मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मीनाक्षी साहित्य – हिरवा गाव – ☆ सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। कई पुरस्कारों/अलंकारों से पुरस्कृत/अलंकृत सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी का जीवन परिचय उनके ही शब्दों में – “नियतकालिके, मासिके यामध्ये कथा, ललित, कविता, बालसाहित्य  प्रकाशित. आकाशवाणीमध्ये कथाकथन, नभोनाट्ये , बालनाट्ये सादर. मराठी प्रकाशित साहित्य – कथा संग्रह — ५, ललित — ७, कादंबरी – २. बालसाहित्य – कथा संग्रह – १६,  नाटिका – २, कादंबरी – ३, कविता संग्रह – २, अनुवाद- हिंदी चार पुस्तकांचे मराठी अनुवाद. पुरस्कार/सन्मान – राज्यपुरस्कारासह एकूण अकरा पुरस्कार.)

अब आप सुश्री मीनाक्षी सरदेसाई जी के साप्ताहिक स्तम्भ – मीनाक्षी साहित्य को प्रत्येक बुधवार आत्मसात कर सकेंगे । आज प्रस्तुत है ग्राम्य संस्कृति की झलक प्रस्तुत कराती एक भावपूर्ण कविता  हिरवा गाव.

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मीनाक्षी साहित्य – हिरवा गाव – ☆

हिरव्या साडीतली कुलीन  केळ।

मांडवावरची  शालीन  वेल

हिरव्या  पोरी  मारताहेत  भाव

वसलाय तेथे हिरवा  गाव    ।।

 

गुलमोहोराचं गुलजार रूप

प्राजक्त भोळा  फुललाय खूप

पानांत रंगलाय पाखरांचा डाव

वसलाय तेथे ——–

 

शेवंती, चमेली, जाईजुई नाजुक

काट्यांतून हसतय गुलाबाचं कौतुक

कोरांटी, तगरीचा सरळ स्वभाव

वसलाय तेथे ——–

 

ऊंच माडांचे झुलताहेत पंखे

सलामी देताहेत अशोक उलटे

जास्वंद हसतेय लालम् लाल

वसलाय तेथे ——-

 

हिरव्या गावात पावसाचा उत्सव

फुलापानांचं, फळांचं वैभव

ढगांच्या भाराने वाकलंय आभाळ

वसलाय तेथे हिरवा गाव  ।।

 

 

© मीनाक्षी सरदेसाई

‘अनुबंध’, कृष्णा हास्पिटलजवळ, पत्रकार नगर, सांगली.४१६४१६.

मोबाईल  नंबर   9561582372, 8806955070

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 37 ☆ लघुकथा – ईश्वर मनुष्य बन्दर ☆ श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक अत्यंत  भावुक लघुकथा  ईश्वर मनुष्य बन्दर।  संयोगवश मैंने भी इस तरह की घटना देखी है जिसमें बिजली के करंट से मृत  बन्दर के बच्चे को  उसकी माँ सीने से लगाकर इधर उधर दौड़ती रही और अंत में एक बूढा बन्दर सब को दूर कहीं दौड़ा कर ले गया। अकस्मात् हुई वह घटना कभी विस्मृत ही नहीं होती । श्रीमती कृष्णा जी की लेखनी को को ऐसी संवेदनशील लघुकथा के लिए  नमन ।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 37 ☆

☆ लघुकथा – ईश्वर मनुष्य बन्दर ☆

स्कूल के सामने बिजली के लम्बे-लम्बे तार खिंचे थे उस पर बन्दरों की आवा-जाही अनवरत चलती रहती। अचानक एक बन्दर को बिजली का करंट लगने से वह छोटा सा बन्दर नीचे छटपटा कर गिरा, कुछ ही क्षणों मे जाने कहाँ से पचासों बन्दर वहाँ इकट्ठा हो गये कोई उसका हाथ पकड़ कर हिलाता, कोई उसकी आंख, कोई नाक इस तरह टटोलकर वे उसे किसी तरह उठाना चाह रहे थे। पर वह उठ ही नहीं रहा था।

हम सभी यह दुर्घटना देख उन बन्दरों की कोशिश देख रहे थे। स्कूल के बच्चे यदि उनके जरा भी करीब जाते तो सारे बन्दर खी- खी कर डरा कर उन्हे भगा देते। इतने मे ही नगर निगम की गाड़ी वहां आई, शायद किसी ने फोन कर उसे बुला लिया था, पर सभी बन्दर उस छोटे से बन्दर को एक पल को भी आँखों से ओझल नहीं होने दे रहे थे। वे कभी नगर -निगम की गाड़ी को तो   कभी कर्मचारियों को देख  रहे थे, किसी तरह उन्हें वहां से हटाया गया तो उनमें अफरा -तफरी सी मच गयी। बड़ी मुश्किल से छोटे मृत बन्दर को गाड़ी मे डाला गया।  वे सभी अपनी भाषा मे बोलते, चीखते रहे  और जब कभी ऊपर को देखते भले ही वे पेड़ को देख रहे थे पर हम सबको लग रहा था वे ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारे बच्चे को जीवन दे दो।

और गाड़ी मृत बन्दर को लेकर चली गयी। बाकि जितने भी  बन्दर थे वे भी गाड़ी जाते ही अपने अपने निवास को चले गये।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 8 – कहो तो चले अब ☆ श्री प्रह्लाद नारायण माथुर

श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता कहो तो चले अब. 

 

Amazon India(paperback and Kindle) Link: >>>  मृग  तृष्णा  

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 8 – कहो तो चले अब

 

उम्र अब मुझे झझकोरने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,

दबे पांव बीमारी संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र अब मुझे कहलाने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,

शरीर पर पड़ती झुर्रियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब||

 

उम्र अब मुझे अहसास कराने लगी है, सामने तो कुछ नहीं कहती,

बैसाखियों के संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र अब मुझसे रूठने लगी है, सामने तो कुछ नहीं कहती,

दिल मधुमेह जैसी बिमारियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र अब मुझ पर शिकंजा कसने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,

रोज नयी-नयी बिमारियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र जन्म से सांस संग जिस्म में घुसी थी, सामने तो कुछ नही कहती,

रोज अटकती साँस संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र के उतार पर आकर थक गया, सामने तो अब कुछ नही कहती,

हालात से परेशां अब मैं खुद उम्र से कहता हूँ, तैयार हूँ कहो तो चले अब ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

8949706002

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 45 ☆ परिंदे ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  एक भावप्रवण रचना “परिंदे”।  यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है  से उद्धृत है। )

आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –

यूट्यूब लिंक >>>>   Neelam Saxena Chandra

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 45 ☆

☆ परिंदे ☆

 

बचपन में मैं

जैसे ही सुबह उठकर

बालकनी में जाती,

परिंदों के झुण्ड दिखते

एक साथ कहीं दूर जाते हुए,

और फिर शाम को जब मैं फिर खड़ी होती

अलसाती शाम में आसमान को देखती हुई

वही परिंदे वापस आते हुए दिखते!

 

मेरे घर के पास

छोटे-छोटे ही परिंदे हुआ करते थे

जैसे मैना और तोते,

और मैं अक्सर माँ से पूछती,

“यह परिंदे कहाँ जाते हैं, माँ?

और शाम ढले, कहाँ से आते हैं?”

 

माँ बताती,

“इनकी किस्मत तुम्हारे जैसी थोड़े ही है!

जैसे ही परिंदे उड़ना शुरू कर देते हैं,

उन्हें दाने की खोज में

न जाने कहाँ-कहाँ जाना पड़ता है!”

 

इन परिंदों को मैं ध्यान से देखती…

खासकर मैना को…

न जाने क्यों मुझे वो बड़ी अच्छी लगती थी!

कहानियों में तोता और मैना का प्रेम

बड़ा मशहूर हुआ करता था

और जब भी मैं यह गाना सुनती,

“तोता-मैना की कहानी तो पुरानी-पुरानी हो गयी!”

मैं और ध्यान से मैना को देखती

कि क्या गुण है इस मैना में

कि हरा सा खूबसूरत तोता

इससे मुहब्बत करता है?”

 

एक दिन जब मैं मैना को ध्यान से देख रही थी,

मेरी एक सहेली ने आकर बताया,

“पता है, एक मैना को कभी नहीं देखना चाहिए?”

मैंने पूछा, “ भला, क्यों?”

उसने बताया,

“एक मैना दिखे, तो दर्द मिलता है,

दो मिलें, तो ख़ुशी,

तीन मिलें, तो ख़त आता है

और चार मिलें, तो खिलौना मिलता है!”

 

तब से, जब भी मुझे एक मैना दिखती,

मैं अपना मूंह फेर लेती!

आखिर, नहीं चाहिए था मुझे कोई ग़म!

 

अभी लॉक डाउन के दौरान

अपने बगीचे में बैठी, आसमान को अक्सर निहारती हूँ!

ख़ास बात यह है, कि मेरे घर के पास,

सबसे ज़्यादा तायदाद में चील हैं!

और उससे भी ख़ास बात यह है

कि यह झुण्ड में नहीं,

ज़्यादातर अकेली ही घूमती हैं!

 

जब पहली बार अकेली चील को उड़ते हुए देखा,

बचपन की बात याद कर,

मैं आँख बंद करने ही वाली थी

कि मैंने देखा, वो चील अकेले ही बहुत खुश लग रही थी!

और कितनी लाजवाब थी उसकी उड़ान!

वो किसी शिकार को भी नहीं खोज रही थी-

वो तो बस उड़ रही थी बे-ख़याल और मस्त-मौला सी

उन्मुक्त से गगन में!

 

शायद चील इसीलिए बहुत मशहूर है

कि उसे विश्वास झुण्ड पर नहीं,

अपने हुनर पर है!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विवेक साहित्य # 65 ☆ देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व…. श्री अमरेंद्र नारायण ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का आलेख देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व…. श्री अमरेंद्र नारायणइस अत्यंत सार्थक  एवं प्रेरक आलेख के लिए श्री विवेक जी का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 65 ☆

☆ देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व…. श्री अमरेंद्र नारायण  ☆

श्री अमरेंद्र नारायण जी से मेरे  आत्मीयता के कई कई सूत्र हैं. एक इंजीनियर, एक साहित्यकार, एक कवि, एक रचनाकार, एक पाठक, राष्ट्र भाव से ओत प्रोत मन वाले, देश की एकता और अखण्डता के लिये समर्पित आयोजनो के समन्वयक और सबसे ऊपर एक सहृदय सदाशयी इंसान के रूप में वे मुझे मेरे अग्रज से अपने लगते हैं.

श्री अमरेंद्र नारायण जी की पुस्तक को अमेजन में  निम्न लिंक पर उपलब्ध है

एकता और शक्ति 

Unity And  Strength

स्वतंत्र भारत के एक नक्शे के शिल्पकार  लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के अप्रतिम योगदान पर उन्होंने एकता और शक्ति उपन्यास लिखा है। इस उपन्यास की रचना प्रक्रिया में अमरेंद्र जी ने  गुजरात में सरदार पटेल से संबंधित अनेकानेक स्थलों का पर्यटन कई कई दिनो तक किया है. स्वयं को तत्कालीन परिवेश में गहराई तक उतारा है और फिर डूबकर लिखा है.इसीलिये उपन्यास सरदार पटेल के जीवन के अनेक  अनजान पहलुओं को उजागर करता है। रास ग्राम के एक सामान्य कृषक परिवार को केन्द्र में रख कर कहानी का ताना बाना बुना गया है।सरदार पटेल के महान  व्यक्तित्व से वे अंतर्मन से प्रभावित हैं. सरदार पटेल के सिद्धांतो को नई पीढ़ी में अधिरोपित करने के लिये मैंने उनके साथ मिलकर अनेक शालाओ, महाविद्यालयों, व कई संस्थाओ में एकता व शक्ति नाम से विभिन्न साहित्यिक सांस्कृतिक आयोजन किये है. देश की आजादी के साथ सरदार पटेल को कांग्रेस जनो का बहुमत से समर्थन होते हुये भी उन्होने महात्मा गांधी के इशारे पर प्रधानमंत्री की कुर्सी सहजता से पंडित नेहरू को दे दी थी. ऐसे त्याग के उदाहरण आज की राजनीति में कपोल कल्पना की तरह लगते हैं.

समय के साथ यदि तथ्यो को नई पीढ़ी के सम्मुख दोहराया न जावे तो विस्मरण स्वाभाविक होता है,  आज की पीढ़ी को सरदार के जीवन के संघर्ष से परिचित करवाना इसलिये भी आवश्यक है, जिससे देश प्रेम व राष्ट्रीय एकता हमारे चरित्र में व्याप्त रह सके इस दृष्टि से  यह उपन्यास अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता दिखता है.

अमरेन्द्र नारायण जी पेशे से टेलीकाम इंजीनियर हैं, उन्होने अपने सेवाकाल का बड़ा समय विदेश में बिताया है, पर वे मन से विशुद्ध भारतीय हैं, वे जहां भी रहे हैं उन्होने हिन्दी की सेवा के लिये सतत काम किया है  तथा देश भक्ति का परिचय दिया है.

अमरेंद्र जी की कवितायें भी उनकी ऐसी ही भावनाओ को प्रतिबिम्बित करती हैं  . उनकी पंक्तियां उधृत करना चाहता हूं

वे वसुधैव कुटुम्बकम के अनुरूप प्रकृति पर सबका समान अधिकार प्रतिपादित करते हुये लिखते है

वसुधा की कोख उदारमयी

वात्सल्य नेह और प्यार मयी

अन्नपूर्णा सारे जग के लिये

हर प्राणी और हर घर के लिये

है सबकी, है सबकी

इसी तरह कोरोना के वर्तमान वैश्विक संकट के समय उनकी कलम लिखती है

जाने कितनी बार विपदा ने चुनौती दी मनुज को

जाने कितनी बार उसकी शक्ति को झकझोर डाला

जाने कितनी बार नर को नाश की धमकी दिखाई

जाने कितनी बार उसको कष्ट में घनघोर डाला

पर मनुज भी तो मनुज है, उठ खरा होता है कहता

है परीक्षा की घड़ी, विश्वास पर अपना अडिग है

बादलों की ओट से सूरज निकल कर आ रहा है

वर्तमान संदर्भ में अमरेंद्र जी की ये पंक्तियां नये उत्साह और स्फूर्ति का संचरण करती हैं. उनके असाधारण प्रेमिल व्यक्तित्व का साथ मुझे बड़ी सहजता से मिलता है यह मेरे लिये गौरव का विषय है.

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 58 ☆ फुलं ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक समसामयिक एवं भावप्रवण कविता  “फुलं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 58 ☆

☆ फुलं ☆

 

हसतात फुलं, डोलतात फुलं

काट्यांच्या सोबतीत वाढतात फुलं

निरागस नि कोमल असतात फुलं

रोजच रंगपंचमी खेळतात फुलं

भेटेल त्याला आनंद वाटतात फुलं…

कळ्या फुलतात, यवंनात आलेल्या मुलींसारख्या

नाचतात माणसांच्या तालावर

कुणी एखादा घरी घेऊन जातो फुलं

घर सुवासानं भरून टाकावं म्हणून

कुणी त्यांना देवाच्या पायावर वाहतो

तर कुणी माळतो प्रेयसीच्या केसात

कुणी फुलांच्या शय्येवर पोहूडतात

एखादा करंटा मनगटावर बांधून

घेऊन जातो त्यांना कोठीवर

वापरून झाल्यावर

पायदळी तुडवली जातात फुलं

कुणाच्याही अंतयात्रेवर उधळली जातात फुलं

सारा आसमंत दरवळू टाकतात फुलं

तरीही नशिबावर कुठं चिडतात फुलं…

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ उत्सव कवितेचा # 13 – रात्र – चित्र २ ☆ श्रीमति उज्ज्वला केळकर

श्रीमति उज्ज्वला केळकर

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी  मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )।  इनके अतिरिक्त  हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6,  लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  हम श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी के हृदय से आभारी हैं कि उन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा के माध्यम से अपनी रचनाएँ साझा करने की सहमति प्रदान की है। आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता  ‘रात्र – चित्र २ 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – उत्सव कवितेचा – # 13 ☆ 

☆ रात्र – चित्र २ 

रात्र

चंद्रबनातून

अलगद उतरणारी

मोगरीच्या सतेज ताटव्यात

घमघमणारी

पानांच्या चित्रछायेतून

तरंगत जाणारी

पुळणीवर जरा विसावणारी

हातांशी लगट करणारी

कानांशी कुजबुजणारी

आलीआलीशी

म्हणता म्हणता

पार…क्षितिजापार

होणारी

रात्र

 

© श्रीमति उज्ज्वला केळकर

176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.-  9403310170

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ !! सावन मनभावन !! ☆ इंजी हेमंत कुमार जैन

इंजी हेमंत कुमार जैन

ई-अभिव्यक्ति में इंजी हेमंत कुमार जैन जी का हार्दिक स्वागत है। आप जिला भूजल सर्वेक्षण ईकाई जबलपुर में अनुविभागीय अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। आपकी हाईकू एवं समकालीन आध्यात्मिक रंग से रची रचनाओं के लेखन में विशेष अभिरुचि है। आपकी रचनाओं को विविध काव्य संग्रहों में स्थान मिला है। हम आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों से साझा कराते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक घनाक्षरी रचना *!! सावन मनभावन !!

☆ !! सावन मनभावन !!

(घनाक्षरी)

सावन मनभावन,

हर्षित है तन मन ।

हरितमा धरनी की,

जी भर निहारिए ।।

 

सावन मनभावन,

व्रत पूजा व अर्चन ।

पिंडी चढ़ा बेल पत्र

शिव को रिझाइये ।।

 

सावन मनभावन ,

प्रफुल्लित सब मन।

अमुआ की डार पर

झूला तो झुलाइये ।।

 

सावन मनभावन ,

भीगे बारिश से तन।

भजिया भुट्टे खाने का

मजा तो उठाइए ।।

 

© इंजी.हेमंत कुमार जैन

संपर्क – 522 P-97, जगदंबा कॉलोनी , विकास नगर जबलपुर मो -7000770620

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 58 – सीख की गाँठ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  एक  सार्थक लघुकथा  “सीख की गाँठ।  वास्तव में सीख की गाँठ तो सौ टके की है ही, यह लघुकथा भी उतनी ही सौ टके की है।  नवीन पीढ़ी को ऐसी ही कई गांठों की आवश्यकता है जो उचित समय पर बांधना ही सार्थक है। संभवतः सभी पीढ़ियां इस दौर से एक बार तो जरूर गुजरती हैं। इस  सार्थक लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 58 ☆

☆ लघुकथा – सीख की गाँठ

 

एक भव्य शादी समारोह लगभग सभी पढ़े लिखे शिक्षित परिवार से लग रहे थे।

बिटिया जिसकी शादी हो रही थी ” सुरीली” । बाहर पढ़ने गई हुई थी। लालन पालन भी आज की आधुनिकता भरे वातावरण में हुआ था।

घर पर सभी मेहमान आए हुए थे और बिटिया के बाहर रहने के कारण सभी सुरीली को कुछ ना कुछ समझा रहे थे।

शायद इसलिए कि वह इन रीति-रिवाजों को नहीं जान रही है और घर से दूर अकेली स्वतंत्र हॉस्टल की जिंदगी में पली बढ़ी है। हॉस्टल की जिंदगी अलग होती है।

समय निकलता जा रहा था सभी रस्में  एक के बाद एक होते जा रहे थे। सुरीली नाक चढ़ा मजबूरी है कहकर निपटाना समझ रही थी।

दादी जो कि सत्तर साल की थी। सब बातों को बड़े ध्यान से एक किनारे बैठ कर भापं रही थी क्योंकि कोई उन्हें पूछं भी नहीं रहा था और उनकी अपनी पांव की तकलीफ के कारण वह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी।

कभी-कभी बीच-बीच में बेटा और पोता, बहू आ कर पूछ जाते कुछ चाहिए तो नहीं??? परंतु दादी लगातार नहीं कह… कर खुश हो जाती और कहती… तुम सब अपना काम करो। बस मुझे विदाई के समय सुरीली की ओढ़नी पर गांठ बांधनी है।

सभी को लगा कि विदाई में शायद दादी कुछ भारी-भरकम चीज देंगी। परंतु ऐसा कुछ भी नहीं था।

विवाह संपन्न हुआ और धीरे-धीरे विदाई का समय आया। पिताजी ने सुरीली से कहा… कि दादी का आशीर्वाद ले लो सुरीली ने थोड़ा मुंह बना लिया जिसे दादी देख रही थी। सुरीली निपटाना है कहकर… आगे बढ़ी और दादी के पास गई।

दादी ने बड़े प्यार से सुरीली और दामाद के सिर पर हाथ रखा और ओढ़नी के  पल्लू पर एक गांठ बांधते हुए बोली… मैं जान रही हूं तुम्हें संयुक्त परिवार की आदत नहीं है और जहां शादी होकर जा रही हो संयुक्त परिवार में जा रही हो।

यह गांठ मैं तुम्हें बांध रही हूं घर से निकलते समय बड़ों से पूछ कर जाना और उनके पूछने से पहले घर के अंदर आ जाना  बस इतना सा ही कहना है। सुरीली की आंखें नम हो गई। दादी को कसकर गले लगा लिया और हां में सिर हिला दिया।

दादी की ‘सीख गांठ’ के लिए सभी ने तालियों से स्वागत किया। और अपनी पुरानी काया के साथ अनुभव को अपनी नातिन को बांटते हुए दादी फूली नहीं समा रही थी। सभी की आंखें चमक उठी। सभी ने कहा दादी ने सौ टके की बात कही। दादी  की गांठ का सभी ने लोहा माना।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – कविता ☆ लेखनी सुमित्र की – सावन ☆ डॉ राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके सावन पर अप्रतिम दोहे। )

  ✍  लेखनी सुमित्र की – सावन  ✍

 

सावन की ऋतु आ गई ,आंखों में परदेश।

मन का वैसा हाल है, जैसे बिखरे केश।।

 

सावन आया गांव में, भूला घर की गैल।

इच्छा विधवा हो गई ,आंखें हुई रखैल।।

 

महक महक मेहंदी कहे ,मत पालो संत्रास ।

अहम समर्पित तो करो, प्रिय पद करो निवास।।

 

सावन में सन्यास लें, औचक उठा विचार ।

पर मेहंदी महक गई ,संयम के सब द्वार।।

 

सावन के संदेश का, ग्रहण करें यह अर्थ ।

गंध हीन जीवन अगर, वह जीवन  है व्यर्थ ।।

 

जलन भरे से दिवस हैं ,उमस भरी है रात ।

अंजुरी भर सावन लिए ,आ जाए बरसात ।।

 

मेहंदी, राखी ,आलता, संजो रहा त्यौहार।

सावन की संदूक में, महमह करता प्यार।।

 

डॉ राजकुमार सुमित्र

© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

मो 9300121702

Please share your Post !

Shares