हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 46 ☆ मातृ दिवस विशेष – माँ बेचारी ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  मातृ दिवस के अवसर पर आपकी विशेष रचना माँ बेचारी । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 46

☆ मातृ दिवस विशेष – माँ बेचारी  ☆ 

 

माँ हर बार

ऐसा ही करती है

 

ऐसा ही सोचती है

मा़यका मन में हैं

किवाड़ की सांकल

वो अमरूद का पेड़

वो अमऊआ की डाली

वो प्यारी प्यारी सहेली

वो अम्मा की लम्बी टेर

बाबू के किताबों के ढ़ेर

पगडंडी की वो पनिहारिन

चुहुलबाज़ी वाली वो नाईन

मुंडेर पर बैठी हुई  गौरैया

हर बार माँ याद करती है

बड़बड़ाती हुई सो जाती है

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 45 – स्त्री अभिव्यक्ती ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है  आपका  एक अत्यंत भावप्रवण गीत  ” स्त्री अभिव्यक्ती”।  आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। )

☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 45 ☆

☆ स्त्री अभिव्यक्ती ☆

 

अभिव्यक्तीच्या  नावावरती, उगाच वायफळ बोंबा  हो।

अन् चढणारीचा पाय ओढता….उगा कशाला थांबा हो।

जी sssजी र ss जी जी

माझ्या राजा तू रं माझ्या  सर्जा तू रं  ssss.।।धृ।।

 

गर्भामधी कळी वाढते, प्राण जणू तो आईची।

वंशाला तो …हवाच दीपक , एक चालेना बाईची।

काळजास त्या सूरी लावूनीsss, स्री मुक्तीचा टेंभा हो।।

चढणारीचा पाय……..ranjana

जी जी रं जी…।।1।।

 

आरक्षण..! हे दावून गाजर, निवडून येता बाई हो।

सहीचाच तो हक्क तिला… अन् स्वार्थ साधती बापे हो।

संविधानाची पायमल्ली ही… की स्री हाक्काची शोभा हो…।

चढणारीचा पाय……..

जी जी रं जी….।।2 ।।

 

स्री अभिव्यक्ती बाण विषारी…..घायाळ झाले बापे… ग।

सांग साजणी कशी रुचावी….स्त्रीमुक्तीची नांदी ग।

कणखर बाणा सदा वसू  दे …. नको भुलू या ढोंगा हो।

चढणारीचा पाय……..।।3।।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार # 49 ☆ व्यंग्य – महामारी पर भारी शायर ☆ डॉ कुंदन सिंह परिहार

डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है व्यंग्य  ‘महामारी पर भारी शायर’। डॉ परिहार सर का इस बार का कैरेक्टर वास्तव में कैरेक्टर ही है। वैसे शायर शब्द से अंदाजा तो आप ने लगा ही लिया होगा।  शायर भारी कैसे पड़ा ? इसके लिए तो आपको रचना पढ़नी ही पड़ेगी। ऐसे  अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 49 ☆

☆ व्यंग्य – महामारी पर भारी शायर ☆

मुहल्ले में अफ़रा-तफ़री थी। पूरा लॉकडाउन लगा था, घरों से निकलने की सख़्त मुमानियत थी। लेकिन लोग थे कि बेवजह प्रकट होने से बाज़ नहीं आ रहे थे। पुलिस उन्हें हाँकते हाँकते परेशान थी। पाँच को भगाती तो दस पैदा हो जाते।

अचानक पुलिस इंस्पेक्टर के पास एक नौजवान आकर खड़ा हो गया। महीनों की बढ़ी दाढ़ी और बाल, तुचड़े-मुचड़े कपड़े। लगता था महीनों से नहाया नहीं है। देखते ही ‘सोशल डिस्टांसिंग’ की इच्छा होती।

इंस्पेक्टर को सलाम करके बोला,  ‘सर, ख़ाकसार को लोग ‘ज़ख़्मी’ के नाम से जानते हैं। शायर हूँ। शहर का बच्चा बच्चा मेरे अशआर का दीवाना है। आपकी परेशानी देखकर मन हुआ कि आप की कुछ मदद करूँ। कौम की ख़िदमत करना अपना फर्ज़ मानता हूँ। मैंने इस महामारी पर कुछ नज़्में लिखी हैं। लोगों को सुनाऊँगा तो वे आपका नज़रिया समझेंगे और आपका काम हल्का हो जाएगा। मुझे एक कुर्सी और मेगाफोन दिलवा दें तो मैं अभी काम में लग जाऊँगा।’

इंस्पेक्टर साहब उसकी बात से प्रभावित हुए। कुर्सी और मेगाफोन का इंतज़ाम हो गया और ‘ज़ख़्मी’ साहब अपना रजिस्टर निकाल कर तत्काल शुरू हो गये। थोड़ी देर में इंस्पेक्टर साहब ड्यूटी बदलकर चले गये।

दूसरे दिन सबेरे लौटे तो पाया ‘ज़ख़्मी’ साहब, दीन-दुनिया से बेख़बर, पूरे जोश के साथ अपनी नज़्में पढ़ने में लगे हैं। उनकी बुलन्द आवाज़ पूरे वातावरण में गूँज रही थी। बाकी सब तरफ सन्नाटा था। कहीं चिरई का पूत भी दिखायी नहीं पड़ता था।

इंस्पेक्टर को देखकर ‘ज़ख़्मी’ साहब अपना कलाम बन्द करके खड़े हो गये, बोले, ‘देख लीजिए सर, अपनी नज़्मों का कैसा असर हुआ है। कोई घरों से बाहर नहीं निकल रहा है। इस मुहल्ले के लोग यकीनन अच्छी शायरी के कद्रदाँ हैं।’

इंस्पेक्टर साहब ने संतोष ज़ाहिर किया। इधर उधर नज़र घुमायी तो देखा सामने खिड़की में कई सिर इकट्ठे हैं और उन्हें पास आने का इशारा किया जा रहा है। इंस्पेक्टर साहब खिड़की के पास पहुँचे तो उनमें से एक बन्दा हाथ जोड़कर बोला, ‘सर, कल हमसे बड़ी गलती हुई जो हमने आपकी हुक्मउदूली की। लेकिन इस शायर को यहाँ छोड़कर आपने हमें बड़ी सज़ा दे दी है। ये हज़रत जब से शुरू हुए हैं तबसे पाँच मिनट को भी बन्द नहीं हुए। एक ही सुर में लगातार पढ़े जा रहे हैं। हम रात भर सो नहीं पाये। अब हमें बर्दाश्त नहीं हो पायेगा। हम इस महामारी से मरें न मरें, इनकी शायरी से यकीनन मर जाएंगे। इन्हें यहाँ से रुख़्सत करें। हम वादा करते हैं कि आगे आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।’

इंस्पेक्टर वापस आये तो ‘ज़ख़्मी’ साहब ने पूछा, ‘सर,ये लोग क्या कह रहे थे?’

इंस्पेक्टर साहब ने जवाब दिया, ‘आपकी तारीफ कर रहे थे। आपकी शायरी उन्हें बहुत पसन्द आयी। शुक्रिया, अब आप तशरीफ़ ले जाएं।’

‘ज़ख़्मी’ साहब बोले, ‘यह मेरा कार्ड रख लीजिए। फिर कभी मेरी ज़रूरत पड़े तो याद कीजिएगा। मैं फौरन हाज़िर हो जाऊँगा। कौम की ख़िदमत करना मेरा फर्ज़ है।’

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच – #47 ☆ कुछ नहीं ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # कुछ नहीं ☆

हर मनुष्य को चाहे वह कितना ही आलसी क्यों न हो,  शारीरिक, मानसिक या बौद्धिक प्रक्रियाओं द्वारा 24×7 कार्यरत रहना पड़ता है। जब हम ‘कुछ नहीं’ करना चाहते तो वास्तव में क्या करना चाहते हैं? अपने शून्य में उपजे अपने ‘कुछ नहीं’ में छिपी संभावना को खुद ही पढ़ना होता है। जिस किसीने इस ‘कुछ नहीं’ को पढ़ और समझ लिया, यकीन मानना, वह जीवन में ‘बहुत कुछ’ करने की डगर पर निकल गया।

# घर में रहें। सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ विशाखा की नज़र से # 33 – पाठ ☆ श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

(श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  हिंदी साहित्य  की कविता, गीत एवं लघुकथा विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है। आज प्रस्तुत है  एक सार्थक, सशक्त एवं भावपूर्ण रचना  ‘पाठ । आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” में  पढ़  सकते हैं । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 33– विशाखा की नज़र से

☆ पाठ  ☆

 

लेखन के क्रम में

शिक्षक ने मुझे

पहले अक्षर लिखना सिखाया

फिर बिना मात्रा वाले शब्द

बाद में मात्रा वाले शब्द

तदनन्तर वाक्य

 

तुम मेरे जीवन में

अक्षर की तरह आये

और मैं सीखती गई

प्रेम की भाखा

 

© विशाखा मुलमुले  

पुणे, महाराष्ट्र

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 7 ☆ तुलसी, मानस और कोविद ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका शोधपूर्ण आलेख  “तुलसी, मानस और कोविद”)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 7 ☆ 

☆  तुलसी, मानस और कोविद ☆ 

भविष्य दर्शन की बात हो तो लोग नॉस्ट्राडेमस या कीरो की दुहाई देते हैं। गो. तुलसीदास की रामभक्ति असंदिग्ध है, वर्तमान कोविद प्रसंग तुलसी के भविष्य वक्ता होने की भी पुष्टि करता है। कैसे? कहते हैं ‘प्रत्यक्षं किं प्रमाणं’, हाथ कंगन को आरसी क्या? चलिए मानस में ही उत्तर तलाशें। कहाँ? उत्तर उत्तरकांड में न मिलेगा तो कहाँ मिलेगा? तुलसी के अनुसार :

सब कई निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं।

सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुःख पावहिं सब लोग।। १२० / १४

वाइरोलोजी की पुस्तकों व् अनुसंधानों के अनुसार कोविद १९ महामारी चमगादडो से मनुष्यों में फैली है।

मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला।  तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।। १२० / १५

सब रोगों की जड़ ‘मोह’ है। कोरोना की जड़ अभक्ष्य जीवों  (चमगादड़ आदि) का को खाने का ‘मोह’ और भारत में फैलाव का कारण विदेश यात्राओं का ‘मोह’ ही है। इन मोहों के कारण बहुत से कष्ट उठाने पड़ते हैं।  आयर्वेद के त्रिदोषों वात, कफ और पित्त को तुलसी क्रमश: काम, लोभ और क्रोध जनित बताते हैं। आश्चर्य यह की विदेश जानेवाले अधिकांश जन या तो व्यापार (लोभ) या मौज-मस्ती (काम) के लिए गए थे। यह कफ ही कोरोना का प्रमुख लक्षण देखा गया। जन्नत जाने का लोभ पाले लोग तब्लीगी जमात में कोरोना के वाहक बन गए। कफ तथा फेंफड़ों के संक्रमण का संकेत समझा जा सकता है।

प्रीती करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यपात दुखदाई।।

विषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब स्कूल नाम को जाना।। १२०/ १६

कफ, पित्त और वात तीनों मिलकर असंतुलित हो जाएँ तो दुखदायी सन्निपात (त्रिदोष = कफ, वात और पित्त तीनों का एक साथ बिगड़ना। यह अलग रोग नहीं ज्वर / व्याधि  बिगड़ने पर हुई गंभीर दशा है। साधारण रूप में रोगी का चित भ्रांत हो जाता है, वह अंड- बंड बकने लगता है तथा उछलता-कूदता है। आयुर्वेद के अनुसार १३ प्रकार के सन्निपात – संधिग, अंतक, रुग्दाह, चित्त- भ्रम, शीतांग, तंद्रिक, कंठकुब्ज, कर्णक, भग्ननेत्र, रक्तष्ठीव, प्रलाप, जिह्वक, और अभिन्यास हैं।) मोहादि विषयों से उत्पन्न शूल (रोग) असंख्य हैं। कोरोना वायरस के असंख्य प्रकार वैज्ञानिक भी स्वीकार रहे हैं। कुछ ज्ञात हैं अनेक अज्ञात।

जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका। कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका।।१२० १९

इस युग (समय) में मत्सर (अन्य की उन्नति से जलना) तथा अविवेक के कारण अनेक विकार उत्पन्न होंगे। देश में राजनैतिक नेताओं और सांप्रदायिक शक्तियों के अविवेक से अनेक सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक विकार हुए और अब जीवननाशी विकार उत्पन्न हो गया।

एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि।

पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि॥१२१ क

एक ही व्याधि (रोग कोविद १९)  से असंख्य लोग मरेंगे, फिर अनेक व्याधियाँ (कोरोना के साथ मधुमेह, रक्तचाप, कैंसर, हृद्रोग आदि) हों तो मनुष्य चैन से समाधि (मुक्ति / शांति) भी नहीं पा सकता।

नेम धर्म आचार तप, ज्ञान जग्य जप दान।

भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं, रोग जाहिं हरिजान।। १२१ ख

नियम (एकांतवास, क्वारेंटाइन), धर्म (समय पर औषधि लेना), सदाचरण (स्वच्छता, सामाजिक दूरी, सेनिटाइजेशन,गर्म पानी पीना आदि ), तप (व्यायाम आदि से प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाना), ज्ञान (क्या करें या न करें जानना), यज्ञ (मनोबल हेतु ईश्वर का स्मरण), दान (गरीबों को या प्रधान मंत्री कोष में) आदि अनेक उपाय हैं तथापि व्याधि सहजता से नहीं जाती।

एहि बिधि सकल जीव जग रोगी। सोक हरष भय प्रीति बियोगी।।

मानस रोग कछुक मैं गाए। हहिं सब कें लखि बिरलेहिं पाए।।१२१ / १

इस प्रकार सब जग रोग्रस्त होगा (कोरोना से पूरा विश्व ग्रस्त है) जो शोक, हर्ष, भय, प्यार और विरह से ग्रस्त होगा। हर  देश दूसरे देश के प्रति शंका, भय, द्वेष, स्वार्थवश संधि, और संधि भंग आदि से ग्रस्त है। तुलसी ने कुछ मानसिक रोगों का संकेत मात्र किया है, शेष को बहुत थोड़े लोग (नेता, अफसर, विशेषज्ञ) जान सकेंगे।

जाने ते छीजहिं कछु पापी। नास न पावहिं जन परितापी।।

बिषय कुपथ्य पाइ अंकुरे।  मुनिहु हृदयँ का नर बापुरे।। १२१ / २

जिनके बारे में पता च जाएगा ऐसे पापी (कोरोनाग्रस्त रोगी, मृत्यु या चिकित्सा के कारण) कम हो जायेंगे , परन्तु विषाणु का पूरी तरह नाश नहीं होगा। विषय या कुपथ्य (अनुकूल परिस्थिति या बदपरहेजी) की स्थिति में मुनि (सज्जन, स्वस्थ्य जन) भी इनके शिकार हो सकते हैं जैसे कुछ चिकित्सक आदि शिकार हुए तथा ठीक हो चुके लोगों में दुबारा भी हो सकता है।

तुलसी यहीं नहीं रुकते, संकेतों में निदान भी बताते हैं।

राम कृपाँ नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥

सदगुर बैद बचन बिस्वासा। संजम यह न बिषय कै आसा॥ १२१ / ३

ईश्वर की कृपा से संयोग (जिसमें रोगियों की चिकित्सा, पारस्परिक दूरी, स्वच्छता, शासन और जनता का सहयोग) बने, सद्गुरु (सरकार प्रमुख) तथा बैद (डॉक्टर) की सलाह मानें, संयम से रहे, पारस्परिक संपर्क न करें तो रोग का नाश हो सकता है।

रघुपति भगति सजीवन मूरी। अनूपान श्रद्धा मति पूरी॥

एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं। नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं॥

ईश्वर की भक्ति संजीवनी जड़ी है। श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान (दवा के साथ लिया जाने वाला मधु आदि) है। इस प्रकार का संयोग हो तो वे रोग भले ही नष्ट हो जाएँ, नहीं तो करोड़ों प्रयत्नों से भी नहीं जाते।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

आलेख के शोधपरक विचार लेखक के व्यक्तिगत  विचार हैं। 

 

 

 

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media# 6 ☆ गुमनाम साहित्यकारों की कालजयी रचनाओं का भावानुवाद ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

(हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी द्वारा ई-अभिव्यक्ति के साथ उनकी साहित्यिक और कला कृतियों को साझा करने के लिए उनके बेहद आभारी हैं। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र कैप्टन प्रवीण जी ने विभिन्न मोर्चों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर एवं राष्ट्रीय स्तर पर देश की सेवा की है। वर्तमान में सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं साथ ही विभिन्न राष्ट्र स्तरीय परियोजनाओं में शामिल हैं।

स्मरणीय हो कि विगत 9-11 जनवरी  2020 को  आयोजित अंतरराष्ट्रीय  हिंदी सम्मलेन,नई दिल्ली  में  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी  को  “भाषा और अनुवाद पर केंद्रित सत्र “की अध्यक्षता  का अवसर भी प्राप्त हुआ। यह सम्मलेन इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, दक्षिण एशियाई भाषा कार्यक्रम तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय, हिंदी उर्दू भाषा के कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित  किया गया था। इस  सम्बन्ध में आप विस्तार से निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं :

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

☆ Anonymous Litterateur of Social Media # 6/सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 6 ☆ 

आज सोशल मीडिया गुमनाम साहित्यकारों के अतिसुन्दर साहित्य से भरा हुआ है। प्रतिदिन हमें अपने व्हाट्सप्प / फेसबुक / ट्विटर / यूअर कोट्स / इंस्टाग्राम आदि पर हमारे मित्र न जाने कितने गुमनाम साहित्यकारों के साहित्य की विभिन्न विधाओं की ख़ूबसूरत रचनाएँ साझा करते हैं। कई  रचनाओं के साथ मूल साहित्यकार का नाम होता है और अक्सर अधिकतर रचनाओं के साथ में उनके मूल साहित्यकार का नाम ही नहीं होता। कुछ साहित्यकार ऐसी रचनाओं को अपने नाम से प्रकाशित करते हैं जो कि उन साहित्यकारों के श्रम एवं कार्य के साथ अन्याय है। हम ऐसे साहित्यकारों  के श्रम एवं कार्य का सम्मान करते हैं और उनके कार्य को उनका नाम देना चाहते हैं।

सी-डैक के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एचपीसी ग्रुप में वरिष्ठ सलाहकार तथा हिंदी, संस्कृत, उर्दू एवं अंग्रेजी भाषाओँ में प्रवीण  कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने  ऐसे अनाम साहित्यकारों की  असंख्य रचनाओं  का कठिन परिश्रम कर अंग्रेजी भावानुवाद  किया है। यह एक विशद शोध कार्य है  जिसमें उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी है। 

इन्हें हम अपने पाठकों से साझा करने का प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने पाठकों एवं उन अनाम साहित्यकारों से अनुरोध किया है कि कृपया सामने आएं और ऐसे अनाम रचनाकारों की रचनाओं को उनका अपना नाम दें। 

कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी ने भगीरथ परिश्रम किया है और इसके लिए उन्हें साधुवाद। वे इस अनुष्ठान का श्रेय  वे अपने फौजी मित्रों को दे रहे हैं।  जहाँ नौसेना मैडल से सम्मानित कैप्टन प्रवीण रघुवंशी सूत्रधार हैं, वहीं कर्नल हर्ष वर्धन शर्मा, कर्नल अखिल साह, कर्नल दिलीप शर्मा और कर्नल जयंत खड़लीकर के योगदान से यह अनुष्ठान अंकुरित व पल्लवित हो रहा है। ये सभी हमारे देश के तीनों सेनाध्यक्षों के कोर्स मेट हैं। जो ना सिर्फ देश के प्रति समर्पित हैं अपितु स्वयं में उच्च कोटि के लेखक व कवि भी हैं। वे स्वान्तः सुखाय लेखन तो करते ही हैं और साथ में रचनायें भी साझा करते हैं।

☆ गुमनाम साहित्यकार की कालजयी  रचनाओं का अंग्रेजी भावानुवाद ☆

(अनाम साहित्यकारों  के शेर / शायरियां / मुक्तकों का अंग्रेजी भावानुवाद)

कितनी आसान थी ज़िन्दगी तेरी राहें

मुशकिले हम खुद ही खरीदते है

और कुछ मिल जाये तो अच्छा होता

बहुत पा लेने पे भी यही सोचते है…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

O life! How simple were  your  ways…

We only bought slew of  difficulties on our own

Kept craving continuously, even after acquiring a lot,

How nice it would be if only I could get something more

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

इस सफ़र में

नींद ऐसी खो गई

हम न सोए

रात थक कर सो गई …

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

In this sojourn of life…

Lost sleep like this

Never could I sleep

Tired night only slept off…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

हर रोज़ ख़ुद पे ही बहुत…

हैरान बहुत होता हूँ मैं

कोई तो है मुझ में  जो…

बिल्कुल ही जुदा है मुझ से…!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

Everyday  I  keep  getting

too  surprised  on  myself…

There’s someone in me who’s

completely different from me…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

सारी उम्र गुजर गयी……

खुशियाँ बटोरते बटोरते

बाद में पता चला कि

खुश तो वो लोग थे

जो खुशियाँ बाट रहे थे…

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

Whole life passed away in

Picking up  the  happiness…

Only to find happy were those

Who kept sharing happiness..!

❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃ ❃

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

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मराठी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या # 10 ☆ समर्पण ☆ श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे

ई-अभिव्यक्ति में श्री प्रभाकर महादेवराव धोपटे जी  के साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्नपाकळ्या को प्रस्तुत करते हुए हमें अपार हर्ष है। आप मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वेस्टर्न  कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड, चंद्रपुर क्षेत्र से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। अब तक आपकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें दो काव्य संग्रह एवं एक आलेख संग्रह (अनुभव कथन) प्रकाशित हो चुके हैं। एक विनोदपूर्ण एकांकी प्रकाशनाधीन हैं । कई पुरस्कारों /सम्मानों से पुरस्कृत / सम्मानित हो चुके हैं। आपके समय-समय पर आकाशवाणी से काव्य पाठ तथा वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं। प्रदेश में विभिन्न कवि सम्मेलनों में आपको निमंत्रित कवि के रूप में सम्मान प्राप्त है।  इसके अतिरिक्त आप विदर्भ क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। अभी हाल ही में आपका एक काव्य संग्रह – स्वप्नपाकळ्या, संवेदना प्रकाशन, पुणे से प्रकाशित हुआ है, जिसे अपेक्षा से अधिक प्रतिसाद मिल रहा है। इस साप्ताहिक स्तम्भ का शीर्षक इस काव्य संग्रह  “स्वप्नपाकळ्या” से प्रेरित है । आज प्रस्तुत है उनकी एक  भावप्रवण कविता “समर्पण“.) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – स्वप्नपाकळ्या # 10 ☆

☆ कविता – समर्पण

 

तुझ्यासमीप साजणी,क्षण गं एक राहू दे

एकरुप होऊनी, प्रीतीसुगंध वाहू दे!!

 

क्षण गं एक,एक निमिष

एक घटी,एक दिवस

एक मास,एक वर्ष

तुजसवे गं राहू दे,जीवन एक पाहू दे!!

 

लोचनी मनी ,तव जीवनी

अधरद्वयी ,फुलराणी

गात्री तुझ्या ,ध्यानी मनी

मज समीप राहू दे, सुगंधात न्हाऊ दे !!

 

वसंत हा ,बहार ही

हाच मधू ,मास ही

या ऋतूत ,पंचम ऋतू

एक वेळ येऊ दे,समर्पण गं होऊ दे!!

 

©  प्रभाकर महादेवराव धोपटे

मंगलप्रभू,समाधी वार्ड, चंद्रपूर,  पिन कोड 442402 ( महाराष्ट्र ) मो +919822721981

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – बेटी की अभिलाषा ☆ – श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”


(आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित  एक भावप्रवण रचना  – बेटी की अभिलाषा)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य – बेटी की अभिलाषा ☆

मैं बेबस हूँ लाचार हूं, मैं इस जग की ही नारी हूं।
सबने मुझ पे जुल्म किये मैं क़िस्मत की मारी हूं।

हमने जन्माया इस जग को‌, लोगों ने अत्याचार किया।
जब जी‌ चाहा‌ दिल से खेला, जब चाहा दुत्कार दिया।

क्यो प्यार की खातिर मानव, ताजमहल बनवाता है।
जब भी नारी प्यार करे, तो जग बैरी हो जाता है।

जिसने अग्नि‌ परीक्षा ली  वे गंभीर ‌पुरूष ही थे।
जो मुझको जूएँ में हारे, वे सब महावीर ही थे।

अग्नि परीक्षा दी हमने, संतुष्ट किसी को ना कर पाई।
क्यों चीर हरण का दृश्य देख, सबको शर्म नहीं आई।

अपनी लिप्सा की खातिर ही, बार बार मुझे त्रास दिया।
जब जी चाहा जूएँ में हारा और जब चाहा वनवास दिया।

कर्मों कर्त्तव्यों की बलि बेदी पर, नारी ही चढ़ाई जाती है।
कभी जहर पिलाई जाती है, कभी वैन में भेजी जाती है।

मेरा अपराध बताओ लोगों, क्यों घर से ‌मुझे निकाला था?
क्या अपराध किया था, क्यो हिस्से में विष का प्याला था?

मानव का दोहरा चरित्र, मुझे कुछ  भी समझ न आता है।
मैं नारी नहीं पहेली हूं, सारे जीवन में गमों से नाता है ।

अब भी दहेज की बलि वेदी पर, मुझे चढ़ाया जाता है।
अग्नि में जलाया जाता है, फांसी पे झुलाया जाता है।

दुर्गा काली का रूप समझ, मेरा पांव पखारा जाता है।
फिर क्यो दहेज के डर से, मुझे कोख में मारा जाता है

जब मैं दुर्गा मैं ही काली, मुझमें ही शक्ति बसती है।
क्यो अबला का संबोधन दे, दुनिया हम पे हंसती है।

अब तक तो नर ही दुश्मन था, नारी ‌भी उसी राह चली।
ये बैरी हुआ जमाना अपना, नां ममता की छांव मिली।

सदियों से शोषित पीड़ित थी, पर आज समस्या बदतर है।
अब तो जीवन ही खतरे में, क्या ‌बुरा कहें क्या बेहतर है।

मेरा अस्तित्व मिटा जग से, नर का जीवन नीरस होगा।
फिर कैसे वंश बृद्धि होगी, किस‌ कोख में तू पैदा होगा।

मैं हाथ जोड़ बिनती करती, मुझको इस जग में आने दो।
मेरा वजूद मत खत्म करो, कुछ करके मुझे दिखाने दो।

यदि मैं आइ इस दुनिया में, तो कुलों का मान बढ़ाऊंगी।

अपनी मेहनत प्रतिभा के बल पर, ऊंचा पद मैं पाऊंगी।

बेटी पत्नी मइया बन कर,   जीवन भर साथ निभाउंगी।
सबकी करूंगी सेवा रात दिवस,  बेटे का फर्ज निभाउंगी।

सबका जीवन सुखमय होगा, खुशियों के फूल खिलाऊंगी
सारे समाज की सेवा कर, मैं नाम अमर कर जाऊंगी।

मैं इस जग की बेटी हूं, मेरी अब यही कहानी है।
दिल  है भावों से भरा हुआ और आंखों में पानी है।

जब कर्मपथ पथ चलती हूं, लिप्सा की आग से जलती हूं।
अपने ‌जीवन की आहुति दे, मैं कुंदन बन के निखरती हूं।

 

© सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 36 ☆ गुलमोहर ☆ सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “ गुलमोहर ”।  इसी  1 मई को  महाराष्ट्र के सतारा में  विधिवत गुलमोहर जन्म दिवस मनाया गया है ।  सुश्री सुजाता जी के आगामी साप्ताहिक स्तम्भों में नीलमोहर एवं  अमलतास पर अतिसुन्दर रचनाएँ साझा करेंगे।  )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 36 ☆

  ☆ गुलमोहर ☆

लाल साफा बाँधा है,

या पूर्व दिशा ही पहनी है!

सूरज की अटारी

 

पर रहते हो,

या सूरज ही

तुम पर बसता है।

 

डाल डाल की लालिमा

पात पात को

छुपाती है।

 

गुलमोहर तू यह तो

बता सिन्दूरी बन

क्यों बसते हो।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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