मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 50 – आम्ही भाग्यवंत ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है  आपका  एक अत्यंत भावप्रवण  कविता  ” आम्ही भाग्यवंत”।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 50 ☆

☆ आम्ही भाग्यवंत ☆

 

नुरलिसे जीवा खंत।

धन्य आम्ही भाग्यवंत।।१।।

 

प्रेम संस्काराने न्हालो

यशवंत आम्ही झालो  ।।२।।

 

ओठी अमृताची गोडी

जन मना नित्य जोडी।।३।।

 

संगे गोपाळांचा मेळा

विठू जणू हा सावळा।।४।।

 

लुटे ज्ञानाची शिदोरी

वसे शिष्यांच्या आंतरी।।५।।

 

घाली मायेची पाखर।

बाणा परि कणखर ।।६।।

 

यशवंत भविष्याची।

गुरुकिल्ली शिक्षणाची  ।।७।।

 

उभा पाठी हिमालय।

बाबा जणू देवालय ।।८।।

 

प्रेम कोष उधळून।

गेला निर्मोही सोडून ।।९।।

 

साद घाली वेडे मन

यावे तोडुनी बंधन।।१०।।

 

माय पित्याविन दीन

होऊ कशी पायी लीन।।११।।

 

रंजना लसणे

आखाडा बाळापूर

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 57 ☆ व्यंग्य – सब मर्ज़ों की एक दवा ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है  एक अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘सब मर्ज़ों की एक दवा’।  यह जीवन का सत्य है कि सब मर्ज़ों की एक ही दवा  है और यह एक गरीबदास है जो मानने को तैयार ही नहीं है।  इस अतिसुन्दर व्यंग्य  के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)

गुरु पूर्णिमा पर्व पर परम आदरणीय डॉ कुंदन सिंह परिहार जी को सादर चरण स्पर्श।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 57 ☆

☆ व्यंग्य – सब मर्ज़ों की एक दवा

 

भाई जी, यह बहुत अच्छा हुआ कि संसार के सब मर्ज़ों की एक दवा मिल गयी। अब इस बात में कोई शक नहीं रहा कि ज़िन्दगी की सब व्याधियों की एक दवा पैसा है, अक्सीर दवा।

पैसा है तो रोग-दोष आपके पास नहीं फटकते। पैसा है तो आपके लिए सब कुछ मुहैया है। बोलो,क्या ख़रीदना चाहोगे? मोटर ख़रीदोगे या हवाई जहाज़? फाइल ख़रीदोगे या बाबू? अफसर ख़रीदोगे या विधायक?

पैसा पास है तो कला, सभ्यता, संस्कृति भी मिल सकती है। यहाँ तो हर चीज़ बिकती है, कहो जी तुम क्या क्या ख़रीदोगे? आप बस ज़ुबान भर हिलाओ बबुआ, संसार की सब विभूतियाँ आपके चरणों में लोटेंगीं। हाँ, बस थोड़ा नावाँ दिखाते जाओ।

पैसा है तो सुपुत्रों को पढ़ने के लिए जर्मनी जापान भेजो और फिर आसानी से अच्छी नौकरी या व्यापार में जमा दो। नौकरी की आपाधापी और हताशा सिर्फ अभागों के लिए है। पैसा है तो ज़ुकाम का इलाज जसलोक में कराओ। या अगर घर के डॉक्टर पसन्द न हों तो अमेरिका चले जाओ। कोई असाध्य रोग पकड़ ले तो पैसा आपको बचा भले ही न पाए, पर चार छः साल आपकी ज़िन्दगी को खींच तो सकता ही है। जिस दिन विज्ञान मृत्यु पर विजय पा लेगा उस दिन सब पैसे वाले अमर हो जाएंगे, क्योंकि अमरत्व के मंहगे उपकरण ख़रीदने की शक्ति उन्हीं में होगी। तब वे देवताओं की श्रेणी में आ जाएंगे और आदमी के नाम पर वही बचेंगे जिनकी जेब में नावाँ नहीं होगा।

पैसा पास है तो आदमी को कोई पाप, दोष नहीं छूते। हज़ार पाप करके भी वह पवित्र, निर्मल रह सकता है।  ‘विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। ‘ गोस्वामी जी भी कह गये हैं, ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं। ‘

लेकिन यह गरीबदास बड़ी देर से मेरी बगल में भुनभुनाकर कुछ कह रहा है। पूछता है, इस पैसे वाली दुनिया में उसका क्या होगा? तो सुनो गरीबदास, तुम्हारी जो हालत है वह तुम्हारा प्रारब्ध और पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। लेकिन गरीबदास मानता नहीं। कहता है बड़े लोग कह गये हैं ‘बड़े भाग मानुस तन पावा’।  मनुष्य का जन्म बड़े पुण्यों के बाद मिलता है, तब ये पुराने पाप कहाँ से आ गये? है न सिरफिरा?

लो गरीबदास, तुम्हारे हित के लिए कुछ सूक्तियाँ देता हूँ। इन्हें जतन से गठिया लो। ये तुम्हारी तकलीफ को दूर भले ही न करें, लेकिन तुम्हारा ध्यान उस पर से हटा देंगीं। सुनो—‘हानि लाभ ,जीवन मरण,यश अपयश विधि हाथ’, ‘को करि तरक बढ़ावै साखा, हुईहै वहि जो राम रचि राखा’, ‘संतोषी सदा सुखी’, ‘देख पराई चूपड़ी मत ललचावै जीव, रूखा सूखा खाय के ठंडा पानी पीव’, ‘जो आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान। ‘ इसलिए अपनी ज़िन्दगी धूरि समान, बच्चों की पढ़ाई लिखाई और नौकरी धूरि समान,अपने बुढ़ापे और बीमारी का इंतज़ाम भी धूरि समान।

एक और सूक्ति देता हूँ गरीबदास। इसे कई समझदार लोग दुहराते हैं—-‘पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं। ‘ समझे गरीबदास? लेकिन गरीबदास मूड़ हिलाता है, कहता है, ‘पाँचों उँगलियाँ बराबर भले ही न हों, लेकिन ऐसा तो नहीं होता कि बड़ी उँगली हमेशा गुलाब पर रखी रहे और छोटी हमेशा काँटों में घुसी रहे। ‘ गरीबदास  का कहना है कि यह गोरखधंधा उसकी समझ में नहीं आता। सच्ची बात तो यह है गरीबदास, कि यह सब मेरी समझ में भी नहीं आता।

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #54 ☆ गुरु और गुरुता ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच – गुरु और गुरुता  ☆

मनुष्य अशेष विद्यार्थी है। प्रति पल कुछ घट रहा है, प्रति पल मनुष्य बढ़ रहा है। घटने का मुग्ध करता विरोधाभास यह कि  प्रति पल, पल भी घट रहा है।

हर पल के घटनाक्रम से मनुष्य कुछ ग्रहण कर रहा है। हर पल अनुभव में वृद्धि हो रही है, हर पल वृद्धत्व समृद्ध हो रहा है।

समृद्धि की इस यात्रा में प्रायः हर पथिक सन्मार्ग का संकेत कर सकने वाले मील के पत्थर को तलाशता है। इसे गुरु, शिक्षक, माँ, पिता, मार्गदर्शक,  सखा, सखी कोई भी नाम दिया जा सकता है।

विशेष बात यह कि जैसे हर पिता किसी का पुत्र भी होता है, उसी तरह अनुयायी या शिष्य, मार्गदर्शक भी होता है। गुरु वह नहीं जो कहे कि बस मेरे दिखाये मार्ग पर चलो अपितु वह है जो तुम्हारे भीतर अपना मार्ग ढूँढ़ने की प्यास जगा सके। गुरु वह है जो तुम्हें ‘एक्सप्लोर’ कर सके, समृद्ध कर सके। गुरु वह है जो तुम्हारी क्षमताओं को सक्रिय और विकसित कर सके।

गुरु वह है जो  तुम्हें एकल नहीं एकाकार की यात्रा कराये। एकाकार ऐसा कि पता ही न चले कि तुम गुरु के साथ यात्रा पर हो या तुम्हारे साथ गुरु यात्रा पर है। दोनों साथ तो चलें पर कोई किसी की उंगली न पकड़े।

यदि ऐसा गुरु तुम्हारे जीवन में है तो तुम धन्य हो। तुम्हारा मार्ग प्रशस्त है।

जिनकी गुरुता ने जीवन का मार्ग सुकर किया, उनका वंदन। जिन्होंने मेरी लघुता में गुरुता देखी, उन्हें नमन।

शुभं भवतु।

गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।

 

© संजय भारद्वाज

परमसत्य की यात्रा मंगलमय हो।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ लघुकथा – माँ  का आँचल ☆ श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की  एक सार्थक एवं  हृदयस्पर्शी लघुकथा माँ  का आँचल। इस अतिसुन्दर रचना के लिए आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )

 ☆  माँ  का आँचल  ☆ 

 

आज अरुण की तलाश पूरी हुई।

आखिरकार इंटरव्यू में पास हो गया।

इतने में जोर से बारिश आ गई। भीगता हुआ अरुण बस स्टैंड से दौड़ता सा घर पहुंचा। भीतर सब लोग हाॅल में बैठे थे। उसे देखकर भैया भाभी रहस्यमय तरीके से एक दूसरे को देखकर चाय की सिप लेने लगे। छोटी बहन उसका बैग टटोलने लगी।

पिता गरजे कुछ देर ठहर कर नहीं आ सकते थे वैसे भी हम जानते हैं क्या हुआ होगा। इतनी बड़ी कंपनी में तुम्हें नौकरी  नहीं मिलेगी।

इतने में माँ दौड़ती सी तौलिया लेकर आई और धीरे से पूछा बेटा कुछ खाया कि नहीं और माँ के आँचल से खुशी के आँसू पोंछते अरुण की आँखों ने सच्चाई बयां कर दी जिसे कहने की असफल कोशिश कर रहा था।

 

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

Please share your Post !

Shares

English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 13 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 13/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 13 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

कैदी हैं सब यहाँ…

कोई ख्वाबों का..

तो कोई ख्वाहिशों का..

तो कोई ज़िम्मेदारियों का…

 

Everyone is prisoner here,

Some of their dreams,

While some of their desires…

Others of responsibilities…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

होती तो हैं ख़ताएँ

हर एक से मगर…

कुछ जानते नहीं हैं

कुछ मानते नहीं…

 

Committal of mistakes

Happens by everyone…

Some are not aware of it

While others don’t accept it…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

मुझको तो दर्द-ए-दिल का

मज़ा याद आ गया

तुम क्यों हुए उदास

तुम्हें क्या याद आ गया…

 

Remembered the bliss filled

Anguish of my lovelorn heart

Why did you become sad

Did you also miss something

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ 

 

कहने को जिंदगी थी

बहुत मुख़्तसर मगर

कुछ यूँ बसर हुई कि

खुदा याद आ गया…

 

Had a life so to say

Though much ephemeral

Passed in such a way that

Made me remember the God..!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – भारतीय ज्योतिष  क्या है? ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज  “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद  साहित्य “ में प्रस्तुत है  जनसामान्य  के  ज्ञानवर्धन के लिए भारतीय ज्योतिष विषय पर एक शोधपरक आलेख  भारतीय ज्योतिष  क्या है?

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य –  भारतीय ज्योतिष  क्या है? ☆

भारतीय ज्योतिष शास्त्र विद्या को वेद का एक अंग माना गया है, इस विधा के द्वारा  मानव जीवन पर ग्रह-नक्षत्रों की छाया उच्च निम्न तथा वक्रीय दृष्टि के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है, जिसके द्वारा जातक के जीवन में भूत, भविष्य और वर्तमान का अध्ययन कर भविष्य वाणी की जाती है।

जब कोई जातक जन्म लेता है तो उस समय खगोलीय अनंत अंतरिक्ष के परिक्रमा पथ में भ्रमण कर रहे ग्रहों नक्षत्रों के स्वभाव तथा प्रभाव का अदृश्य किंतु स्थायी प्रभाव जातक के जीवन में अंकित हो जाता है, जो आजीवन काल क्रम के रूप में जातक को प्रभावित करता रहता है, इसका अध्ययन हमारे मनीषियों के शोध-पत्र के रूप में सामने आता है। इन प्रभावों के चलते ही मानव की आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य, बुद्धिमत्ता, दारिद्र, दुःख आदि का सटीक वर्णन संभव हो पाता है, जैसे गणना के आधार पर हमारा पंचांग, सूर्य के उदय अस्त तथा सूर्य ग्रहण चंद्रग्रहण की सालों पूर्व की सटीक जानकारी देता है। जिस प्रकार ज्ञान चक्षु से अंधेरे अथवा प्रकाश का ज्ञान हो पाता है, उसी प्रकार ज्योतिष विद्या भी गणितीय ज्ञानचक्षु है, जो मानव के भूत भविष्य वर्तमान का ज्ञान प्राप्त कर, भविष्य वाणी करने में सक्षम है, वैसे तो भारतीय ज्योतिष शास्त्र की महिमा अगम अपार है, लेकिन वर्तमान समय में हमारे देश में  जो मुख्य विधायें प्रचलित है, उसमें गणित ज्योतिष, तथा फलित ज्योतिष मूलस्तंभ के रूप में स्थापित हैं।

गणित ज्योतिष शास्त्र जहां सूक्ष्म गणितीय गणना पर आधारित है, इनके द्वारा ही किसी जातक की जन्म कुंडली का निर्माण किया जाता है। इसका मूल आधार भारतीय ज्योतिष गणना की सबसे छोटी इकाई निमिष, पल, विपल, प्रतिपल, पलापल  आदि से निर्धारित की जाती है।  जन्मकुंडली के निर्माण के मूल आधार के लिए हमें भारतीय पंचांग का सहारा लेना पड़ता है।

जिनमें पांच ज्योतिष काल खंड की गणनाएं है जिन्हें क्रम से तिथि, वार, नक्षत्र, तथा योग और करण के रूप में जाना जाता है। पंचांग ही यह तय करता है कि आज की  तिथि वार नक्षत्र योग में कौन सी राशि का अनंत अंतरिक्ष में संचरण काल है। अन्य ग्रहो की युति किस राशि में किस रूप में कितने समय के लिए है, वहीं स्थिति जन्मकुंडली का आधार पुष्टि करती भूत भविष्य वर्तमान की आधारशिला रखती है, परंतु इस विषय में इस समय विषय  के विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है।

हमारे मनीषियों ने भारतीय ज्योतिष पद्धति की कालखंड की गणना विधा का रूपांतरण पाश्चात्य कालखंड की गणना से किया है, इसीलिए निमिष पल विपल प्रतिपल को घंटों मिनटों में परिभाषित किया जा सका है। उनके अनुसार चौबीस मिनटों की एक घंटी, ढ़ाई घंटी का एक घंटा, तथा एक दिन, यानी चौबीस घंटे में साठ घटियां होती है।

फलित ज्योतिष क्या है? 

जब गणित ज्योतिष के आधार पर जातक के ग्रह, नक्षत्र, तिथि आदि का ठीक ठीक ज्ञान हो जाता है, तब उसे ही आधार मानकर जातकों के जीवन काल के परिणाम पर विचार किया जा सकता है, जो नवग्रहों के सर्वभाव तथा प्रभाव से पूरी तरह प्रभावित होते हैं। जैसे सूर्य की गर्मी तथा चंद्रमा की शीतलता लाखों करोड़ों मील दूर से मानव जीवन तथा मन को प्रभावित करती है, उसी प्रकार अन्य ग्रहों की युति परिस्थिति भी मानव जीवन को प्रभावित करती है। ऐसी ज्योतिष शास्त्रियों की मान्यता है, जो जटिल गणितीय संरचना पर आधारित है। एक कुशल गणितीय समझ वाला ही ज्योतिष विद्या का सही उपयोग कर सटीक भविष्यवाणी कर सकता है। जो पूर्वानुमान पर आधारित है, जिससे जीवन के भावों प्रभावों राशि फल, सफल, वर्षफल, के अलावा भावेश फल ग्रह युति मेलापक, मुहुर्त विचार आदि के द्वारा भविष्य वाणी संभव है।

भारतीय ज्योतिष का अंतरिक्ष तथा भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार मानव जीवन से संबंध तथा प्रभाव का अध्ययन

हमारे मनीषियों ने, अपनी भौगोलिक स्थितियों का स्थापन सीमा विस्तार अक्षांस , देशांतर तथा कर्क मकर जैसी रेखाओं के द्वारा रेखांकित कर क्षेत्रों का विभाजन किया हैं।  वहीं पर खगोलीय अनंत अंतरिक्ष को भी तीन सौ साठ अंश की वृत्तीय सीमा रेखा खींच कर अनंत को भी सीमा रेखा में बांध दिया है, जिसमें सौरमंडल, तारा मंडल आकाशगंगाओं, ग्रहों नक्षत्रों आदि का अध्ययन समाहित है, जिसका ज्योतिष शास्त्र से सीधा संबंध है।  हमारे ज्योतिषविद् सूर्योदय सूर्यास्त का सटीक मान  ऋतु परिवर्तन, तिथि परिवर्तन त्योहारों पर्वों का ज्ञान होता है, जो इस विधा की सटीकता का केंद्र ‌बिंदु है।

इसे कपोल-कल्पित अथवा गल्पविद्या कतई नहीं समझा जाना चाहिए। यह भारतीय शास्त्रों का एक अंग है।  पौराणिक, ज्योतिषीय, तथा बैज्ञानिक आधार पर भी सूर्य को अक्षय उर्जा स्रोत शक्ति तथा तेज का प्रतीक, तथा देवताओं में भी प्रमुख स्थान प्राप्त है।  पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य का जन्म माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि माना जाता है, पौराणिक श्रुति के अनुसार इन्हें हनुमान जी के गुरु तथा शनि के पिता के रूप में माना जाता है, खगोलीय भौगोलिक गणना सिद्धांत के अनुसार भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मूलभूत केन्द्र में सूर्य ही है। हमारी ज्योतिष विधा में जातकों के भूत भविष्य वर्तमान में चलने वाला घटना क्रम ग्रहों नक्षत्रों तथा राशियों के प्रभाव से प्रभावित माना जाता है। जो सूर्य चंद्रमा तथा पृथ्वी की गति पर आधारित है। जातक के जन्म समय में खगोल अंतरिक्ष में स्थित ग्रह नक्षत्रों की स्थिति पर निर्भर है, करोड़ों मील दूर स्थित सूर्य किस प्रकार पृथ्वी पर प्रकृति तथा जीव-जगत को प्रभावित करता है, वह साक्षात् दीखता है। हमारे ग्रहों का मुखिया भी सूर्य ही है सारे ग्रह नक्षत्र सूर्य के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं। अनंत अंतरिक्ष में ना जाने कितने सौरमंडल है जिसका ज्ञान विधाता के अलावा किसी को भी नहीं है।

गहन अध्ययन के आधार पर ज्योतिष मान्यता के ये मुख्य बिंदु नजर आते हैं

1–पौरणिक मान्यताओं का आधार।

2–गणितिय सिद्धांतों का आधार।

3–खगोलिय ग्रहों नक्षत्रों की गति विधियों का आधार तथा प्रभाव।

4–भौगोलिक परिस्थितियों का आधार।

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 

विशेष – प्रस्तुत आलेख  के तथ्यात्मक आधार ज्योतिष शास्त्र की पुस्तकों पंचागों के तथ्य आधारित है भाषा शैली शब्द प्रवाह तथा विचार लेखक के अपने है, तथ्यो तथा शब्दों की त्रुटि संभव है, लेखक किसी भी प्रकार का दावा प्रतिदावा स्वीकार नहीं करता। पाठक स्वविवेक से इस विषय के समर्थन अथवा विरोध के लिए स्वतंत्र हैं, जो उनकी अपनी मान्यताओं तथा समझ पर निर्भर है।

 

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 18 ☆ सांगावे कुणा. ? ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है ।आज प्रस्तुत है  उनका एक बालगीत  “सांगावे कुणा. ?“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 18 ☆

☆ सांगावे कुणा. ?

 

हसत हसत आला उन्हाळा

हसत हसत गेला हिवाळा

रडत म्हणे पावसाळा

येईन मी पुन्हा.!!

 

थंडीमधे सकाळची काळ वाटे शाळा

टिचर म्हणे प्रार्थनेची रोज वेळ पाळा

आम्हा मुलांचे कुणीच नाही

सांगावे कुणा. ?  !!हूंऽऽहूंऽऽ

 

पावसात रिमझिम त्या थंडगार धारा

आई म्हणे ,भिजू नका,खाऊ नका गारा

आम्हा मुलांचे कुणीच नाही

सांगावे कुणा. ? !!हूंऽऽ हूंऽऽ

 

उन्हाळ्यात शाळेला सुट्टी किती मजा

पप्पा म्हणे उन्हामधे खेळू नको राजा

आम्हा मुलांचे कुणीच नाही

सांगावे कुणा. ? !!हूंऽऽहूंऽऽ

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ ज्यों-ज्यों अगस्त्य हुए ☆ डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन ।  वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा सं स्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला  स्वभाव एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध। आज प्रस्तुत है डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी  की एक भावप्रवण एवं सार्थक कविता  ”ज्यों-ज्यों अगस्त्य हुए“।डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर ‘ जी  के इस सार्थक एवं  संत कबीर जी के विभिन्न पक्षों पर विमर्श के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन।  ) 

 ☆ ज्यों-ज्यों अगस्त्य हुए ☆

 

चंदा ने

शीतलता दी

चाँदनी दी बिन माँगे

कि रह सकें हम शीतल

पाख भर ही सही

सता न सकें हमें चोर ,चकार

सूरज ने

खुद तपकर रोशनी दी

पहले जग उजियार किया

तब जगाया हमें

नदी ने पानी दिया

कि बुझ सके प्यास हम सबकी

समुद्र ने अपनी लहरों पर

बिठाकर घुमाया

दिखाया सारा जगत

कि खुश रहें हम सब

इन्होंने मछलियाँ भी दीं

धरती ने, पेड़ों ने दिए

कंद-मूल,असंख्य और अनंत

फल-फूल और शस्यान्न

क्या-क्या नहीं दिए

भरने के लिए हमारा पेट

ज्यों-ज्यों हम अगस्त्य हुए

ये होते गए निर्जल,बाँझ और उजाड़।

 

©  डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

सूरत, गुजरात

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 1 ☆ सार्थक दोहे ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

( हम गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  के  हृदय से आभारी हैं जिन्होंने  ई- अभिव्यक्ति के लिए साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य धारा के लिए हमारे आग्रह को स्वीकारा।  अब हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।  आज प्रस्तुत हैं आपके  सार्थक दोहे  ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 1 ☆ दोहे ☆ ☆

 

कोई समझता कब कहां किसी के मन के भाव

रहे पनपते इसी से झूठे द्वेष दुराव

 

मन की पावन शांति हित आवश्यक सद्भाव

हो यदि निर्मल भावना कभी न हो टकराव

 

ममता कर लेती स्वतः सुख के सकल प्रबंध

इससे रखने चाहिए सबसे शुभ संबंध

 

प्रेम और सद्भाव से बड़ा न कोई भाव

नहीं पनपती मित्रता इनका जहां अभाव

 

मन के सारे भाव में ममता है सरताज

सदियों से इसका ही दुनिया में है राज

 

दुख देती मित्र दूरियां आती प्रिय की याद

करता रहता विकल मन एकाकी संवाद

 

होते सबके भिन्न हैं प्रायः रीति रिवाज

पर सबको भाती सदा ममता की आवाज

 

बातें व्यवहारिक अधिक करता है संसार

किंतु समझता है हृदय किस के मन में प्यार

 

मूढ़ बना लेते स्वतःगलत बोल सन्ताप

मिलती सबको खुशी ही पाकर प्रेम प्रसाद

 

बात एक पर भी सदा सबके अलग विचार

मत होता हर एक का उसकी मति अनुसार

 

प्रेम सरल सीधा सहज सब पर रख विश्वास

खुद को भी खुशियां मिले कोई न होय निराश

 

तीक्ष्ण बुद्धि इंसान को ईश्वर का वरदान

कर सकती परिणाम का जो पहले अनुमान

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिंदी साहित्य – फिल्म/रंगमंच ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के कलाकार # 11 – केदार शर्मा ☆ श्री सुरेश पटवा

सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

((श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।  अभी हाल ही में नोशन प्रेस द्वारा आपकी पुस्तक नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास)  प्रकाशित हुई है। इसके पूर्व आपकी तीन पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी एवं पंचमढ़ी की कहानी को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है।  आजकल वे  हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग  की फिल्मों एवं कलाकारों पर शोधपूर्ण पुस्तक लिख रहे हैं जो निश्चित ही भविष्य में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होगा। हमारे आग्रह पर उन्होंने  साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्मोंके स्वर्णिम युग के कलाकार  के माध्यम से उन कलाकारों की जानकारी हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा  करना स्वीकार किया है  जिनमें कई कलाकारों से हमारी एवं नई पीढ़ी  अनभिज्ञ हैं ।  उनमें कई कलाकार तो आज भी सिनेमा के रुपहले परदे पर हमारा मनोरंजन कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है  हिंदी फ़िल्मों के स्वर्णयुग के कलाकार  : केदार शर्मा पर आलेख ।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हिंदी फिल्म के स्वर्णिम युग के कलाकार # 11 ☆ 

☆ केदार शर्मा ☆

 

केदार शर्मा उर्फ़ केदार नाथ शर्मा (12 अप्रैल 1910 – 29 अप्रैल 1999), एक भारतीय फिल्म निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक और हिंदी फिल्मों के गीतकार थे। उन्हें नील कमल (1947), बावरे नैन (1950) और जोगन (1950) जैसी फिल्मों के निर्देशक के रूप में बड़ी सफलता मिली, उन्हें अक्सर बॉलीवुड के महान कलाकारों गीता बाली, मधुबाला, राज कपूर, माला सिन्हा, भारत भूषण और तनुजा के अभिनय करियर की शुरुआत के लिए याद किया जाता है।

केदार शर्मा का जन्म नारोवाल पंजाब में हुआ था।  दो भाइयों, रघुनाथ और विश्वनाथ की अल्पायु मृत्यु और उनकी बहन तारो का कम उम्र में तपेदिक से निधन हो गया, एक छोटी बहन गुरू एक छोटे भाई हिम्मत राय शर्मा बचे, जो बाद में सफल उर्दू कवि के रूप में स्थापित हुए। केदार ने अमृतसर के बैज नाथ हाई स्कूल में पढ़ाई की जहाँ वे दर्शन, कविता, पेंटिंग और फोटोग्राफी में रुचि लेने लगे। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिनेमा में अपना करियर बनाने के लिए घर से भाग कर मुंबई पहुँचे  लेकिन रोजगार हासिल करने में असफल रहे तो अमृतसर लौट आए और हिंदू सभा कॉलेज में पढ़ाई हेतु प्रवेश लिया, जहाँ उन्होंने एक कॉलेज ड्रामेटिक सोसाइटी की स्थापना की।

एक स्थानीय सुधारवादी आंदोलन के प्रमुख ने केदार के नाटकों में से एक में हिस्सा लिया और शराब की बुराइयों को दर्शाती एक मूक फिल्म का निर्माण करने के लिए उसे काम मिला। इस परियोजना से अर्जित धन का उपयोग करते हुए, उन्होंने खालसा कॉलेज, अमृतसर में एक स्थानीय थिएटर समूह में शामिल होने से पहले अंग्रेजी में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। 1932 में उनकी शादी हुई तब उन्होंने कमाई के बारे में गम्भीरता से सोचना शुरू किया। फिल्म निर्देशक देवकी बोस की शुरुआती बोलती फिल्म पूरन भगत (1933) को देखकर वह न्यू थियेटर्स स्टूडियो में भाग्य आज़माने की उम्मीद में कलकत्ता के लिए रवाना हुए। कई महीनों की बेरोजगारी के बाद वह न्यू थियेटर्स के एक तत्कालीन अभिनेता, पृथ्वीराज कपूर (जहाँ वह पहली बार, पृथ्वीराज के आठ वर्षीय बेटे, राज कपूर से मिले) से मिलने में कामयाब रहे। पृथ्वीराज कपूर ने केदार को अपने पड़ोसी, तत्कालीन कुंदन लाल सहगल से मिलवाया, जिन्होंने एक परिचित के माध्यम से केदार को देवकी बोस से मिलने की व्यवस्था कर दी। देबकी बोस ने केदार को फिल्म सीता (1934) के लिए मूवी स्टिल्स फोटोग्राफर के काम पर रखा था, लेकिन बैकग्राउंड स्क्रीन पेंटर और फिल्म इंकलाब (1935) के लिए पोस्टर चित्रकार के रूप में केदार को फिल्म के निर्माण में काम मिला।  उन्होंने छप्पन (1935) और पुजारिन (1936) जैसी फिल्मों पर न्यू थियेटर्स के साथ काम करना जारी रखा, और  1936 में देवदास में उनके दोस्त कुंदन लाल सहगल द्वारा अभिनीत संवाद और गीत लिखने के लिए कहा गया तो एक बड़ा ब्रेक मिला। देवदास न केवल एक हिट थी, बल्कि “बलम आयी बसो मोरे मन में” और “सुख के अब दिन बीतत नाही” जैसे गाने देश भर में लोकप्रिय हो गए। केदार ने बाद में कहा, “बिमल रॉय और मुझे, देवदास में हमारा पहला बड़ा ब्रेक मिला था,  उन्हें कैमरामैन के रूप में और मुझे लेखक के रूप में।”

केदार को 1940 में जीत, औलाद और दिल ही तो है के लिए अपनी पटकथा लिखने का मौका दिया गया, कुछ सफलता मिली। इसके बाद उन्हें चित्रलेखा (1941) का निर्देशन करने के लिए कहा गया, जो एक हिट फिल्म बन गई और केदार एक निर्देशक के रूप स्थापित हो गए। उन्होंने अपनी पहली फिल्म नील कमल में राज कपूर और मधुबाला को लेकर अपनी फिल्मों का निर्माण शुरू किया। उन्होंने गीता बाली को अपनी पहली फिल्म, सोहाग रात (1948) में कास्ट किया और बाद में उन्हें राजकपूर के साथ फिल्म बावरे नैन (1950) के लिए टीम में शामिल किया। उसी वर्ष उन्होंने नर्गिस और दिलीप कुमार अभिनीत जोगन का निर्देशन किया। 1950 के दशक के उत्तरार्ध में जवाहरलाल नेहरू ने शर्मा के गीतों को सुना था, उन्हें बुलाया और उन्हें चिल्ड्रन्स फिल्म सोसाइटी का प्रमुख निदेशक बनने के लिए कहा। केदार शर्मा ने बाल फिल्म सोसाइटी के लिए कई फिल्मों पर काम किया, जिसमें फिल्म जलदीप भी शामिल है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त हुई।  उन्होंने 1958 में शॉ ब्रदर्स स्टूडियो के लिए सिंगापुर में एक वर्ष फिल्मों का निर्देशन किया।

 

© श्री सुरेश पटवा

भोपाल, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares