हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ तन्मय साहित्य # 17 – जनसेवक की जुबानी ☆ – डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

 

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है  वर्तमान चुनावी परिप्रेक्ष्य में एक उलटबासी “जनसेवक की जुबानी…….। )

 

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 17 ☆

 

☆ जनसेवक की जुबानी……. ☆  

 

तुम डाल-डाल, हम पात-पात

हम हैं दूल्हे, तुम हो बरात।।

 

हम  पावन मंदिर के झंडे

तुम पार्टी ध्वजों के हो डंडे

हम शीतल चंदन की सुगंध

तुम  औघड़िये ताबीज गंडे।

तुम तो रातों के साये हो

हम प्रथम किरण की सुप्रभात

तुम डाल डाल…………….।।

 

हम हैं गंगा का पावन जल

तुम तो पोखर के पानी हो

हम नैतिकता के अनुगामी

तुम फितरत भरी कहानी हो।

हथियारों से तुम लेस रहे

हम सदा जोड़ते रहे हाथ

तुम डाल डाल…………….।।

 

हम  शांत  धीर गंभीर बने

तुम व्यग्र,विखंडित क्रोधी हो

हम संस्कारों के साथ चले

तुम  इनके  रहे विरोधी हो।

हम जन-जन की सेवा में रत

तुम करते रहते खुराफ़ात

तुम डाल डाल…………।।

 

हम व्यापक हैं आकाश सदृश

तुम  बंधे  हुए  सीमाओं  में

हम गीत अमरता के निर्मल

तुम बसे व्यंग्य कविताओं में।

तुमने  गोदाम  भरे  अपने

हम भूखों के बन गए भात

तुम डाल डाल……………।।

 

हम नेता मंत्री, हैं अफसर

तुम पिछलग्गू अनुयायी हो

हम नोट-वोट, कुर्सी धारी

पर्वत हैं हम, तुम खाई हो।

हम पाते रहते सदा जीत

तुम खाते रहते सदा मात

तुम डाल डाल हम पात पात।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कवितेच्या प्रदेशात # 19 – ऐलोमा पैलोमा ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  उनके पुरानी डायरी से एक कविता पर  एक कविता  “ऐलोमा पैलोमा ”.   बचपन में खेले गए खेलों के साथ उपजी कविता जैसे करेले की बेल के साथ अंकुरित होती है और बेल के साथ ही बढती है.  करेले के कोमल पत्ते,  फूल और फल. करेले की सब्जी के  स्वाद  सी कविता .  बचपन के खेल में गए गीत में सासु माँ का कथन  कि “बहु करेले की सब्जी खा फिर मायके जा” बहुत कुछ कह जाती है.  किन्तु, करेले सा यह कटु सत्य है कि  हम अपनी कविता की सही विवेचना हम  ही कर सकते हैं .  कुछ बातें गीतों और कविताओं में ही अच्छी लगती हैं. ऐसे  कुछ खेल अकेले ही  खेले जा सकते हैं. सुश्री प्रभा जी की कवितायें इतनी हृदयस्पर्शी होती हैं कि- कलम उनकी सम्माननीय रचनाओं पर या तो लिखे बिना बढ़ नहीं पाती अथवा निःशब्द हो जाती हैं। सुश्री प्रभा जी की कलम को पुनः नमन।

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि  आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 19 ☆

 

☆ ऐलोमा पैलोमा ☆

 

या इथेच तर सुरू झाला खेळ,

कवितेत रंगण्याचा!

मी ही मग गायली पावसाची गाणी,

हदग्याच्या दिवसात ऐलोमा पैलोमाचा फेर ही धरला!

कारल्याचा वेल लावला खरा,

पण….

“कारल्याची भाजी खा गं सुने,

मग जा आपल्या माहेरा ”

म्हणणा-या सासू सारखीच वाटली,

ही व्यासपिठीय कविता!

मनात गच्च भरून राहिलेला पाऊस

एका स्नेहमयी सांजेला

हळूवार रिमझिमला

आणि वाटलं,

गवसलं कवितेचं रान,

मनमुक्त बरसायला!

अनुभवाच्या कारल्याचा वेल

हळूहळू वाढू लागला!

कारल्याला फूल येऊ दे गं….

म्हणत कवितेची दाद भुलवतच राहिली!

कारल्याला कारलीही आली हिरवीगार!

चिंचगुळ घालून भाजीही केली,

चटकदार, चविष्ट!

दारातला वेल हिरवा आहे आणि

जिभेवर कार्ल्याची चव आहे

तोवरच माहेरी जाईन म्हणते,

भोंडला खेळणा-या सोबतीणी तरी कुठं टिकतात इतका काळ?

आताशा हस्त बरसतच नाही आणि सोसवत नाही—

“नवरा मारितो ऽऽ ..बरे करितो”

असे खेळातल्या खेळातही म्हणणे!

कविते, आपले निर्णय आपणच घ्यायचे असतात,

 

बरेचसे  खेळ एकटीनेच खेळायचे असतात!

 

© प्रभा सोनवणे,  

(३०-५-१९९९)

 

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ काव्य कुञ्ज – # 8 – गीत – तिरंगा जब लहराएगा ☆ – श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। अब आप प्रत्येक बुधवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज पढ़ सकेंगे । आज प्रस्तुत है उनकी नवसृजित कविता “गीत – तिरंगा जब लहराएगा ”

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज – # 8 ☆

 

☆ गीत – तिरंगा जब लहराएगा

 

तिरंगा जब भी,

आसमान में लहराएगा,

हर भारतवासी का दिल,

अभिमान से भर आएगा।

 

मंगल पांडे जी की आहुति,

गंध मिट्टी यहाँ आज भी देती,

जब भी आजाद देश जश्न मनाएगा,

हर सूरमा आँसू दे जाएगा।

 

बापू की बात थी न्यारी,

सत्य, अहिंसा के थे पुजारी,

जो शांति की राह अपनाएगा,

फिर राजघाट भी खुशी मनाएगा।

 

अंग्रेजों ने की मनमानी,

सह न पाए हिन्दुस्तानी,

मर मिटे हैं मर मिटेंगे,

फिर-फिर जन्म ले आएगा।

 

इक पल की नहीं ये आजादी,

कितनों ने ही जान गवाँ दी,

याद करके उनकी आज,

दिल बाग-बाग हो जाएगा।

 

नाम अमर हो जाएगा

जो वतन पर मिट जाएगा,

देश का सपूत कहलाएगा,

आबाद आजादी जो रख पाएगा।

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 12 ☆ मंज़र ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

 

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “मंज़र”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 12 ☆

 

☆ मंज़र

कहाँ लगता है वक़्त

मंज़र के बदलने में?

शायद ये परिवर्तन

मौसम से भी बढ़कर होता है-

कम से कम

मौसम के आने और जाने का समय तो

लगभग सुनिश्चित है,

मंज़र तो

पलभर में भी बदल जाता है, है ना?

 

पहले बड़ा डर  सा लगता था

मंज़र के बदल जाने पर-

घबरा जाती थी,

हाथ-पैर  फूल जाते थे

और दिल तेज़ी से धड़कने लगता था;

पर अब धीरे-धीरे जान चुकी हूँ

कि खुदा मंज़र बनाता ही है

बदलने के लिए

और चाहता ही यह है

कि मंज़र चाहें कितने ही बदलें,

हम अपने जज़्बात,

अपने एहसास

और अपने खयालात में

संतुलन बनाकर रखें!

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 9 ☆ बाल साहित्य – भोलू भालू सुधर गया ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।  अब आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  की पुस्तक चर्चा  “बाल साहित्य – भोलू भालू सुधर गया। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 9 ☆ 

☆ पुस्तक – भोलू भालू सुधर गया

पुस्तक चर्चा

☆ बाल साहित्य   – भोलू भालू सुधर गया– चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

 

पुस्तक – भोलू भालू सुधर गया

लेखक – पवन चौहान

प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर

मूल्य – १०० रु

 

बाल साहित्य रचने के लिये बाल मनोविज्ञान का जानकार होना अनिवार्य होता है. दुरूह से दुरूह बात भी खेल खेल में, चित्रात्मकता के साथ सरल शब्दो में बताई जावे तो बच्चे उसे सहज ही ग्रहण कर लेते हैं. बचपन में पढ़ा गया साहित्य जीवन भर स्मरण रहता है, और बच्चे को संस्कारित भी करता है.

बाल गीत, बाल कथाओ का इस दृष्टिकोण से बड़ा महत्व है. बच्चो की कहानियो के पात्र काल्पनिक होते हैं किन्तु वे बच्चो के नायक होते हैं.

नानी दादी की कहानियां अब गुम हो रही हैं, क्योकि परिवार विखण्डित होते जा रहे हैं, बाल मनोरंजन के अन्य इलेक्ट्रानिक संसाधन बढ़ रहे हैं. ऐसे समय में सुप्रतिष्ठित प्रकाशन गृह बोधि, जयपुर से पवन चौहान का बाल कथा संग्रह भोलू भालू सुधर गया प्रकाशित हुआ है. संग्रह में कुल जमा १५ बाल कथायें हैं. चूंकि पवन चौहान पेशे से शिक्षक हैं वे बच्चो के मन को खूब समझते हैं. छोटे छोटे वाक्य विन्यास के साथ उनकी कही कहानियां सुनने पढ़ने वाले पर चित्रात्मक प्रभाव छोड़ती हैं. सब जानते हैं कि शेर भालू इंसानी बोली नहीं बोल सकते, और न ही जंगल में इंसानी समस्यायें होती हैं जिनका हल चुनाव से निकालने की आवश्यकता हो, किन्तु पवन जी नें जंगली जानवरो को सफलता पूर्वक कथा पात्र बना कर उनके माध्यम से बाल मन पर बच्चे के परिवेश की इंसानी समस्याओ के हल निकालते हुये, बच्चो को सुसंस्कारित करने हेतु प्रस्तुत कहानियो के माध्यम से शिक्षित करने का महत्वपूर्ण काम किया है. बच्चो को ही नही, उनके अभिवावको व शिक्षको को भी किताब पसंद आयेगी.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं – # 19 – निपूती (निःसंतान ) ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अतिसुन्दर लघुकथा “निपूती (निःसंतान )”।  श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी  ने  इस लघुकथा के माध्यम से  एक सन्देश दिया है कि – निःसंतान स्त्री का भी ह्रदय होता है और उसमें भी बच्चों के प्रति अथाह स्नेह होता है।   क्षण भर को सब कुछ असहज लगता है किन्तु दुनिया में ऐसा भी होता है।  ) 

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 19 ☆

 

☆  निपूती (निःसंतान) ☆

 

निर्मला अपने ससुराल आई। पति बहुत ही गुणवान और समझदार, दोनों की जोड़ी को सभी बहुत ही सुंदर मानते थे। घर परिवार भी खुश था। धीरे-धीरे साल बीता। घर में अब सास-ससुर बच्चे को लेकर चिंता करने लगे क्योंकि निर्मला का पति स्वरूप चंद्र घर में इकलौता था। परंतु विधान देखिए पता नहीं सब कुछ सही होने पर भी निर्मला को संतान सुख नहीं मिल पा रहा था। बहुत डॉक्टरी इलाज के बाद निर्मला अब थक चुकी थी। और सास-ससुर भी समय से पहले स्वर्ग सिधार गये। दोनों का जीवन अकेलेपन का कारण बनने लगा। अब निर्मला का पति घर से बाहर ज्यादा समय बिताने लगा।

निर्मला बहुत ही भरे पूरे परिवार से थी। घर में भाई भतीजे का, घर में सभी के बच्चों की देखभाल करती। मायके में उसे सब बहुत मानते थे। कोई कुछ नहीं कहता। परंतु निर्मला मन ही मन बहुत दुखी रहती थी। भाई की बिटिया उमा की शादी हुई घर में सभी प्रसन्नता पूर्वक कार्यक्रम होने लगा। अपनी बुआ के पास बैठी भतीजी बुआ का दर्द समझ रही थी। क्योंकि बचपन से बुआ जी से उसका ज्यादा लगाव था। विदाई हुई और ससुराल चली गई। बुआ निर्मला भी अपने घर आ गई। फिर से गुमसुम सी रहने लगी। मुहल्ले में उसने आना जाना बंद कर दिया।

धीरे-धीरे समय सरकता चला गया। निर्मला की भतीजी उमा  ने दो साल बाद सुंदर स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। सभी आए, परंतु उसके ससुराल वालों के कारण निर्मला बुआ और फूफा जी को नहीं बुलाया गया। कहने लगे निपूती का इस अच्छे शुभ काम में क्या काम? यह बात भतीजी उमा को अच्छी नहीं लगी। परंतु कुछ कर ना सकी।

अचानक कुछ दिनों बाद बच्चे की तबीयत बहुत खराब हो गई। खून की आवश्यकता पड़ रही थी। रिश्तेदार दूर-दूर तक नहीं दिखाई दिए। निर्मला बुआ फूफा जी को जैसे ही खबर मिली वे  आ गए। उन्होंने चुपके से जाकर खून का सैंपल मिलवाया। बच्चे के खून से निर्मला का खून मैच कर गया। डॉक्टर ने तुरंत खून का इंतजाम कर लिया। बच्चा खतरे से बाहर हो गया। डॉक्टर ने कहा बच्चे की मां को कुछ समझाना है। अंदर आइए कौन है? उमा ने बिना कुछ सोचे समझे तुरंत कहा निर्मला है बच्चे की मां। डॉक्टर ने समझाकर केबिन से बाहर किया। निर्मला की आंखों में सारे जहां की खुशी और आंसू थे। उसकी गोद पर सुंदर बच्चा था और उमा कह रही थी “बच्चे का ध्यान रखिएगा, आप बहुत अच्छी मां है। हम सबको पता है इसका भी विशेष ध्यान रख सकती हैं।” कहकर उमा अस्पताल से बाहर चली गई।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #20 – कोजागरी ☆ – श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

 

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एकसामयिक एवं सार्थक कविता  “कोजागरी”।)

 

 ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 20 ☆

 

 ☆ कोजागरी ☆

ती सोबतीस माझ्या कोजागरीच माझी
येण्यास सोबतीला होताच चंद्र राजी
मी भाग्यवंत आहे तू भेटलीस येथे
माझे तुझे असूदे आता दिगंत नाते
ग्लासात चंद्र आहे कोजागरी म्हणूनी
ती केशरी मसाला गेली पुरी भिजोनी
ओठास लावलेला प्याला जरी दुधाचा
त्याच्यात गोडवा हा आला कसा मधाचा
ही रात्र पौर्णिमेची हे रूप ही रुपेरी
चंद्रास डाग आहे माझीच प्रीत कोरी
ना वाटली कधीही मज नजर धुंद इतकी
प्याला जरी दुधाचा तू वाटतेस साकी
बागा भरून गेल्या साऱ्याच माणसांनी
दोघेच फक्त आम्ही ह्या चिंब चांदण्यांनी

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य दिंडी # 4 – ☆ मन – कवयित्री बहिणाबाई चौधरी ☆ – सुश्री ज्योति हसबनीस

सुश्री ज्योति हसबनीस

 

(सुश्री ज्योति  हसबनीस जीअपने  “साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य दिंडी ” के  माध्यम से  वे मराठी साहित्य के विभिन्न स्तरीय साहित्यकारों की रचनाओं पर विमर्श करेंगी. आज प्रस्तुत है उनका आलेख  “मन – कवयित्री बहिणाबाई चौधरी” । इस क्रम में आप प्रत्येक मंगलवार को सुश्री ज्योति हसबनीस जी का साहित्यिक विमर्श पढ़ सकेंगे.)

 

☆साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य दिंडी # 4 ☆

 

☆ मन – कवयित्री बहिणाबाई चौधरी ☆ 

 

मनोव्यापार….माणसाचं मन हा अतिशय गूढ, गहन,  अनाकलनीय आणि तितकाच गुंतागुंतीचा विषय आहे. बहुरूपी, बहुढंगी मनाचे विभ्रम तर बघा जरा, घरी असलो तर बाहेर मोकाट, बाहेर असलो तर घरी सुसाट, देवासमोर श्लोक म्हणतांना देखील आजूबाजूच्या हालचाली टिपण्याचं त्याचं कसब विलक्षण ! कितीही रंजक पुस्तक हातात असू दे खिडकीतून दिसणा-या झाडाच्या फांद्या न्याहाळण्यात ते दंग ! परीक्षा संपण्याधीच त्याचे सुट्टीतले मनसुबे तयार. अप्रिय विषयाला पूर्णविराम न देता त्याचा चघळचोथा करण्यात आनंद मानावा तो त्यानेच ! एखाद्याबद्दलचा आकस, पूर्वग्रह गोंजारत त्याला अढळपद देण्याची दिलदारी दाखवावी ती देखील त्यानेच ! पा-यालाही मागे टाकणारी त्याची चंचलता, वा-यालाही लाजवेल असा त्याचा वेगवान मुक्त संचार, प्रसंगी खुपणारा त्याचा कोतेपणा,तर प्रसंगी गगनाला गवसणी घालणारा त्याचा मोठेपणा…छे..नाही थांग लागत, सारंच अनाकलनीय !

आज काव्यदिंडीतलं तिसरं पाऊल टाकतांना माहेरच्या आठवणीने भरून येतंय, कारण मी बोट धरलंय माझ्या माहेरच्या मायेच्या माणसाचं, खानदेशच्या सुप्रसिद्ध कवयित्री बहिणाबाई चौधरींचं !

 

☆ मन ☆

 

मन वढाय वढाय

उभ्या पिकातलं ढोर

किती हाकला हाकला

फिरी येतं पिकावर

 

मन मोकाट मोकाट

त्याले ठायी ठायी वाटा

जशा वा-यानं चालल्या

पान्याव-हल्यारे लाटा

 

मन लहरी लहरी

त्याले हाती धरे कोन

उंडारलं उंडारलं

जसं वारा वाहादन

 

मन जह्यरी जह्यरी

ह्याचं न्यारं रे तंतर

अरे इचू साप बरा

त्याले उतारे मंतर !

 

मन पाखरू पाखरू

त्याची काय सांगू मात ?

आता व्हतं भुईवर

गेलं गेलं आभायात

 

मन चप्पय चप्पय

त्याले नाही जरा धीर

तठे व्हयीसनी ईज

आलं आलं धरतीवर

 

मन एवढं एवढं

जसा खाकसचा दाना

मन केवढं केवढं ?

आभायात बी मायेना

 

देवा कसं देलं मन

अास नाही दुनियात !

आसा कसा रे तू योगी

काय तुझी करामत !

 

देवा आसं कसं मन ?

आसं कसं रे घडलं

कुठे जागेपनी तूले

असं सपनं पडल !

 

© ज्योति हसबनीस,

नागपुर  (महाराष्ट्र)

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 16 – जुग जुग जियो ☆ – श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में उनका  व्यंग्य विधा में एक प्रयोग  “माइक्रो व्यंग्य  – जुग जुग जियो” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 16☆

 

☆ माइक्रो व्यंग्य –  जुग जुग जियो   

 

ये बात तो बिलकुल सही है कि लोगों ने मरने का सलीका बदल दिया है।

रात में सोये और बिना बताए चल दिए, कहीं टूर में गए और वहीं दांत निपोर के टें हो गए, न गंगा जल पीने का आनन्द उठाया न गीता का श्लोक सुना ,…..अरे ऐसा भी क्या मरना?

…..पहले मरने का नाटक कर लो थोड़ी रिहर्सल हो जाय, नात – रिस्तेदार सब जुड़ जाएँ। पहले से रोना धोना सुन लिया जाय। कुछ अतिंम इच्छा पूरी हो जाए।

भई मरना तो सभी को है तो तरीके से मरो न यार,  घर वालों को मोहल्ले पड़ोस से पर्याप्त सहानुभूति बगैरह मिल जाए। अब तुम तो जाय ही रहे हो कुछ पडो़स वालों को भी डराय दो कि लफड़ा किया तो भूत बनके निपटा दूंगा।

यदि दिल के कोई कोने में कोई बचपन की पुरानी प्रेमिका छुपी रह गई हो तो उसको भी कोई बहाने से बुला लिया जाए।

बुलंद इमारत के खण्डहर में भी ताकत होती है, जश्न मनाके मरने का तरीका होना चाहिए।  मरने के पहले अड़ जाओ कि आज ही 500 लोगों को जलेबी पोहा मेरे सामने खिलाओ। अड़ जाओ कि जिस पुलिस वाले ने डण्डे से घुटना तोड़ा था उसको  सामने गुड्डी तनवायी जाए। ऐसी अनेक तरह के अविस्मरणीय मजेदार किस्सों के साथ मरोगे तो मरने का अलग मजा आएगा ………! आदि इत्यादि।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सकारात्मक सपने – #19 – घरेलू बजट ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है “ घरेलू बजट” ।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 19 ☆

 

☆  घरेलू बजट 

 

हिन्दू कलैण्डर के हिसाब से दीपावली से दीपावली तक बही खाता रखा जाता है, प्रायः आय व्यय की नई बही बनाकर, उसकी पूजा करके दूकानदार दीपावली के बाद से नया खाता सुरू करते हैं। अंग्रेजी कैलेण्डर के हिसाब से शासकीय रूप से १ अप्रैल से ३१ मार्च का समय वित्त वर्ष के रूप में माना जाता है। यही कारण है कि राज्य व केंद्र सरकार फरवरी के महीने में सदन में नये वित्तीय वर्ष के लिये बजट प्रस्तुत करती हैं।

बजट का मतलब होता है आमदनी व खर्च का अनुमान.इन दिनो अखबारो, व समाचारो में प्रायः बजट की चर्चा पढ़ने सुनने को मिल जाती है। क्या आपने कभी अपने घर का बजट बनाया है ? आपकी मासिक आमदनी कहां खर्च होती है? क्या आपने कभी इस बात का हिसाब लगाया है कि आपके घरेलू खर्चो पर आपकी आय का कितना हिस्सा खर्च हो रहा है? भविष्य के लिये आप कितनी बचत कर रही हैं? आप ही अपने घर की गृह मंत्री और वित्त मंत्री भी हैं अतः घर के बजट बनाने और उसे क्रियांवित करने की जबाबदारी भी आपकी ही है।

घरेलू बजट बनाने का अर्थ घर के सभी खर्चों का हिसाब लगाने से कहीं बढ़कर है। इसके जरिए आप हिसाब लगा सकती हैं कि आपकी आय में से कितना खर्च होता है और कितना इसमें से बचाया जा सकता है। समय पर बच्चो की फीस, बिजली, पानी, अखबार, दूध किराने के बिलों का भुगतान करना, कर्जों का सही समय पर निपटारा करना और अपने बचत, निवेश लक्ष्यों को हासिल करना भी घरेलू बजट के अंतर्गत आता है।

घर का बजट बनाने का सबसे सही उपाय है कि आप खर्चों के लिए अलग-अलग लिफाफे बनाएं (किराए, बिजली बिल, कार ईएमआई इत्यादि) इसके जरिए आप बिल्कुल सही तरीके से जान पाएंगे कि कि कितना पैसा किस मद पर खर्च हो रहा है। और अगर कुछ बचता है तो आप बची हुई राशि को अगले महीने के लिए बचाकर रख सकते हैं या फिर अपनी बचत के रूप में अलग भी रख सकते हैं।

योजना बनाने से शुरूआत करें

शुरूआत के लिए अपनी छोटी से बड़ी जरूरतों और इच्छाओं की लिस्ट बनाकर देखें। खर्चों को जरूरतों और चाहतों के बीच बांटने से आपको ज्ञात होगा कि जीने के लिए किन चीजों की जरूरत है और कौन-कौन से खर्चे सिर्फ आपकी जीवन-शैली को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक हैं।

बजट का एक उपयुक्त फॉर्मेट बनाएं

आपको अपनी मासिक आय के हिसाब से चलना होगा और इसके आधार पर ही लागत निकालनी होगी। तो सारी अंकगणना और हिसाब-किताब इस तरह से करें कि आपके साल भर का बजट तैयार हो जाए। आमदनी के रूप में वेतन, बच्चो को मिलने वाली स्कालरशिप, मकान किराया, अन्य संभावित इनकम, आदि को एक ओर लिखें। दूसरी ओर की लिस्ट बड़ी होगी, घर के सभी सदस्यो के साथ बैठकर नियमित व आकस्मिक खर्चो को सूची बद्ध करें पिछले साल हुये खर्चो को संभावित मंहगाई के कारण थोड़ा बढ़ाकर जोड़ें। इसके बाद देखें कि आपकी सालाना आमदनी में ये फिट हो रहा है या नहीं।

सिर्फ बजट बनाना ही काफी नहीं है, इसे देखें कि आपका बजट केवल कागजों पर ही नहीं बल्कि असली जिंदगी में भी सही चल रहा है या नहीं। एक सही बजट वही है जो देखने में भले ही साधारण हो लेकिन आपकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सफल साबित हो।हर थोड़े दिनों बाद बजट का विश्लेषण भी कर सकते हैं।

आकस्मिक खर्चों के लिए तैयार रहें…

कार मरम्मत, चिकित्सा खर्च, शादी और जन्मदिन, घरेलू उपकरणों का रख-रखाव, आकस्मिक यात्राएं ऐसे खर्च हैं जिनके लिए आपके बजट में कुछ स्थान जरूर होना चाहिए।

जिम्मेदारियां बांटे-

अगर आपके परिवार में वयस्क और युवा लोग हैं तो बेहतर होगा कि उन्हें भी इस बात की जानकारी हो कि एक पूरे महीने मासिक आमदनी को कैसे चलाया जाता है। इसके अलावा अगर आपके घर में बच्चे हैं तो उन्हें भी इसकी जानकारी दें और सिखाएं कि बजट कैसे बनाया जाता है। आप निश्चित ही ये देखकर हैरान होंगे कि आपके बच्चों के पास कितने नए और उपयोगी सुझाव हैं।

लक्ष्य निर्धारित करें

हर महीने कुछ पैसे बचाने का लक्ष्य बनाएं और इसके जरिए कुछ हासिल करने पर खुशी महसूस करें। चाहे वो कोई मोबाइल हो, या छुट्टी पर बाहर जाने का प्रोग्राम हो। इसके लिए एक तरीका है कि आप छोटी-छोटी चीजों के लिए क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से बचें और ईएमआई पर वस्तुएं खरीदनें से बचें।

बजट बनाने का मतलब ये नहीं है कि आप किसी फंदे में फंस गए हैं। ये आपकी आर्थिक स्वतंत्रता और सहूलियत के लिए होना चाहिए ना कि कोई बंधन। एक अच्छा बजट आपको पैसे पर नियंत्रण के रूप में बड़ी ताकत देता है। इसके जरिए आप अपने खर्चों को अधिक तर्कसंगत बनाते हैं।

आपने सुना होगा कि केंद्र सरकार के खर्चे बढ़ गए हैं। सरकार इन खर्चो को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है। इसी तरह आप भी अपने खर्चो को नियंत्रित करें।

प्राथमिकताएं तय करें

सरकार अपने बजट में प्राथमिकता के क्षेत्र तय करती है। वो स्वास्थ्य, शिक्षा आदि को इस क्षेत्र में रखती है। आपको भी अपने खर्चे की प्राथमिकताएं जरूर तय कर लेनी चाहिए। मसलन अगर आपकी प्राथमिकता ये है कि बच्चो को अच्छी शिक्षा मिले  तो फिर उस पर खर्च करना जरूरी है। अगर आपने कर्ज ले रखा है, तो उसके भुगतान को भी नहीं भूलना चाहिए।

हर साल बजट बनाएं

बजटिंग को आदत में शामिल करें। अगर इसमें कुछ वक्त भी लगे और कुछ झंझट समझ में आए, तो भी इस काम को करें। अगर आपको इसमें कुछ दिक्कत समझ में आती है, तो इसे आसान बनाएं। खर्चो को लिखें। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आप इसके लिए गंभीर नहीं हैं। इसके लिए आप विशेषज्ञ की सलाह भी ले सकते हैं। जब भी आपको बोनस या अतिरिक्त मुनाफा हो, तो बड़े खर्चो के लिए पैसा बचाएं। मसलन छुट्टियां बिताने के लिए या फिर त्यौहारो पर होने वाले खर्चे के लिए पैसा बचाएं। बचत भी आमदनी ही है।

कहावत है कि जितनी चादर हो पैर उतने ही फैलाने चाहिये, बजट बनाने से आपको अपनी चादर का आकार स्पष्ट रूप से मालूम होता है फिर आप यह तय कर सकती हैं कि आपको चादर बड़ी करनी जरूरी है या पैर सिकोड़कर काम चलाया जा सकता है।

 

© अनुभा श्रीवास्तव

 

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