैं और खुद को दोहराते हैं। इस मंदिर की मुख्य विशेषता यहां का शिवलिंग है जो दक्षिण की ओर झुका हुआ है। इसी प्रकार यहां के पेड़ों की प्रकृति भी दक्षिण की ओर झुकने की है।

तुंगभद्रा नदी से उत्तर की ओर एक गोपुरम जिसे कनकगिरि गोपुर के नाम से जाना जाता है। हमने तुंगभद्रा नदी की तरफ़ से कनकगिरि गोपुर से मंदिर प्रांगण में प्रवेश किया। द्वार पर द्वारपालों की मूर्तियां हैं। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है, जो शिव और पम्पा देवी मंदिरों के गर्भगृहों को सूर्योदय की ओर संरेखित करता हैं। एक बड़ा पिरामिडनुमा गोपुरम है। जिसमें खंभों वाली मंजिलें हैं जिनमें से प्रत्येक पर कामुक मूर्तियों सहित कलाकृतियां हैं। गोपुरम एक आयताकार प्रांगण की ओर जाता है जो एक अन्य छोटे गोपुरम में समाप्त होता है। इसके दक्षिण की ओर 100-स्तंभों वाला एक हॉल है जिसमें प्रत्येक स्तंभ के चारों तरफ हिंदू-संबंधित नक्काशी है। इस सार्वजनिक हॉल से जुड़ा एक सामुदायिक रसोईघर है, जो अन्य प्रमुख हम्पी मंदिरों में पाया जाता है। रसोई और भोजन कक्ष तक पानी पहुंचाने के लिए चट्टान में एक चैनल काटा गया है। छोटे गोपुरम के बाद के आंगन में दीपा-स्तंभ  और नंदी हैं।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 146 ☆ गीत – ।। कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 146 ☆

☆ गीत – ।। कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।

हर जीवन में आती खुशी गम यही इसका तंत्र है।।

मुश्किलों के सफर में राह आपने खुद ही बनानी है।

अपने अरमानों की   महफिल खुद ही सजानी है।।

आपका आत्मविश्वास ही बनता सफलता का यंत्र है।

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।।

*

ज़ख्म कितने भी   गहरें हों दुनिया को बताना नहीं है।

दिखा के जख्म अपने दुनिया वालों की दवा पाना नहीं है।।

जब हम अपने रास्ते खुद चुन सकें तभी हम स्वतंत्र हैं।

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।।

*

कभी हारना कभी जीतना  यही जीवन की चाल है।

कभी दया की भावना कभी गुस्से का आता उबाल है।।

मानवता की हार सबसे बड़ी जब हम होते परतंत्र हैं।

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।।

*

व्यक्ति से समाज  समाज से देश का निर्माण होता है।

आत्मनिर्भर राष्ट्र लिए हर कठिनाई का समाधान होता है।।

अनुशासन समर्पित नागरिक से बनता सच्चा लोकतंत्र है।

कभी पाना कभी खोना यही जीवन का मंत्र है।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा #212 ☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – कविता – बापू का सपना… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – बापू का सपना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 212 ☆

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – बापू का सपना…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

बापू का सपना था—भारत में होगा जब अपना राज ।

गाँव-गाँव में हर गरीब के दुख का होगा सही इलाज ॥

*

कोई न होगा नंगा – भूखा, कोई न तब होगा मोहताज ।

राम राज्य की सुख-सुविधाएँ देगा सबको सफल स्वराज ॥

*

पर यह क्या बापू गये उनके साथ गये उनके अरमान।

रहा न अब नेताओं को भी उनके उपदेशों का ध्यान ॥

*

गाँधी कोई भगवान नहीं थे, वे भी थे हमसे इन्सान ।

किन्तु विचारों औ’ कर्मों से वे इतने बन गये महान् ॥

*

बहुत जरूरी यदि हम सबको देना है उनको सन्मान ।

हम उनका जीवन  समझें, करे काम कुछ उन्हीं समान ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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मराठी साहित्य – विविधा ☆ गीता जशी समजली तशी… भाग – ७ ☆ सौ शालिनी जोशी ☆

सौ शालिनी जोशी

🔅 विविधा 🔅

☆ गीता जशी समजली तशी… भाग – ७  – गीता — श्रीकृष्णाची वाङ्मय मूर्ती ☆ सौ शालिनी जोशी

मूर्ती ही एखाद्या व्यक्तीची प्रतिमा असते. तिला रंग, रूप, आकार असतो. त्यावरून त्या व्यक्तीचे बाह्य रूप समजू शकते. ती निर्जीव असते. आचार, विचार कळू शकत नाहीत. तेव्हा एखाद्या व्यक्तीने तिच्या वाणीने म्हणजे तिच्या शब्दांत सांगितलेले विचार म्हणजे त्या व्यक्तीची वाणीरूप मूर्ती. म्हणजे संत महात्म्यानी केलेला उपदेश, त्यांचे विचार ते गेले तरी ग्रंथ रूपाने लोकांपर्यंत पोहोचतात. म्हणून त्यांच्या ग्रंथांना त्यांची वाङ्मय मूर्ती म्हणतात. ज्ञानेश्वरी ज्ञानेश्वरांची, आत्माराम- दासबोध समर्थांची आणि गाथा ही तुकारामांची वाङ्मम मूर्ती होय. म्हणून समर्थ रामदास शिष्यांना सांगतात, ‘ आत्माराम दासबोधl माझे स्वरूप स्वतः सिद्धll असता न करावा खेदl भक्तजनीll’ तर ज्ञानेश्वर ज्ञानेश्वरीच्या शेवटी म्हणतात, ‘ पुढती पुढती पुढतीl इया ग्रंथ पुण्य संपत्तीll सर्व सुखी सर्व भूतीl संपूर्ण होईजोll’ (ज्ञा. १८/१८०९)

तशीच गीता ही श्रीकृष्णाची वाङ्मयमूर्ती. त्याविषयी सांगण्याचा हा प्रयत्न.

श्रीकृष्ण कौरव पांडवांच्या युद्ध प्रसंगी अर्जुनाचा सारथी म्हणून रणांगणावरती उतरले. युद्धात भाग घेणार नाही अशी प्रतिज्ञा. पण पांडवांच्या बाजूने त्यांनीच प्रथम पांचजन्य शंख फुंकला. आणि ते ऋषिकेश (इंद्रीयांचा स्वामी, ऋषिक- इंद्रिय) अर्जुनाच्या इंद्रियांचा स्वामी झाले. रणांगणावर नातेवाईकांना व गुरुना पाहून अर्जुनाला त्यांच्याविषयीच्या मोहाने ग्रासले. पापा पासूनचे विचार धर्मनाशापर्यंत पोहोचले. तरीही श्रीकृष्ण शांत होते. त्यांनी अर्जुनाचे म्हणणे ऐकून घेतले. अर्जुनाच्या हातातील धनुष्य गळून पडले. तो संन्यासाची भाषा बोलू लागला आणि शेवटी श्रीकृष्णाचे शिष्यत्व पत्करले. तेव्हा श्रीकृष्णानी आपले प्रयत्न सुरू केले. अर्जुनाची वीरश्री जागृत करायचा प्रयत्न केला. पण अर्जुन मोहरूपी चिखलात अधिकच रुतत आहे असे पाहून, असा मोहरुप रोग त्याला कधीच होऊ नये या दृष्टीने उपदेशाला सुरुवात केली. विचार केला, आचरण केले आणि मग सांगितले असा हा उपदेश.

आत्म्याचे अविनाशित्व, देहाची क्षणभंगूरता, स्वधर्माची अपरिहार्यता, क्षत्रियांचे कर्तव्य व जबाबदारी, निष्कामकर्माची महती अशा वरच्या वरच्या श्रेणीत उपदेश सुरू केला. लोकसंग्रहाचा विचार, यज्ञाच्या व संन्याशाच्या जुन्या कल्पनात बदल, ज्येष्ठांचे आचरण, निष्काम कर्म सांगून मी स्वतः असे आचरण करतो, दृष्टांच्या नाशासाठी व सज्जनांच्या रक्षणासाठी अवतार घेतो. असे सांगून आपला आदर्श त्याच्या पुढे ठेवला. हळूहळू आपल्या भगवंत रूपाची जाणीव करून दिली. निर्गुण निराकार असून जगाची उत्पत्ती, स्थिती, लय करणारा, भक्तांचा योगक्षेम चालविणारा, सृष्टीचे चक्र चालवणारा, सर्वांचे गंतव्य स्थान मीच आहे. सर्व व्यापकत्व स्पष्ट केले. विश्वरुप दाखवले. दैवी गुणांचे श्रेष्ठत्व पटवून दिले. स्थितप्रज्ञ, जीवनमुक्त, ज्ञानी भक्त यांचे आदर्श त्याच्या समोर ठेवले. त्यामुळे मोहाच्या पलीकडे जाऊन अर्जुन युद्धाला तयार झाला. तशी कबुली त्याने दिली. गीतोपदेशाचे सार्थक झाले. सर्वांसाठी सर्वकाळी अमर असा हा उपदेश, युद्धभूमीवर केवळ ४० मिनिटात श्रीकृष्णाने अर्जुनाला केला. आणि ‘यथेच्छसि तथा कुरु’ असे स्वातंत्र्य ही त्याला दिले.

आपल्याही जीवनात असे मोहाचे प्रसंग येत असतात खरं पाहता आपण सारे अर्जुन आहोत. तेव्हा प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण आपल्यासमोर नसले तरी हृदयात आहेत, मार्ग दाखवण्यास सज्ज आहेत, त्यांची गीता समोर आहे. तिचा आधार घेऊन जीवनाचे सूत्र त्या श्रीकृष्णाच्या हाती देवून संकट मुक्त व्हावे. अशी ही गीता म्हणून भगवंतांची वाङ्मय मूर्ती होते. साधकाने जीवन कसे जगावे सांगणारी जीवन गीता.

शंकराचार्य गीता महात्म्यात म्हणतात, ‘ सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपाल नंदन:l पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्ll उपनिषद या गायी, श्रीकृष्ण हा दोहन करणारा गवळी, अर्जुन गीतामृत पिणारे वासरू. हा दृष्टांतच गीता ही श्रीकृष्णाची वाङ्मयमूर्ती आहे सांगायला पुरेसा आहे. गीता ही श्रीविष्णूच्या मुखकमलातून निघालेले शास्त्र आहे. त्यामुळे इतर शास्त्रांच्या अभ्यासाची गरज नाही. हेच सर्व शास्त्रांचे शास्त्र. खचलेल्या मनाला उभारणी देणारं, मन बुद्धीचा समन्वय साधणार मानसशास्त्र आहे. योग्य सात्विक आहार व त्याचे फायदे सांगणार आहारशास्त्र आहे. युक्त आहार, विहार, झोप आणि जागृती यांचे फायदे सांगणारे आचरण शास्त्र आहे. नेत्यांची जबाबदारी आणि समाजातील सर्व घटकांना त्यांची कर्तव्य सांगणारं, सर्व जाती, धर्म, स्त्रिया यांना समान लेखणारं समाजशास्त्र आहे. पंचभूतात्मक सृष्टीचे ज्ञान करून देणारे विज्ञान शास्त्र, ‘उतिष्ठ, युद्धस्व’ सांगून प्रसंगाला धैर्याने तोंड देण्यास सांगणारे विवेक शास्त्र आहे. तसेच सर्वाभूती ईश्वर सांगणारे समत्व शास्त्र आहे आणि सर्वात मुख्य म्हणजे आत्मज्ञान करून देणारं आत्मशास्त्र आहे. सर्व योगही कर्म, ज्ञान, भक्ती येथे एकोप्याने नांदतात. कारण व परिणाम सूत्र पद्धतीने मांडले आहेत. कोणतीही सक्ती नाही. अंधश्रद्धा नाही. पण शास्त्राप्रमाणे कर्तव्य करायचा आग्रह आहे. अर्जुनाचे दोष सांगण्याचा स्पष्टपणा आहे आणि स्वतःचे कर्तव्य ही सांगितले आहे. स्वतः केले, आचारले मग सांगितले असा हा उपदेश. अर्जुनाच्या मनात कधीही परत संभ्रम होऊ नये असा रामबाण उपाय. सर्व द्वंद्वातून मुक्त करून नराचा नारायण करणारा हा संवाद. वरवर प्रासंगिक वाटला तरी तसा नाही. सर्वकाली, सर्व जगाच्या कल्याणाचा आहे. श्रीकृष्ण योगेश्वर अर्जुनाचे निमित्त्य करून सर्व जगाचे साकडे फेडतात. कर्म बंधनात न अडकता कर्म करण्याची वेगळी दृष्टी जगाला देतात. कर्म हीच पूजा झाली. ज्ञानेश्वर ज्ञानेश्वरीत म्हणतात, ‘म्हणौनि मज काहीl समर्थनी आता विषो नाही l गीता जाणा हे वाङ्मयीl श्रीमूर्ति प्रभूचीll (ज्ञा. १८/१६८४)

अशी ही गीता ५००० वर्षे झाली तरी तिचे महत्त्व कमी झाले नाही. सर्व काळी सर्व लोकांना ती मार्गदर्शक आहे. सर्व मानव जातीच्या कल्याणासाठी आहे. मानवाच्या आयुष्यातील कसोटीच्या वेळी योग्य मार्गदर्शन करणारा हा ग्रंथ म्हणजे भारताची वैचारिक संपत्तीच आहे. अन्यायाविरुद्ध लढण्याचे सामर्थ्य, धैर्य देणारी गीता हातात घेऊन अनेक क्रांतिकारकांनी प्राणांचे बलिदान केले. यशाची प्रेरणा देणारी तीच आहे. म्हणून अनेक खेळाडूही यशाचे कारण गीता सांगतात. कितीतरी विद्वान, तत्वज्ञानी, शास्त्रज्ञ गीतेचा अभ्यास करतात व केला आहे. देशी-परदेशी विद्वानांवर तिचा प्रभाव आहे. विविध भाषेत भाषांतर होत आहे. झाली आहेत. असे हे अध्यात्म प्रधान, नीतिशास्त्र भारताचा राष्ट्रीय ग्रंथ आहे. अभिमानाने गीता ग्रंथ आपण परदेशी पाहुण्यांना भेट देतो. पंतप्रधान मोदींनी ही पद्धत सुरू केली. कारण गीता ही प्रत्यक्ष भगवंताची वाङ्मयमूर्ती!

©  सौ. शालिनी जोशी

संपर्क – फ्लेट न .3 .राधाप्रिया  टेरेसेस, समर्थपथ, प्रतिज्ञा मंगल कार्यालयाजवळ, कर्वेनगर, पुणे, 411052.

मोबाईल नं.—9850909383

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ.उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ.मंजुषा मुळे/सौ.गौरी गाडेकर≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #266 ☆ ख़ामोशियों का सबब… ☆ डॉ. मुक्ता ☆

डॉ. मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से  हम  आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की मानवीय जीवन पर आधारित एक विचारणीय आलेख ख़ामोशियों का सबब। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की  लेखनी को  इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य  # 266 ☆

☆ ख़ामोशियों का सबब… ☆

‘कुछ वक्त ख़ामोश होकर भी देख लिया हमने /  फिर मालूम हुआ कि लोग सच में भूल जाते हैं’ गुलज़ार का यह कथन शाश्वत् सत्य है और आजकल ज़माने का भी यही चलन है। ख़ामोशियाँ बोलती हैं, जब तक आप गतिशील रहते हैं। जब आप चिंतन-मनन में लीन हो जाते हैं, समाधिस्थ अर्थात् ख़ामोश हो जाते हैं, तो लोग आपसे बात तक करने की ज़ेहमत भी नहीं उठाते। वे आपको विस्मृत कर देते हैं, जैसे आपका उनसे कभी संबंध ही ना रहा हो। वैसे भी आजकल के संबंध रिवाल्विंग चेयर की भांति होते हैं। आपने तनिक नज़रें घुमाई कि सारा परिदृश्य ही परिवर्तित हो जाता है। अक्सर कहा जाता है ‘आउट ऑफ साइट, आउट ऑफ माइंड।’ जी हाँ! आप दृष्टि से ओझल क्या हुए, मनोमस्तिष्क से भी सदैव के लिए ओझल हो जाते हैं।

सुना था ख़ामोशियाँ बोलती है। जी हाँ! जब आप ध्यानस्थ होते हैं, तो मौन हो जाते हैं और बहुत से विचित्र दृश्य आपको दिखाई देने पड़ते हैं और बहुत से रहस्य आपके सम्मुख उजागर होने लगते हैं। उस स्थिति में अनहद नाद के स्वर सुनाई पड़ने लगते हैं तथा आप अपनी सुधबुध खो बैठते हैं। दूसरी ओर यदि आप चंद दिनों तक ख़ामोश अर्थात् मौन हो जाते हैं, तो लोग आपको भुला देते हैं। यह अवसरवादिता का युग है। जब तक आप दूसरों के लिए उपयोगी है, आपका अस्तित्व है, वजूद है और लोग आपको अहमियत प्रदान करते हैं। जब उनका स्वार्थ सिद्ध हो हो जाता है, मनोरथ पूरा हो जाता है, वे आपको दूध से मक्खी की भांति निकाल फेंक देते हैं। वैसे भी एक अंतराल के पश्चात् सब फ्यूज़्ड बल्ब हो जाते हैं, छोटे-बड़े का भेद समाप्त हो जाता है और सब चलते-फिरते पुतले नज़र आने लगते हैं अर्थात् अस्तित्वहीन हो जाते हैं। ना उनका घर में कोई महत्व रहता है, ना ही घर से बाहर, मानो वे पंखविहीन पक्षी की भांति हो जाते हैं, जिन्हें सोचने-समझने व निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता।

बच्चे अपने परिवार में मग्न हो जाते हैं और आप घर में अनुपयोगी सामान की भांति एक कोने में पड़े रहते हैं। आपको किसी भी मामले में हस्तक्षेप करने व सुझाव देने का अधिकार नहीं रहता। यदि आप कुछ कहना भी चाहते हैं, तो ख़ामोश रहने का संदेश नहीं; आदेश दिया जाता है और आप मौन रहने को विवश हो जाते हैं।  ख़ामोशियों से बातें करना आपकी दिनचर्या में शामिल हो जाता है। आपको आग़ाह कर दिया जाता है कि आप अपने ढंग व इच्छा से अपनी ज़िंदगी जी चुके हैं, अब हमें अपनी ज़िंदगी चैन-औ-सुक़ून से बसर करने दो। यदि आप में संयम है, तो ठीक है, नहीं है, तो आपको घर से बाहर अर्थात् वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा दिया जाता है। वहाँ आपको हर पल प्रतीक्षा रहती हैं उन अपनों की, आत्मजों की, परिजनों की और वे उनकी एक झलक पाने को लालायित रहते हैं और एक दिन सदा के लिए ख़ामोश हो जाते हैं और इस मिथ्या जहान से रुख़्सत हो जाते हैं।

अतीत बदल नहीं सकता और चिंता भविष्य को संवार नहीं सकती। इसलिए भविष्य का आनंद लेना ही श्रेयस्कर है। उसमें जीवन का सच्चा सुख निहित है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसलिए ‘जो पीछे छूट गया है, उसका शोक मनाने की जगह जो आपके पास है, आपका अपना है; उसका आनंद उठाना सीखें’, क्योंकि ‘ढल जाती है हर चीज़ अपने वक्त पर / बस व्यवहार और लगाव ही है / जो कभी बूढ़ा नहीं होता। किसी को समझने के लिए भाषा की आवश्यकता नहीं होती, कभी-कभी उसका व्यवहार बहुत कुछ कह देता है। मनुष्य जैसे ही अपने व्यवहार में उदारता व प्रेम का समावेश करता है, उसके आसपास का जगत् सुंदर हो जाता है।

●●●●

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत, पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी

23.2.24

संपर्क – #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com, मो• न•…8588801878

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रचना संसार #39 – गीत – बलिदानों की पुण्य भूमि… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ☆

सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीतबलिदानों की पुण्य भूमि

? रचना संसार # 39 – गीत – बलिदानों की पुण्य भूमि…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

 बलिदानों की पुण्य भूमि को,

नमन समर्पित भाव करो।

वीर शिवाजी के वंशज हम

दुश्मन का घेराव करो ।।

 **

वीरों की गाथा तुम गाओ,

कुर्बानी को मान मिले।

धरती ये राणा प्रताप की

वीरों की पहचान मिले।।

रहो यहाँ मिलजुल- कर सबसे

नित अच्छा बर्ताव करो।

 *

 बलिदानों की पुण्य भूमि को

 नमन समर्पित भाव करो।।

 **

 वीर सिपाही हो भारत के,

 दुश्मन पे हो वार सदा।

 करते गद्दारी जो हम से

 उनका भी संहार सदा।।

 हमें जान से प्यारी धरती,

 छाती पर मत घाव करो।

 *

  बलिदानों की पुण्य भूमि को

  नमन समर्पित भाव करो।।

 **

 मानवता का पाठ पढ़ाओ,

 सदा शांति उद्घोष रहे।

 कर्मों की गीता समझा दो,

 सच का ही जयघोष रहे।।

जन्म भूमि पर जान लुटादो,

 जीवन में बदलाव करो ।

 *

 बलिदानों की पुण्य भूमि को,

 नमन समर्पित भाव करो।।

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #266 ☆ गीत – बसंत ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपका  गीत – बसंत)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 266 – साहित्य निकुंज ☆

☆ गीत – बसंत ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

जो पिया की नजर प्यार से पा गया   

बसंती पवन संग लहरा गया.

*

 सज रही है धरा में पीली चुनरी

हवा में मधुर घोल  घुलता गया

गीत गाती टहनियां झूमती बाग़ में

बाहों में आके तेरी सिमटता गया

*

सजी धूप पीली लहर खेत में

गुलाबो में प्यार का रंग छा गया

गगन की भी रंगत निखरने लगी

रंग बसंत का बातों में आता गया  .

*

झनझनाती है पायल कहे चूड़ियाँ

राग कोयल की मैं गुनगुनाता गया

चली है हवा सनसनी प्यार की

बसंती बयार में खोता गया..

*

सुन रहे हो मेरे प्यार के गीत को

भावों की मैं सरिता सजाता  गया

ओढ़ ली है बसंती चुनरिया तूने

मैं तो तेरी ही सुध में  खोता गया।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ इंद्रधनुष #248 ☆ संतोष के दोहे – महाकुंभ ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष” ☆

श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है संतोष के दोहे – महाकुंभ  आप  श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

 ☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 248 ☆

☆ संतोष के दोहे – महाकुंभ ☆ श्री संतोष नेमा ☆

सरस्वती भागीरथी, कालिंदी के घाट।

महाकुंभ संक्रांति का, संगम पर्व विराट

*

इक डुबकी से मिट रहे, सौ जन्मों के पाप

सच्चे मन से आइए, एक बार बस आप

*

अमृतमयी अवगाह का, संगम में आगाज

तीर्थ राज के घाट पर, आगत संत समाज

*

संगम में होता नहीं, ऊंच नीच का भेद

मान सभी का हो यहाँ, रहे न कोई खेद

*

होता संगम में खतम, जन्म-मृत्यु का फेर

सागर मंथन से गिरा, जहाँ अमृत का ढेर

*

साहित्यिक उत्कर्ष की, है पुनीत पहचान

गंगा- जमुना संस्कृति, तीरथराज महान

*

श्रद्धा से तीरथ करें, कहते तीरथराज

काशी मोक्ष प्रदायिनी, सफल करे सब काज

*

चारि पदारथ हैं जहाँ, ऐसे तीरथराज

करें अनुसरण धर्म का, हो कृतकृत्य समाज

*

स्वयं राम रघुवीर ने, किया जहाँ अस्नान

पूजन अर्चन वंदना, संगम बड़ा महान

*

सुख – दुःख का संगम यहाँ, पूजन अर्चन ध्यान

तर्पण पितरों का करें, पिंडदान अस्नान

*

महाकुंभ में आ रहे, नागा साधू संत

जिनका गौरव है अमिट, महिमा जिनकी अनंत

*

नागा साधू संत जन, जिनके दरश महान

करें त्रिवेणी घाट में, जो पहले अस्नान

*

महिमा संगम की बड़ी, कह न सके संतोष

तीर्थराज दुख विघ्न हर, दूर करो सब दोष

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 70003619839300101799

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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