हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 51 – कविता – मिले न  मुझको मेरे राम ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी  एक अप्रतिम अध्यात्म पर आधारित विरह गीत “मिले न  मुझको मेरे राम।   कविता की प्रथम पंक्ति ही कविता का सार है और शेष है  विरह एवं प्रतीक्षा के भाव।  इस सर्वोत्कृष्ट  रचना के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 51 ☆

☆ कविता  – मिले न  मुझको मेरे राम

 

हाथों की लकीरों पर लिखा हुआ उनका नाम।

ना जाने किस जगह मिलेंगे मुझको मेरे राम।

 

वन उपवन  राह निहारी उनका आठो याम

फिरते फिरते नैना  हारी  मिले न मुझको मेरे राम।

 

पंछी घोसला बना लिए चुन चुन तिनका सारा।

कैसे बनाऊं आशियाना मिले न  मुझको मेरे राम।

 

व्याकुल हिरनी सी भटकूं करती रही उनका इंतजार।

ढूंढ – ढूंढ ताल तलैया दिखे न मुझको मेरे राम।

 

सांझ ढले बिरहा की मारी दिनका व्याकुल मन।

अंतस मन लिए शांत बैठी नैनों में समाए राम।

 

हाथों के लकीरों पर लिखा हुआ उनका नाम।

ना जाने किस जगह मिलेंगे मुझको मेरे राम।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ अभिनव गीत # 6 – मुंबई के ये डिब्बे वाले  … ☆ श्री राघवेंद्र तिवारी

श्री राघवेंद्र तिवारी

(प्रतिष्ठित कवि, रेखाचित्रकार, लेखक, सम्पादक श्रद्धेय श्री राघवेंद्र तिवारी जी  हिन्दी, दूर शिक्षा ,पत्रकारिता व जनसंचार,  मानवाधिकार तथा बौद्धिक सम्पदा अधिकार एवं शोध जैसे विषयों में शिक्षित एवं दीक्षित । 1970 से सतत लेखन। आपके द्वारा सृजित ‘शिक्षा का नया विकल्प : दूर शिक्षा’ (1997), ‘भारत में जनसंचार और सम्प्रेषण के मूल सिद्धांत’ (2009), ‘स्थापित होता है शब्द हर बार’ (कविता संग्रह, 2011), ‘​जहाँ दरक कर गिरा समय भी​’​ ( 2014​)​ कृतियाँ प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकी हैं। ​आपके द्वारा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए ‘कविता की अनुभूतिपरक जटिलता’ शीर्षक से एक श्रव्य कैसेट भी तैयार कराया जा चुका है।  आज पस्तुत है उनका अभिनव गीत  “मुंबई के ये डिब्बे वाले  …”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ #6 – ।। अभिनव गीत ।।

☆ मुंबई के ये डिब्बे वाले  …. ☆

 

आधी बस्ती

जिनके हवाले

मुम्बई के ये

डिब्बे वाले

 

लेकर के भूख

भरी कश्तियाँ

ढोते रहते

अनंत तृप्तियाँ

 

अपनी आजानु

बाहुओं में ले

धौंडु -पांडुरंग

के निवाले

 

बिना चूक डिब्बा

जिस का उसको

समय नहीं इतना

कि पूछ   सको

 

औाखों की सीमा

में जो कुछ है-

पहुँचेगा, वाशी

या रिवाले

 

कोई बोनस या

बख्शीस नहीं

सिर्फ मजूरी

कोई फीस नहीं

 

बस सफेद टोपी

कुर्ता कमीज

पाजामे में

चलें उजाले

 

अनुशासित बिना

किसी बंधन के

चर्चित यह दूत

हैं प्रबंधन के

 

ये खुद के सच्चे

उदाहरण

सेवा की ध्वजा

हैं सम्हाले

 

आधी बस्ती

जिनके हवाले

मुम्बई के ये

डिब्बे वाले

 

© राघवेन्द्र तिवारी

09-06-2020

संपर्क​ ​: ई.एम. – 33, इंडस टाउन, राष्ट्रीय राजमार्ग-12, भोपाल- 462047​, ​मोब : 09424482812​

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 54 ☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – – एक रचना कौशल ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनके द्वारा स्व हरिशंकर परसाईं जी के जीवन के अंतिम इंटरव्यू का अंश।  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी ने  27 वर्ष पूर्व स्व  परसाईं जी का एक लम्बा साक्षात्कार लिया था। यह साक्षात्कार उनके जीवन का अंतिम साक्षात्कार मन जाता है। आप प्रत्येक सोमवार ई-अभिव्यिक्ति में श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के सौजन्य से उस लम्बे साक्षात्कार के अंशों को आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 54

☆ परसाई जी के जीवन का अन्तिम इन्टरव्यू – – एक रचना कौशल ☆ 

जय प्रकाश पाण्डेय–

ऐसा प्राय: देखने में आया है कि आप अपनी रचना में जहां सबसे मूल्यवान कथ्य का सम्प्रेषण कर रहे होते हैं, वहां बहुत कम देर रुकते हैं, इन क्षणों में आपका गद्य अचानक बहुत संक्षिप्त और उसकी गति अत्याधिक त्वरित हो उठती है। एक लेखक के रूप में अपने इन उत्कर्ष क्षणों में स्वंय को सचेत रूप में अनुपस्थित कर देने का यह गुण आपकी मानवीय विनम्रता का सहज गुण है या सयास निर्मित एक रचना कौशल ?

 

हरिशंकर परसाई-

यह मेरी विनम्रता नहीं है,बात असल में ये है कि ये कौशल भी नहीं है। मैं वास्तव में उस बिंदु तक आते-आते परिस्थितियों का, वक्तव्यों का ऐसा वातावरण निर्मित कर लेता हूं कि उनमें से इस प्रकार की अभिव्यक्ति निकलनी ही चाहिए,जो कि निष्कर्ष रूप में होती है, लेकिन उसकी भूमिका मैं लम्बी बनाता हूं, और उस लम्बी भूमिका के बाद उस निष्कर्ष का क्षण आता है, यदि निष्कर्ष के उस क्षण को मैं लम्बा कर दूं तो मेरे लेखन का प्रभाव नष्ट हो जावेगा। मुझे संक्षिप्त में ही उसे एकदम से कहकर आगे बढ़ जाना चाहिए,कारण कि पाठक का दिमाग तो तैयार हो गया तब तक। तो एक दो वाक्य चलते फिरते कह देने भर से वह पूरी की पूरी बात ग्रहण कर लेता है। यदि मैं उसको ४-६-८ वाक्यों में समझाऊं तो इसका मतलब कि मेरी पहले की बनाई भूमिका बेकार हो जावेगीऔर उसका प्रभाव भी नहीं रह पायेगा, इसलिए मैं ऐसा करता हूं।

……………………………..क्रमशः….

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ शेष कुशल # 8 ☆ व्यंग्य – कई पेंच हैं फ्लॉयड की…. ☆ श्री शांतिलाल जैन

श्री शांतिलाल जैन 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक  व्यंग्य “कई पेंच हैं फ्लॉयड की….।  इस  साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक होते हैं ।यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता  को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 8 ☆

☆ व्यंग्य – कई पेंच हैं फ्लॉयड की….

मिनिसोटा, अमेरिका से एक काल्पनिक रपट:

“गवर्नर टिम वॉल्ज ने मरहूम जार्ज फ्लॉयड के घर पर उनकी पत्नी और बेटी से मुलाकात की. उन्होंने मृतक की विधवा को पचास हजार डॉलर की सहायता, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने और फ्लॉयड पर जो क़र्ज़ था उसे माफ़ करने की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि घटना की मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दे दिये गये हैं. पुलिस अधिकारी डैरेक शॉविन को हिरासत में लेकर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है. तीन अन्य पुलिस अधिकारियों को पुलिस मुख्यालय में अटैच किया गया है. उन्होंने दोषियों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही करने का भी आश्वासन दिया है.

उधर अमेरिकी राष्ट्रपति, जो रिपब्लिकन पार्टी से आते हैं, ने बढ़ते विरोध प्रदर्शन को देखते हुये मामले की जांच एफबीआई को सौंप दी है, जिसने प्राथमिक जांच शुरू भी कर दी है. जांच दल की टीम के एक सदस्य ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा है कि फ्लॉयड के अर्बन …… होने के सबूत मिले हैं. उसकी हत्या …… की आपसी रंजिश का नतीज़ा भी हो सकती है. उसके कम्पयूटर में ……वादी साहित्य मिला है. एजेंसी अब फ्लॉयड के संपर्कों को खंगाल रही है. हम उसके तार टुकड़े टुकड़े गैंग से जुड़े होने की संभावना पर भी काम कर रहे हैं. फ्लॉयड जिस एनजीओ से जुड़ा था उसके लेनदेन की भी जांच की जा रही है. अगर इस बारे में और सबूत मिले तो फ्लॉयड की पत्नी की गिरफ्तारी संभव है.

घटना में एक नया मोड़ तब आया जब पार्टी के अन्दरखाने कुछ नेताओं ने टिम वॉल्ज को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की.  आपको बता दें कि फ्लॉयड डेमोक्रेटिक पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता और चुनाव जीतने तक वॉल्ज का नज़दीकी था. सम्मानजनक पद नहीं मिलने के कारण कुछ समय से नाराज़ चल रहा था. राज्य के कुछ  डेमोक्रेट्स फ्लॉयड के परिवार को न्याय दिलाने की आड़ में ट्वीट्स करके टिम वॉल्ज पर निशाना साध रहे हैं.

इस बीच शॉविन के परिवार ने वीडियो की फोरेंसिक जांच की मांग की है. शॉविन के वकील ने कहा है वो वीडियो डॉक्टर्ड है जिसमें उनके मुवक्किल घुटने से फ्लॉयड की गर्दन को दबाये हुये दिखाई पड़ रहे हैं. शॉविन लम्बे समय से ‘नी-लॉक’ की बीमारी से ग्रस्त हैं, वे घुटना मोड़ नहीं सकते. उन्हें राजनीतिक कारणों से बलि का बकरा बनाया जा रहा है. शॉविन के परिवार ने पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट में छेड़छाड़ का आरोप भी लगाया है. जबकि मानवाधिकार कार्यकर्ता और फ्लॉयड के वकील बेंजामिन क्रंप ने शॉविन पर फर्स्ट डिग्री यातना का अभियोग चलाने की मांग की है. इस पर ट्रोल्स ने क्रंप को देशद्रोही कहना शुरु कर दिया है. वे कहते हैं मानवाधिकार तो पुलिस के भी होते हैं, एक्टिविस्ट उनकी बात क्यों नहीं उठाते ?

जहाँ एक ओर फ्लॉयड की हत्या पर देश में उबाल है वहीं इस पर जातिगत राजनीति भी शुरू हो गयी है. एक वर्ग विशेष फ्लॉयड को दलित बता रहा है तो कुछ लोग उसके दलित होने पर ही संदेह व्यक्त कर रहे हैं. घटना पर सोशल मीडिया में ट्रोल्स सक्रिय हो गये हैं. ट्रोल्स ने पुलिस से कहा है कि उन्हें घुटने के बल बैठकर माफ़ी मांगने की बजाये प्रदर्शनकारियों के घुटने तोड़ देने चाहिये. कुछ ने पुलिस को ऐसे मामले में सार्वजानिक रूप से हत्या करने की बजाये चुपचाप एनकाउंटर में निपटा देने के सुझाव दिये हैं. ट्रोल्स ने प्रदर्शनकारियों पर यूएपीए लगाने की मांग कर डाली है. ‘आई कांट ब्रीद’  पर एक ट्रोल ने लिखा है – ‘इनको पड़ोस के देश भेज देना चाहिये. देयर ही केन ब्रीद कार्बन-डाई-ऑक्साईड. इस देश का खाते हैं, यहाँ रहते हैं और कहते हैं यहाँ ब्रीद नहीं कर पा रहे, शेम.’ एक मीम में गब्बरसिंह की ड्रेस में शॉविन कह रहे हैं – ‘फ्लॉयड ये सांस मुझे दे दे’. हैश टैग ‘सेव शॉविन’ जमकर ट्रेंड हो रहा है.

बहरहाल, कई पेंच हैं फ्लॉयड की हत्या में, लेकिन इतना अवश्य है कि इस पूरे प्रकरण में अमेरिका की छबि खराब होती नज़र आ रही है. कहा जा रहा है कि जिनकी पुलिस से एक आम नागरिक की हत्या नहीं संभाली जाती वे काहे के लोकतान्त्रिक और काहे के विकसित देश. अमेरिकी प्रशासन को भारत आकर प्रशिक्षण लेने की जरूरत है.”

© शांतिलाल जैन 

F-13, आइवरी ब्लॉक, प्लेटिनम पार्क, माता मंदिर के पास, टी टी नगर, भोपाल. 462003.

मोबाइल: 9425019837

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी #1 ☆ पितृ दिवस विशेष – बाबा! मैं तुम्हें  न भूल पाऊंगा ☆ श्री श्याम खापर्डे

श्री श्याम खापर्डे 

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है।  सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग  स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज पितृ दिवस के अवसर पर प्रस्तुत है  “बाबा! मैं तुम्हें  न भूल पाऊंगा”। ) 

☆ पितृ दिवस विशेष – बाबा! मैं तुम्हें  न भूल पाऊंगा ☆ 

ऊंगली पकड़कर मुझे चलना सिखाया

जब भी गिरा तुमने उठाया

दौड़ने का साहस बढ़ाया

जब थक गया तो

अपने कांधे पर बिठाया

वो बचपन के दिन

मैं कैसे भूल पाऊंगा?

 

याद है मुझको स्कूल में

मेरा पहला दिन

रोते रहना, बिलखना तुम बिन

गिनती सिखाई

कांच की गोलियां गिन गिन

टाॅफियां खिलाई मां से छिन छिन

तुम्हारे सबक से ही तों

हमेशा जीवन में अव्वल आऊंगा।

 

पढ़ाई में मेरी सब कुछ लगा दिया

जो भी था गांठ में वो गंवा दिया

खुद भूखे  रहकर रोटी मुझे खिला दिया

कुछ बनने की जिद

मुझमें जगा दिया

इस जिद से ही तों

मैं ऊंचाइयों पर चढ़ पाऊंगा।

 

आशीर्वाद से तुम्हारे

जीवन में बहार है

छोटा सा सुखी संसार है

हर कदम पर जीत है

ना कोई हार हैं

बस आज तुम नहीं हो

ये दुःख अपार है

तुम्हें खोने का ग़म

आंखों में कैसे छिपाऊंगा?

 

भारी व्यस्तताओं मे भी अवकाश लिया है

तुम्हारी बरसी पर तुम्हें याद किया है

पूजा कर एक प्रण लिया है

तुमसा बनने का बच्चों को वादा किया है

सोच में डूबा हूं

क्या मै तुमसा बन पाऊंगा?

बाबा! मैं तुम्हें न भूल पाऊंगा।

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

मो  9425592588

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 5 ☆ पितृ दिवस विशेष – बाप..☆ कवी राज शास्त्री

कवी राज शास्त्री

(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है पितृ दिवस के अवसर पर उनकी भावप्रवण कविता “बाप.. ”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 5 ☆ 

☆ पितृ दिवस विशेष – बाप.. ☆

 

काटा पायात रुततो

तरी तो तसाच राहतो

कुटुंब पोसण्या बाप

अजन्म लढत असतो…०१

 

काट्याचे कुरूप जाहले

बापाचा पाय सडला

रुतणाऱ्या काट्याने

पिच्छा नाही सोडला…०२

 

एक वेळ अशी येते

पायच तोडल्या जातो

उभ्या आयुष्याचा तेव्हा

स्तंभ सहज ढासळतो…०३

 

तरी हा पोशिंदा बाप

लढत पडत राहतो

त्याच्या रक्तात कधी

दुजा भावच नसतो…०४

 

पूर्ण आयुष्य बापाने

डोई भार वाहिला

कुटुंबास पोसण्या

दिस-वार ना पहिला…०५

 

ना रडला कधी बाप

ना कधी व्यथा मांडल्या

मोकळे आयुष्य जगतांना

कळा भुकेच्या सोसल्या…०६

 

असा बाप तुमचा आमचा

अहोरात्र झुंजला गांजला

का कुणास ठाऊक मात्र

बाप शापित गंधर्व का ठरला…०६

 

© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.

श्री पंचकृष्ण आश्रम चिंचभुवन,

वर्धा रोड नागपूर,(440005)

मोबाईल ~9405403117, ~8390345500

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – प्रेम के सन्दर्भ में दोहे ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं।

आज 21 जून परम आदरणीय गुरुवर डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ जी के जीवन का अविस्मरणीय दिवस है। उनकी सुपुत्री डॉ भावना शुक्ल जी  एवं डॉ हर्ष तिवारी जी स्मरण  करते हैं  कि –  यदि आज आदरणीय माता जी स्व डॉ गायत्री तिवारी जी साथ होती तो हम सपरिवार उनके विवाह की 55वीं सालगिरह मनाते, योग दिवस मनाते।

? हम सब की और से पितृ दिवस पर उन्हें सादर चरण स्पर्श एवं इस अविस्मरणीय दिवस हेतु हार्दिक शुभकामनायें ?

 

 ✍  लेखनी सुमित्र की – प्रेम के सन्दर्भ में दोहे  ✍

 

नाम रूप क्या प्रेम का, उत्तर किसके पास।

प्रेम नहीं है और कुछ, केवल है अहसास।।

 

निराकार की साधना, कठिन योग पर्याय।

योग शून्य का शून्य में, शून्य प्रेम – संकाय ।।

 

गोप्य  प्रेम बहुमूल्य है, जैसे परम विराग ।

प्रकट प्रेम की व्यंजना, जैसे ठंडी आग ।।

 

आयु वेश की परिधि में, बंधे न बांधे प्यार ।

सागर रहता संयमित, रुके न रोके ज्वार ।।

 

सृष्टि समाहित प्रेम में, प्रेम अलौकिक गीत।

प्रेमिलता अनुभव करें, हृदयों का संगीत ।।

 

गोपनीय है प्रेम यदि, जाने केवल व्यक्ति ।

सहज प्रेम की सदा ही, होती है अभिव्यक्ति ।।

 

अंधा कहते प्रेम को, वही नयन विहीन।

दृष्टि दिव्य  हैं प्रेम की, करती ताप विलीन।।

 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

9300121702

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 55 ☆ व्यंग्य – फिर प्रभु के दरबार में ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है  एक समसामयिक व्यंग्य  ‘फिर प्रभु के दरबार में’ऐसे अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 55 ☆

☆ व्यंग्य – फिर प्रभु के दरबार में ☆

हिम्मत भाई अखबार देखकर खुश हुए, बोले, ‘अच्छी खबर है। मन्दिर खुल गये। कल जाएंगे। ‘

पत्नी चिन्तित स्वर में बोली, ‘भीड़भाड़ में मत फँसना। ‘

हिम्मत भाई ने जवाब दिया, ‘सरकार ने नियम बना दिये हैं। छः फुट की दूरी रखना है,मास्क लगाना है, प्रसाद चढ़ाना या लेना नहीं है, घंटा नहीं बजाना है, भजन-कीर्तन मन में ही करना है। ‘

पत्नी बोली, ‘अभी बेकारी और भुखमरी फैली है। जूते चोरी करवाके मत आ जाना। ‘

हिम्मत भाई बोले, ‘अपने पुराने सिस्टम से चलेंगे, एक जूता इस छोर पर और दूसरा उस छोर पर। ढूँढ़ते रह जाओगे। ‘

दूसरे दिन हिम्मत भाई मन्दिर जाने को तैयार हुए,लेकिन तैयार होते होते रुक जाते थे,जैसे किसी दुविधा में हों। अचानक पत्नी से बोले, ‘जाने में झिझक हो रही है। ढाई महीने बाद भगवान को सूरत दिखाऊँगा। कहीं नाराज़ न हो गये हों। ज़रा सी मुसीबत आयी और हम भगवान को छोड़कर भाग खड़े हुए। ‘

पत्नी ने समझाया, ‘डर की कोई बात नहीं है। भगवान अन्तर्यामी हैं, करुणानिधान हैं। वे हमारी मजबूरी समझते हैं। ‘

हिम्मत भाई मन्दिर पहुँचे। वहाँ सब इन्तज़ाम चौकस था। बाहर दीवारों पर छिड़काव हो रहा था। भक्तों के लिए भीतर बाहर गोले बने थे। हाथ-पांव धोने के लिए इन्तज़ाम था। बार बार घोषणा हो रही थी कि एक बार में दस से ज़्यादा आदमियों का प्रवेश नहीं होगा, और भीतर पाँच मिनट से ज़्यादा नहीं रुकना है। यह भी कि पैंसठ से ऊपर के भक्त घर पर ही सुमिरन करें।

बाहर एक बुज़ुर्ग हाथ झटक झटक कर कुछ शिकायत कर रहे थे। कह रहे थे, ‘पैंसठ से ऊपर वालों को भगवान के दर्शन की रोक क्यों? भगवान के पास तो सबसे पहले उन्हीं को जाना है, फिर उन्हें रोकने से क्या फायदा? फिर यह भगवान की टैरिटरी है, यहाँ दुनिया भर की बन्दिशें लगाने का क्या मतलब? यहाँ तो भगवान की मर्जी के बिना परिन्दा भी पर नहीं मार सकता, वायरस की क्या मजाल? अभी तक भगवान आदमी की रक्षा करते थे, अब क्या हम भगवान के रक्षक बनेंगे?’

हिम्मत भाई लाइन में लग गये, लेकिन अभी भी चिन्तित थे। भगवान को कैसे मुँह दिखाएंगे? सोचते सोचते, धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे। उनकी गति देखकर मन्दिर का एक कर्मचारी चिल्लाया, ‘जल्दी आगे बढ़ो, भगत जी। कछुआ चाल मत चलो। ‘

हिम्मत भाई खिसकते खिसकते अन्दर मूर्ति के सामने पहुँच गये। थोड़ी देर आँखें झुकाये, मौन खड़े रहे, फिर हाथ जोड़कर बोले, ‘प्रभु,गलती माफ कर देना। ढाई महीने बाद हाज़िर हुआ हूँ। हम क्या करते, आपके पट ही बन्द हो गये थे। ‘

फिर बोले, ‘प्रभु, हम मनुष्य ऐसे ही हैं। वैसे तो आपको भजते थकते नहीं हैं, लेकिन संकट बड़ा होते ही हमारा भरोसा डगमगाने लगता है। फिर डाक्टर और अस्पताल की तरफ भागते हैं। अब बताइए, आपसे बड़ा डाक्टर कौन होगाऔर आपसे बेहतर दवा कहाँ मिलेगी?मुझे लगता है कि आपके मन्दिर के पट बन्द होना ठीक नहीं हुआ। ‘

हिम्मत भाई थोड़ा रुककर बोले, ‘प्रभु, मेरी अल्पबुद्धि के अनुसार आपकी तरफ से होने वाले कुछ काम बन्द होने से आदमी का भटकाव बढ़ा है। पहला यह कि पहले आपके लोक से आकाशवाणी होती थी जिससे आपके ज़रूरी निर्देश मिल जाते थे। वह पूरी तरह बन्द हो जाने से आपसे संवाद नहीं होता। अब लोग रेडियो वाणी को ही आकाशवाणी मानते हैं। दूसरे, आपने हमारी धरती पर चमत्कार करना बन्द कर दिया है।  हम चमत्कार-प्रेमी लोग हैं। थोड़े बहुत चमत्कार होते रहें तो आपमें हमारी आस्था मज़बूत होती रहेगी। अभी ढोंगी लोग आपके नाम पर चमत्कार कर रहे हैं और अपनी जेबें भर रहे हैं। आकाशवाणी शुरू होने का एक फायदा यह होगा कि धरती पर जो अपने को भगवान समझते हैं वे कंट्रोल में रहेंगे। इसलिए ये दोनों काम जल्दी शुरू हो जाएं तो आदमी की बुद्धि भ्रमित नहीं होगी। ‘

इतना कह कर, एक बार फिर अपनी गलती की क्षमा माँगकर हिम्मत भाई मन्दिर से बाहर हो गये।

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 13 ☆ मुक्तिका ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपके मुहावरेदार दोहे. 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 13 ☆ 

☆ मुक्तिका☆ 

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

धीरे-धीरे समय सूत को, कात रहा है बुनकर दिनकर

साँझ सुंदरी राह हेरती कब लाएगा धोती बुनकर

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

मैया रजनी की कैयां में, चंदा खेले हुमस-किलककर

तारे साथी धमाचौकड़ी मच रहे हैं हुलस-पुलककर

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

बहिन चाँदनी सुने कहानी, धरती दादी कहे लीन हो

पता नहीं कब भोर हो गयी?, टेरे मौसी उषा लपककर

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

बहकी-महकी मंद पवन सँग, क्लो मोगरे की श्वेतभित

गौरैया की चहचह सुनकर, गुटरूँगूँ कर रहा कबूतर

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सदा सुहागन रहो असीसे, बरगद बब्बा करतल ध्वनि कर

छोड़न कल पर काम आज का, वरो सफलता जग उठ बढ़ कर

 ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 11 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 11/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 11 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

बस इतना सा असर होगा

हमारी यादों का

कि कभी कभी तुम बिना

बात मुस्कुराओगे…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

The only effect of my

Memories will be that

  Sometimes without any

Reason you will smile…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

काश मिल जाये हमें भी

कोई किसी आईने की तरह

जो हँसे भी साथ साथ

और रोये भी साथ साथ…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

Wish I could also have

 Someone like a mirror

  Who could laugh together

    And  even  cry together …

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

उन्हें  ठहरे…

समुंदर  ने  डुबोया

जिन्हें  तूफ़ाँ  का…

अंदाज़ा  बहुत  था…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

Calm seas…

drowned them only…

Who claimed to have great 

experience of braving the storms

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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