हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 23 ☆ कविता –नारी अनुशासन की जानी  ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि‘

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी एक अतिसुन्दर और  मौलिक कविता नारी अनुशासन की जानी।  श्रीमती कृष्णा जी ने  इस कविता के माध्यम से नारी शक्ति पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं ।  इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 23 ☆

☆ कविता  – नारी अनुशासन की जानी  ☆

 

नारी अनुशासन की जानी

बिगड़ी बात बना के  मानी

 

फँसी भँवर हिम्मत न हारती

नैया पार लगाना  है ठानी

 

अतीत बुरा बातें पुरानी

छोड़ो सभी बातें उबानी

 

आने वाला कल का सवेरा

सुखद सभी हों स्वाभिमानी

 

अज्ञानता  क्षीरण हो जाए

ज्ञान के चक्षु खोले वाणी

 

नदियों का कलरव झरनों ने

हिलमिल सबने खुशी बखानी

 

पाषाणी ह्रदय है हठीला

आँखें करती बेईमानी

 

मौन मनन करता है जब जब

गहरी थाह पढे जब ज्ञानी

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ गांधी चर्चा # 26 – महात्मा गांधी और डाक्टर भीमराव आम्बेडकर – 4 ☆ श्री अरुण कुमार डनायक

गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष

श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचानेके लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. 

आदरणीय श्री अरुण डनायक जी  ने  गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  02.10.2020 तक प्रत्येक सप्ताह गाँधी विचार  एवं दर्शन विषयों से सम्बंधित अपनी रचनाओं को हमारे पाठकों से साझा करने के हमारे आग्रह को स्वीकार कर हमें अनुग्रहित किया है.  लेख में वर्णित विचार  श्री अरुण जी के  व्यक्तिगत विचार हैं।  ई-अभिव्यक्ति  के प्रबुद्ध पाठकों से आग्रह है कि पूज्य बापू के इस गांधी-चर्चा आलेख शृंखला को सकारात्मक  दृष्टिकोण से लें.  हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें। डॉ भीमराव  आम्बेडकर जी के जन्म दिवस के अवसर पर हम आपसे इस माह महात्मा गाँधी जी एवं  डॉ भीमराव आंबेडकर जी पर आधारित आलेख की श्रंखला प्रस्तुत करने का प्रयास  कर रहे हैं । आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला का चतुर्थ एवं अंतिम आलेख  “महात्मा गांधी और डाक्टर भीमराव आम्बेडकर। )

☆ गांधीजी के 150 जन्मोत्सव पर  विशेष ☆

☆ गांधी चर्चा # 26 – महात्मा गांधी और डाक्टर भीमराव आम्बेडकर – 4

जब डाक्टर आम्बेडकर दलितों के लिए संघर्ष कर रहे थे तब उनका प्रभाव क्षेत्र वर्तमान  महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश का कुछ भू-भाग था। महाराष्ट्र की राजनीति में ब्राह्मणों का अच्छा वर्चस्व था और तब तक नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना भी हो चुकी थी। लेकिन डाक्टर आम्बेडकर को किसी भी रुढीवादी हिन्दू संगठन या बड़े  नेतृत्व का साथ उनके सत्यागृह व अछुतोद्दार आन्दोलन मे नहीं मिला। कतिपय ब्राह्मण मित्रों के अलावा, जिन्होंने डाक्टर आम्बेडकर के आह्वान पर दलितों का यज्ञोपवीत संस्कार किया, रत्नागिरी में नजरबन्द विनायक दामोदर उर्फ़ वीर  सावरकर ने उनका भरपूर साथ दिया। यद्दपि वीर सावरकर रत्नागिरी से बाहर नहीं जा सकते थे तथापि उन्होंने वहां अछूतों के लिए पतितपावन मंदिर की स्थापना की और एक पृथक स्कूल खोलने का प्रस्ताव दिया जहाँ अछूतों के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकें। उन्होंने समय समय पर पत्राचार द्वारा डाक्टर आम्बेडकर के प्रयासों को पूर्ण समर्थन दिया तथा सनातनी हिन्दुओं को भी सामाजिक भेदभाव के लिए लताड़ा। वीर सावरकर की सहमति डाक्टर आम्बेडकर रोटी बेटी सम्बन्ध से भी थी। यद्दपि हिन्दू महासभा के अन्य नेता तथा घनश्यामदास बिडला सरीखे सनातनी हिन्दू अस्पृश्यता  को तो दूर करना चाहते थे पर दलितों के साथ रोटी बेटी सम्बन्ध को लेकर उन्हें आपत्ति थी। गांधीजी उस समय अंग्रेजों की अनेक कूटनीतिक चालों का अपने राजनीतिक अस्त्र सत्य और अहिंसा से जबाब दे रहे थे। मुसलमानों को राष्ट्रीय  आन्दोलन से जोड़ने के उनके प्रयासों की आलोचना की जा रही थी और उसे मुस्लिम तुष्टिकरण का नाम दिया जा रहा था, दूसरी ओर युवा वर्ग, क्रांतिकारियों के विचारों की ओर आकर्षित होकर, हिंसा का रास्ता अपनाने उत्सुक हो रहा था। ऐसे समय में गांधीजी के सामने बड़ी विकट स्थिति थी वे हिन्दू समाज में संतुलन बनाए रखना चाहते थे साथ ही दलित समुदाय को अलग-थलग भी नहीं होने देना चाहते थे। गांधीजी की सौम्यता भरी नीतियों ने उस वक्त समाज को विघटन से बचाने में बड़ी मदद की।

जब 1937 में गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट के तहत राज्य विधान मंडल के चुनाव हुए तो डाक्टर आम्बेडकर ने महाराष्ट्र में कांग्रेस के विरुद्ध अपने प्रत्याक्षी खड़े किये फलस्वरूप कांग्रेस वहाँ सबसे बड़े दल के रूप में तो चुनाव जीती पर उसे सरकार बनाने के लिए निर्दलीय विधायकों का साथ लेना पडा क्योंकि डाक्टर आम्बेडकर ने कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इसी समय मोहमद अली जिन्ना ने मुसलमानों की पृथकतावादी मांगों को जोरशोर से उठाना शुरू कर दिया और उनके लिए अलग राष्ट्र की मांग की। इधर डाक्टर आम्बेडकर भी यदाकदा दलितों से हिन्दू धर्म त्यागने की बात करने लगे और मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्मों के लोग उनपर डोरे डालने लगे। इस दौरान डाक्टर आम्बेडकर को एक दो अवसर पर मुस्लिम लीग ने अपने कार्यक्रमों मे बुलाया और जब कांग्रेस ने आठ राज्यों के अपने मंत्रिमंडल को इस्तीफा देने का निर्देश नवम्बर 1939 में दिया तो मुस्लिम लीग ने इसे मुक्ति दिवस के रूप में मनाया। लीग के इस आयोजन में डाक्टर आम्बेडकर भी भाषण देने पहुंचे। आम जनता में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। उस दौरान जब गांधीजी और कांग्रेस लीग की पृथक राष्ट्र पाकिस्तान बनाने की मांग का विरोध करते हुए अखंड भारत पर जोर दे रहे थे तब डाक्टर आम्बेडकर ने 1940 में ‘थाट्स ऑन पाकिस्तान’ नामक पुस्तक लिखकर मुसलमानों की पृथक राष्ट्र संबंधी मांग का समर्थन कर दिया। जब देश में भारत छोड़ो आन्दोलन जोरों पर था तब भी डाक्टर आम्बेडकर ने इसमें अपनी भागीदारी न दिखाते हुए फ़ौज में दलितों की भर्ती का अभियान चलाया। इस प्रकार हम पाते हैं कि गांधीजी और डाक्टर आम्बेडकर की नीतियों और तरीकों में गंभीर मतभेद थे पर वे दोनों एक बात पर तो सहमत थे वह था अछूतोद्धार।

स्वराज प्राप्ति के बाद गांधीजी के अनुरोध पर ही संविधान सभा में डाक्टर आम्बेडकर को शामिल किया गया और इस प्रकार एक समता मूलक एवं लोकतांत्रिक  संविधान की रचना संभव हो सकी जिसका सपना महात्मा गांधी ने आज़ादी के पहले देखा था और जिसका वायदा उन्होंने डाक्टर आम्बेडकर से पूना पेक्ट के जरिये किया था। डाक्टर आम्बेडकर ने देश को उदार  राजनीतिक लोकतंत्र का संविधान दिया । उनके मतानुसार आर्थिक लोकतंत्र हांसिल करने के अनेक मार्ग यथा व्यक्तिवादी, समाजवादी, साम्यवादी हो सकते हैं, और किसी एक मार्ग का चयन समूह विशेष की तानाशाही का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, इसीलिए उन्होंने  अर्थनीति के निर्धारण का दायित्व चुनी हुई सरकार पर छोड़ा गया और प्राकृतिक संसाधनों के राष्ट्रीयकरण का विरोध किया।   आम्बेडकर  संविधान निर्माण में भी कतिपय विषयों पर आम्बेडकर का गांधीवादियों से टकराव हुआ। आम्बेडकर एक शक्तिशाली केंद्र पर आश्रित व्यवस्था के समर्थक थे । डाक्टर आम्बेडकर मानते थे कि आवश्यकता से अधिक संघवाद पूरे देश में संविधान के समान रूप से क्रियान्वयन को अवरुद्ध करेगा और अस्पृश्यता समाप्ति  जैसे विषयों को अनेक राज्य लागू करने से मना कर देंगे। गांधीजी के समर्थक गाँव के स्तर तक सत्ता के विकेंद्रीकरण के पक्षधर थे वे नए संविधान में प्राचीन भारत के राजनय की झलक देखना चाहते थे और पश्चिमी लोकतांत्रिक व्यवस्था की जगह नए संविधान को ग्राम पंचायतों और जिला पंचायतों की आधारशिला पर खडा करना चाहते थे। अंततः डाक्टर आम्बेडकर ने अपने तर्कों से आवश्यकता से अधिक संघवाद के प्रस्तावों को खारिज करवा दिया और इस प्रकार संविधान निर्माण में गांधीजी के ग्राम स्वराज संबंधी चिंतन की उपेक्षा हुई। आगे चलकर  प्राकृतिक संसाधनों के राष्ट्रीयकरण व पंचायती राज्य संबंधी संविधान संशोधन विभिन्न स्वरूपों में इंदिरा गांधी ,राजीव गांधी व नरसिम्हा राव  के प्रधानमंत्रित्व में पारित हुए। त्रिस्तरीय पंचायती राज्य व्यवस्था लागू करने  के प्रयास तो 1956 से ही शुरू हो गए थे पर इसे गति प्रदान की राजीव गांधी ने और अंततः 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से गांधीजी का पंचायती राज का सपना 1993 में लागू हुआ। डाक्टर आम्बेडकर ने गांधीवादियों के द्वारा दिए गए अन्य सुझाव जैसे शराब बंदी, ग्रामीण क्षेत्रों कुटीर उद्योगों की स्थापना, सहकारिता को प्रोत्साहन, गौवध  आदि विषयों को भी संविधान के मौलिक विषयों / अधिकारों की बजाय  नीति निर्देशक सिद्धांतों संबंधी अनुछेद में शामिल करवाया।इसके फलस्वरूप यह सभी बातें जो  गांधीजी के रचनात्मक कार्यक्रम का हिस्सा रही हैं वे समान रूप से सारे देश में लागू नही की जा सकीं एवं इन्हें संघ के राज्यों पर उचित कदम लेने हेतु अधिकृत कर दिया गया। चूँकि यह सभी बातें संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत वर्गीकृत की गई अत: नागरिकों के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं रहा जिससे वे संघ या राज्य पर इसे लागू करने हेतु संवैधानिक अधिकारों के तहत दावा कर सकें। कतिपय राज्यों ने इन नीति निर्देशक सिद्धांतों संबंधी अनुछेद का सहारा लेकर अपने अपने राज्यों में कुटीर उद्योग, सहकारिता, शराब बंदी आदि को सफलतापूर्वक लागू कर गांधीजी के सपनों को साकार किया। लघु एवं ग्रामोंद्योग को लेकर भी सरकारों ने अपने स्तर पर आधे अधूरे प्रयास किये और आपसी तालमेल के अभाव में वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हो सके।

इस प्रकार हम देखते हैं कि इन दोनों महापुरुषों में अस्पृश्यता को लेकर गहन मतभेद तो थे पर दोनों के प्रयास एक दूसरे के पूरक थे और उनके प्रयासों ने इन समस्या के निदान में महती भूमिका का निर्वहन किया।  यद्दपि डाक्टर आम्बेडकर ने अनेक बार कठोर रुख अपनाया और अपनी बात पर अडिग रहे तथापि उनके मन में महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धा का भाव था और वे यह भलीभांति जानते थे कि देश हित में महात्मा गांधी का स्थान महत्वपूर्ण है। इसी भावना के वशीभूत होकर उन्होंने पूना पैक्ट को स्वीकार किया और इस प्रकार गांधीजी के प्राणों की रक्षा हो सकी। डाक्टर आम्बेडकर ने गांधीजी की, अस्पृश्यता के संबंधी विचारों का दोनों स्तर पर विरोध किया। डाक्टर आम्बेडकर  अस्पृश्यता को सामाजिक बुराई ही नहीं वरन अभिशाप भी मानते थे। वे गांधीजी की दलील से सहमत नहीं थे कि     अस्पृश्यता वर्ण व्यवस्था या जाति प्रथा के कारण नहीं है। उन्होंने गांधीजी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत का भी इसी आधार पर विरोध किया और कहा कि जैसे सवर्ण अछूतों को उनके सामजिक अधिकारों से वंचित रखना चाहते हैं उसी प्रकार अमीर भी गरीबों को अपना धन कैसे दे सकते हैं। वे गांधीजी की इस बात से भी असहमत थे कि जाति प्रथा भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करती है और यह रोजगार की गारंटी भी देती है। महात्मा गांधी से उनके मतभेद संविधान निर्माण में भी परिलक्षित हुए हैं।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सामाजिक चेतना – #46 ☆ अक्षय तृतीया विशेष – अक्षय हो संस्कार ☆ सुश्री निशा नंदिनी भारतीय

सुश्री निशा नंदिनी भारतीय 

(सुदूर उत्तर -पूर्व  भारत की प्रख्यात  लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना की अगली कड़ी में  प्रस्तुत है  अक्षय तृतीया पर्व पर विशेष कविता अक्षय हो संस्कार ।आप प्रत्येक सोमवार सुश्री  निशा नंदिनी  जी के साहित्य से रूबरू हो सकते हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना  #46 ☆

☆  अक्षय तृतीया विशेष – अक्षय हो संस्कार  ☆

 

अक्षय तृतीय पर

हम करते हैं कामना

धन-संपत्ति अक्षय होने की

सुख-शांति अक्षय होने की

रिश्ते-परिवार अक्षय होने की

नहीं करते हम कामना

संस्कृति-संस्कार, भक्ति

अक्षय होने की

हो गई अगर भक्ति अक्षय

सुसंस्कार-संस्कृति अक्षय

मिलेगा सुख-शांति चैन

धन-संपदा मिल जाएगी

बचेंगे रिश्ते टूटने से

व्यक्ति-व्यक्ति से जुड़ जायेगा

परिवार, समाज व देश बनेगा

भ्रष्टाचार मिट जाएगा।

दुर्गुणों से दूर होकर

काम, क्रोध, लोभ, मोह

डर कर छिप जाएगा,

सबसे बड़ा धन संतोष

जीवन में आ जाएगा।

भक्ति संस्कार-संस्कृति ही

जड़-जीवन की आधार शिला

हे प्रभु ! करो कुछ ऐसा

इस अक्षय तृतीया पर

अक्षय हो संस्कार-संस्कृति

भ्रमण करें धरती पर

बेल फैले सुकर्मों की

रचना हो रामराज्य की।

 

© निशा नंदिनी भारतीय 

तिनसुकिया, असम

9435533394

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 44 ☆ व्यंग्य – संशय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी  सामजिक एवं प्रशासनिक प्रणाली पर काफी कुछ कहता एक  व्यंग्य   “संशय” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 44

☆ व्यंग्य – संशय ☆ 

सुंदरपुर अब बड़े कस्बे से छोटे शहर में तब्दील हो गया था। सुंदरपुर के सबसे बड़े अमीर सेठ मानिक लाल के यहां चोरी हो गई।  स्थानीय अखबार ने इस बड़ी चोरी में पुलिस के आदमी का हाथ होना बताया। रामदीन ने अखबार में सुबह-सुबह पढ़ा। पुलिस वालों में उत्सुकता हो गई कि बड़े सेठ के यहां किस पुलिस वाले ने लम्बा हाथ मार दिया। रामदीन की एक साल पहले ही पुलिस में नौकरी लगी थी, ईमानदार टाइप का भी था और डरपोंक, सीधा सादा। हालांकि रामदीन पोस्ट ग्रेजुएट था पर गरीबी रेखा के नीचे का आदमी था इसलिए सुंदरपुर थाने में उसे कुत्ता संभालने की ड्यूटी दी गई। जब कहीं चोरी होती तो रामदीन कुत्ते की चैन पकड़ कर कुत्ते के साथ भागता, दौड़ता, रुकता, कुत्ते के नखरे के अनुसार वह इमानदारी से ड्यूटी करता।

सेठ मानिक लाल के यहां की चोरी में लोग पुलिस वाले पर शक कर रहे थे तो वह थाने से कुत्ते को लेकर निकला। पीछे पीछे उसके बड़े साहब लोग जीप से चल रहे थे। दौड़ते – दौड़ते एक जगह वह पुलिस का काला कुत्ता रुक जाता है। रामदीन चारों ओर देखता है दूर दूर तक कहीं कोई नहीं दिखता पीछे से आते पुलिस के साहबों का कुनबा जरुर दिखता है। रामदीन चौकन्ना हो जाता है पास में एक कुतिया कूं कूं करती खड़ी दिखती है। कुत्ता सोचता है – क्या कमसिन कुतिया है? कुत्ते को देखकर कुतिया भी सोचती है – कितना बांका कुत्ता है।

रामदीन सचेत होकर कुत्ते को घसीटते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करता है परन्तु कुत्ता ड्यूटी के नियमों को ताक पर रखकर रामदीन को पीछे घसीटने लगता है और गुस्से में रामदीन के चक्कर लगा लगाकर भौंकने लगता है। रामदीन डर जाता है सोचता है बड़ी मुश्किल से तो नौकरी लगी थी और ये कुत्ता नाराज होकर अपनी ड्यूटी भूल गया है। कहां से बीच में ये कुतिया आ गई। रुक कर रामदीन को लगातार भोंकते कुत्ते को देखकर साहबों ने रामदीन को पकड़ कर हथकड़ी डाल दी। रामदीन बहुत रोया, गिड़गिड़ाता रहा कि सर चोरी नहीं की, ये कुत्ता आवेश में आकर मुझसे बदला ले रहा है। थोड़ी देर के लिए इसका दिमाग भटक गया था, ये चाहता था कि थोड़ी देर के लिए उसे छोड़ दिया जाय पर मैंने देशभक्ति और जनसेवा को आदर्श मानकर इसको अनुशासन का पाठ सिखाया इसीलिए ये नाराज होकर मुझ पर भौंकने लगा।

साहब ने एक न माना बोला –  कुत्ते ने आपको पकड़ा, आपके चारों ओर चक्कर लगा लगा कर भौंका, इसलिए “अवर डिसीजन इज फाइनल।”

दूसरे दिन अखबार में चोरी के इल्ज़ाम में रामदीन की कुत्ता पकडे़ शानदार तस्वीर छपी थी। अखबार की भविष्यवाणी सही थी….

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 5 ☆ हर तरफ मौत का सामान ☆ डॉ निधि जैन

डॉ निधि जैन 

ई- अभिव्यक्ति में डॉ निधि जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपने हमारे आग्रह पर हिंदी / अंग्रेजी भाषा में  साप्ताहिक स्तम्भ – World on the edge / विश्व किनारे पर  प्रारम्भ करना स्वीकार किया इसके लिए हार्दिक आभार।  स्तम्भ का शीर्षक संभवतः  World on the edge सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं लेखक लेस्टर आर ब्राउन की पुस्तक से प्रेरित है। आज विश्व कई मायनों में किनारे पर है, जैसे पर्यावरण, मानवता, प्राकृतिक/ मानवीय त्रासदी आदि। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  जीवन के स्वर्णिम कॉलेज में गुजरे लम्हों पर आधारित एक  समसामयिक भावपूर्ण एवं सार्थक कविता  हर तरफ मौत का सामान।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ World on the edge / विश्व किनारे पर # 5 ☆

☆  हर तरफ मौत का सामान ☆

 

रास्ते गलियां सुनसान हैं, घर में कैद इंसान है

संभल के जियो, हर तरफ मौत का सामान है ।

 

दुनिया बंद, इंसान परेशान है,

संभल के जियो,हर तरफ मौत का सामान है ।

 

कैसा समय है  इंसान कैद, पंछी उड़ते गगन में खुला आसमान है,

संभल के जियो, हर तरफ मौत का सामान है।

 

सब बेहाल परेशान हैं, ना किसी से मिलना ना किसी के घर जाना,

डरा हुआ सा इंसान है, हर तरफ मौत का सामान है।

 

ना बरखा की बूंदे अच्छी लगती, ना कोयल की कूके,

बदलते मौसम से परेशान, हर तरफ मौत का सामान ।

 

मंदिर के दरवाजे बंद, न घंटियों की झंकार,

ना अगरबत्ती की खुशबू  फलती, हर तरफ मौत का सामान ।

 

ना चाकू, ना पिस्तौल है, ना रन है

जीव जंतु औजार हैं, करते बेहाल हैं, हर तरफ मौत का सामान।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 47 ☆ व्यंग्य – प्रेम और अर्थशास्त्र ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है व्यंग्य  ‘प्रेम और अर्थशास्त्र’।  फ़िल्में देख कर  पैदा हुए सपनों का घर बनाने के लिए घर से भाग कर विवाह करने वाले युवक युवतियों  को जब प्रेम के पीछे छुपे अर्थशास्त्र से रूबरू होना पड़ता है ,तो  उनको डॉ परिहार जी का यह व्यंग्य अर्थशास्त्र के सारे सिद्धांत समझा देता है। ऐसे  अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 47 ☆

☆ व्यंग्य – प्रेम और अर्थशास्त्र ☆

हेमलता का प्रेम उस स्टेज में था जिसमें चाँदनी, बरसात की फुहार, नदी का किनारा ही संपूर्ण ज़िन्दगी होते हैं। रोमांस की चूलें हिलना तब शुरू होती हैं जब उसमें राशन-पानी, बनिये का उधार, बच्चों की पढ़ाई प्रवेश करती है। तब तक सब हरा-हरा होता है।

हेमलता बार बार सुधीर से कहती थी, ‘तुम मेरे साथ शादी क्यों नहीं करते?अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। हम मिलकर सुनहरी जिन्दगी की नींव डालेंगे।’

सुधीर के पाँव ज़मीन पर थे। वह कहता, ‘बाई, तू ठीक कहती है। मैं भी तेरे बिना नहीं रह सकता। लेकिन ज़िन्दगी सुनहरी सोने से होती है।  मैं अभी बेरोज़गार हूँ और बिना रोज़गार के तेरे पिता तेरा हाथ मेरे हाथ में देंगे नहीं। अभी शादी करके मैं तुझे खिलाऊँगा क्या?खाली प्रेम से तो पेट भरने वाला नहीं।’

हेमलता रूठ जाती, कहती, ‘तुम प्रेम के बीच में यह राशन-पानी लाकर सब मज़ा किरकिरा कर देते हो। मेरा प्रेम भूखे पेट ज़िन्दा रह सकता है। तुमने ‘मैंने प्यार किया’ फिल्म देखी है?उसमें हीरो ने मज़दूरी करके अपने प्रेम को ज़िन्दा रखा था।’

सुधीर माथा ठोककर कहता, ‘बाई, फिल्मों की बातें झूठी होती हैं। उस हीरो ने फिल्मों से बाहर गरीबी देखी भी नहीं होगी। इसके अलावा आजकल जितनी मज़दूरी मिलती है उतने पर प्यार को ज़िन्दा नहीं रखा जा सकता।’

हेमलता शिकायत के स्वर में कहती, ‘तुम बहानेबाज़ हो। शादी न करने के बहाने ढूँढ़ते हो। मुझे प्यार नहीं करते।’

अन्त में प्रेमी ने हथियार फेंक दिये और दोनों ने चुपचाप शादी कर ली।

सुधीर ने एक दोस्त से बीस हज़ार रुपये उधार लिये और एक कमरा किराये पर ले लिया। दोनों के परिवारों ने उनका बायकाट कर दिया।

कुछ दिन खूब रंगीन हवा में तैरते बीते।  घूमना-घामना, सिनेमा देखना, होटल में खाना खाना। फिर ज्यों ज्यों पैसा समाप्ति की तरफ बढ़ने लगा, सुधीर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। वह दिन भर नौकरी के चक्कर में घूमता।

सिनेमा कम हुआ, सैर-सपाटे सिमट गये,होटल का खाना घट कर नाश्ते पर आ गया, फिर चाय से संतोष होने लगा।

फिर एक दिन घर में दूध आना बन्द हो गया। कारण पता चला तो हेमलता की हालत खराब हो गयी। रुआंसी होकर बोली, ‘चाय के बिना तो मैं मर जाऊँगी।’

सुधीर फिर कहीं से दस हज़ार रुपये लाया। फिर गाड़ी मंथर गति से चली।

एक दिन सुधीर की अनुपस्थिति में मकान-मालिक का कलूटा मुंशी घर में आ गया। तोंद खुजाते हुए बोला, ‘बाई, दो महीने का किराया चढ़ गया है। चुका दो। सेठ बहुत खराब आदमी है, सामान फिंकवा देगा।’

हेमलता की साँस ऊपर चढ़ गयी।

धीरे धीरे घर में कलह शुरू हुई। सुधीर नौकरी के चक्कर में शहर की ख़ाक छानकर आता और अपनी खीझ हेमलता पर उतारता। हेमलता उसे दोष देती। रोना धोना होता। फिर मान-मनौव्वल के बाद सुलह हो जाती। दूसरे दिन फिर वही नोंक-झोंक।

अब सुधीर की हालत देखकर हेमलता को लगता कि नौकरी से पहले शादी करना गलत हो गया। अर्थशास्त्र प्रेम का कचूमर निकालने पर तुल गया था।

इसी तरह रस सूखता रहा। ज़िन्दगी चारदीवारी तक सीमित रह गयी। अकेलापन, सुधीर का इंतज़ार, नमक-दाल की फिक्र। रोमांस पंख लगा कर उड़ गया।

फिर एक दिन सुधीर एक लिफाफा लेकर लौटा। खुशी से बोला, ‘मेरी नौकरी लग गयी। अभी पच्चीस हज़ार मिलेंगे।’

हेमलता खुश होकर बोली, ‘अब तो हमें दिक्कत नहीं रहेगी?’

‘न।’

‘हम सिनेमा देखने जा सकेंगे?’

‘ज़रूर।’

‘घूमने जा सकेंगे?’

‘बिलकुल।’

‘अब मकान-मालिक तो हमें तंग नहीं करेगा?’

‘नहीं।’

‘अब तुम मुझसे लड़ोगे तो नहीं?’

‘नहीं लड़ूँगा।’

खुशी से हेमलता की आँखों में आँसू आ गये। लेकिन लगा कि अर्थशास्त्र उनके रोमांस का कुछ हिस्सा काट ले गया है, जो अब वापस नहीं लौटेगा।

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 4 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

 ☆ Anonymous Litterateur of Social  Media # 4 / सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 4☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का अंग्रेजी भावानुवाद  किया है।  इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

 

  नज़र जिसकी समझ सके

वही  दोस्त  है वरना…

खूबसूरत   चेहरे  तो

दुश्मनों के भी होते हैं…

Just a glance  of  whose,

perceives you, is your friend

  Otherwise even enemies

Too  have  pretty  faces…!

§

हो के मायूस यूँ ना

शाम से ढलते रहिए

ज़िंदगी आफ़ताब है

रौशन निकलते रहिए…

Being  dejected don’t you

ever be the dusking Sun

Life is like the radiant Sun

Keep  rising  resplendently…!

§

  ना इलाज  है 

ना   है दवाई….

ए इश्क तेरे टक्कर 

की  बला  है आई…

Neither  exists  any  cure

Nor is  there  any medicine

O’ love ailment matching you

Has  emerged on  the earth…!

§

ये जब्र भी देखा है

तारीख की नज़रों ने

लम्हों ने खता की थी

सदियों ने  सजा पाई…!

Have also seen such constraints

Through the eyes of the time

Moments had committed mistake

But the centuries got punished!

 

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 31 – हाँ! मैं टेढ़ी हूँ ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  स्त्री -शक्ति पर आधारित एक सार्थक एवं भावपूर्ण रचना  ‘हाँ! मैं टेढ़ी हूँ । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 31– विशाखा की नज़र से

☆ हाँ ! मैं टेढ़ी हूँ  ☆

 

तुम सूर्य रहे, पुरुष रहे

जलते और जलाते रहे

मैं स्त्री रही, जुगत लगाती रही

मैं पृथ्वी हो रही

अपने को बचाने के जतन में

मैं ज़रा सी टेढ़ी हो गई

 

मैं दिखती रही भ्रमण करते हुए

तेरे वर्चस्व के इर्दगिर्द

बरस भर में लगा फेरा

अपना समर्पण भी सिद्ध करती रही

पर स्त्री रही तो मनमानी में

घूमती भी रही अपनी धुरी पर

 

टेढ़ी रही तो फ़ायदे में रही

देखे मैंने कई मौसम

इकलौती रही पनपा मुझमें ही जीवन

तेरे वितान के बाकी ग्रह

हुए क्षुब्ध , वक्र दृष्टि डाले रहे

पर उनकी बातों को धत्ता बता

मैं टेढ़ी रही ! रही आई वक्र !

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 5 ☆ नींव के पत्थर ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी लघुकथा “विश्व में कविता समाहित या कविता में विश्व?”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 5 ☆ 

☆  नींव के पत्थर ☆ 

महल के कलश कितने भव्य हैं… मीनारें तो देखो कितनी सुंदर हैं…. दीवारों पर की गई पच्चीकारी अद्वितीय है…. छतों पर अद्भुत चित्रकारी है… वातायनों और गवाक्षों पर कैसी मनोहर बेलें हैं… दर्शक भावविभोर रहकर प्रशंसा कर रहे थे।

किसी ने एक भी शब्द नहीं कहा उन सीढ़ियों के लिए जो पूर्ण समर्पण के साथ मौन रहकर उठाये थीं उन सबका भार और अदेखे रह गये महल का असहनीय भार पल-पल अपने सिर पर उठाये नींव के पत्थर।

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

३-४-२०२०

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 8 ☆ त्या कोणत्या क्षणाला……. ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “त्या कोणत्या क्षणाला…….“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 8 ☆

☆ कविता – त्या कोणत्या क्षणाला…….

 

त्या धुंद सुगंधाने,मदहोश जाहलो मी

सगळे कळे तरीही, बेहोश जाहलो मी ।।

 

धुंदीत मती गुंग,गुंगीत प्यायलो मी

संपुर्ण विश्र्व सोडूनी,पेल्यात मावलो मी।।

 

पेले असे शराबी,अडखळत पावलांनी

रिचवीत मात्र गेलो,थरथरती हात दोन्ही।।

 

त्या कोणत्या क्षणाला ,हा येथ धावलो मी

माझ्याच भविष्याच्या,काळ्यास भोवलो मी।।

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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