हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ संजय उवाच – #13 – चौरासी कोसी परिक्रमा ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली   कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 13 ☆

 

☆ चौरासी कोसी परिक्रमा ☆

 

लगभग एक घंटे पहले छिटपुट बारिश हुई है। भोजन के पश्चात घर की बालकनी में आया तो वहाँ का दृश्य देखकर मन प्रफुल्लित हो उठा। सुरक्षा जाली की सलाखों पर पानी की मोटी बूँदें झूल रही थीं। बालकनी के पार खड़े विशाल पेड़ अपनी फुनगियों पर गुलाबी फूलों से लकदक यों झूम रहे थे मानों सुबह-सवेरे कोई मुनिया अपनी चोटियों पर दो गुलाबी रिबन कसे इठलाती हुई स्कूल जा रही हो। इस दृश्य को कैमरे में उतारने का मोह संवरण न कर सका।

मोबाइल के कैमरे ने चित्र उतारा तो मन का कैमरा चित्र को मस्तिष्क की तरंगों तक ले गया और मन-मस्तिष्क क गठजोड़ विचार करने लगा। क्या हमारा क्षणभंगुर जीवन साँसों का आलंबन लिए इन बूँदों जैसा नहीं है? हर बूँद को लगता है  जैसे वह कभी न ढलेगी, न ढलकेगी। सत्य तो यह है कि अपने ही भार से बूँद प्रतिपल माटी में मिलने की ओर बढ़ रही है। कालातीत सत्य का अनुपम सौंदर्य देखिए कि बूँद माटी में मिलेगी तो माटी उम्मीद से होगी। माटी उम्मीद से होगी तो अंकुर फूटेंगे। अंकुर फूटेंगे तो पौधे पनपेंगे। पौधे पनपेंगे तो वृक्ष खड़े होंगे। वृक्ष खड़े होंगे तो बादल घिरेंगे। बादल घिरेंगे तो बारिश होगी। बारिश होगी तो बूँदें टपकेंगी। बूँदें टपकेंगी तो सलाखें भीगेंगी। सलाखें भीगेंगी तो उन पर पानी की मोटी बूँदें झूलेंगी…!

वस्तुत: सलाखें, बूँदें, पेड़, सब प्रतीक भर हैं। जीवात्मा असीम आनंद के अनंत चक्र की चौरासी कोसी परिक्रमा कर रहा है। बरसाती बादल की तरह छिपते-दिखते इस चक्र को अद्वैत भाव से देख सको तो जीवन के ललाट पर सतरंगा इंद्रधनुष उमगेगा।…इंद्रधनुष उमगने के पहले चरण में चलो निहारते हैं सलाखें, बूँदें और पेड़…!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ # 1 – विशाखा की नज़र से ☆ पूर्व/पश्चिम☆ – श्रीमति विशाखा मुलमुले

श्रीमति विशाखा मुलमुले 

 

(हम श्रीमती  विशाखा मुलमुले जी  के  ह्रदय से आभारी हैं  जिन्होंने  ई-अभिव्यक्ति  के लिए  “साप्ताहिक स्तम्भ – विशाखा की नज़र से” लिखने हेतु अपनी सहमति प्रदान की. आप कविताएँ, गीत, लघुकथाएं लिखती हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं.  आपकी कविताओं का पंजाबी एवं मराठी में भी अनुवाद हो चुका है।  आज प्रस्तुत है उनकी रचना  पूर्व/पश्चिम.  अब आप प्रत्येक रविवार को श्रीमती विशाखा मुलमुले जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे. )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 1 – विशाखा की नज़र से

 

☆ पूर्व/पश्चिम ☆

 

कितना अंतर है हम दोनों के मध्य

मैं पूर्व तू पश्चिम ,जब मै उदित तू अस्त

पर कभी मेरे द्वारा अर्पित सूर्य को अर्ध्य

अब तेरे सागर में हिलोरे लेता है

तेरे मनचंद्र को प्रभावित करता है

 

जिस ओंकार स्मरण से

मेरी धरती का मन भर गया

तू उसका अनुसरण करने लगा

ध्यान, योग, वेदों में भ्रमण करने लगा ।

 

जिस पौरुष को तूने 200 वर्ष तक दमित किया ,

उसकी कई पीढ़ियों को संक्रमित किया ।

अब उसके मानसरोवर में संशय के बत्तखों को स्वतंत्र कर,

तू कैलाश आरोहण करने लगा, परमसत्य खोजने चला ।

 

अब तू ही कल आकर,

वही ज्ञान पूर्व को बताएगा,

संस्कृत का महत्व जतायेगा ।

फिर हम,

उसी पश्चिम सागर के जल से सूर्य अर्ध्य का दर्प करेंगे,

सप्तऋषियों को चकित करेंगे ।

 

© विशाखा मुलमुले  ✍

पुणे, महाराष्ट्र

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ? मी_माझी – #20 – ☆ प्रवास ☆ – सुश्री आरूशी दाते

सुश्री आरूशी दाते

 

(प्रस्तुत है  सुश्री आरूशी दाते जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “मी _माझी “ शृंखला की अगली कड़ी प्रवास सुश्री आरूशी जी  के आलेख मानवीय रिश्तों  को भावनात्मक रूप से जोड़ते  हैं.  सुश्री आरुशी के आलेख पढ़ते-पढ़ते उनके पात्रों को  हम अनायास ही अपने जीवन से जुड़ी घटनाओं से जोड़ने लगते हैं और उनमें खो जाते हैं।  यह सत्य है कि अक्सर हम जीवन में कई प्रवास करते हैं.  कभी कभी हम थक जाते हैं . हम अर्थात हमारा शरीर या मन.  उस थकान का अहसास कभी शरीर तो कभी मन दे देता है.  किन्तु, हमारा जीवन भी तो आखिर एक प्रवास ही है न ? इस प्रवास पर सुश्री आरुशी जी का विमर्श अत्यंत सहज किन्तु गंभीर है.  सुश्रीआरुशी जी के  संक्षिप्त एवं सार्थकआलेखों  तथा काव्याभिव्यक्ति का कोई सानी नहीं।  उनकी लेखनी को नमन। इस शृंखला की कड़ियाँ आप आगामी प्रत्येक रविवार को पढ़  सकेंगे।) 

 

? साप्ताहिक स्तम्भ – मी_माझी – #20 ?

 

☆ प्रवास ☆

 

प्रवास करून करून थकले बाई, बास आता, कुठ्ठे कुठ्ठे जाणं नको आता…

असं बऱ्याच वेळा होतं, आणि थकलेलं मन किंवा शरीर हा डायलॉग बोलून जातं. कधी कधी हे मनातल्या मनात असतं तर कधी बोलून दाखवलं जातं… मन किंवा शरीर थकत आहे म्हणजे नक्कीच त्यांचा उपयोग केला जात आहे…

जन्म आणि मृत्यू ह्यातील प्रत्येक क्षणाचा प्रवास हा आपल्याला समृद्ध करणारा असतो… फक्त आपण समृद्ध होत आहोत ही जाणीव खूप महत्त्वाची असते… कुठलाही प्रवास काही तरी देऊन जातो आणि जेव्हा काही तरी घेऊन जातो तेव्हा आपलं आयुष्य नक्कीच बदलून जातो… प्रवासात येणारे अनुभव, घालवलेला वेळ, पैसा, बुद्धी, कष्ट ह्याला नक्कीच काही ना काही तरी अर्थ आहे, विनाकारण कोण कशाला ह्या गोष्टी खर्च करेल, हो ना ? ह्या प्रवासातून काही तरी साध्य होणार आहे म्हणून हा सगळा खटाटोप केला जातो… निरर्थक काहीच नाही…

खरंच हा प्रवास करताना किती ऍडजस्टमेंट करायला लागतात नाही, कधी ह्या अडजस्टमेंट्स मान्य असतात, तर कधी नाही. पर्याय नसतो कधी कधी. काही वेळा त्यामुळे चीड चीड होते, पण सकारात्मकता असेल तर हे ही दिवस जातील ह्या प्रमाणे हा प्रवासही सुखाचा होईल ह्यात शंका नाही. त्यात प्रवासातील साथीदार कोण आहेत, त्यांची गरज किंवा आवश्यकता काय आहे, त्यांचे त्या प्रवासातील महत्व काय आहे ह्या गोष्टी खूप घडवून आणतात…

किती ही काही झालं तरी, प्रवासाची दिशा जर ठरलेली नसेल तर सगळंच अवघड होऊन बसेल, हो ना? म्हणजे भरकटलेला प्रवास कदाचित निरर्थक ठरेल, त्याचे परिणामही चांगले नसतील, त्यामुळे सर्व जाणिवा जिवंत ठेवून प्रवासाचा आनंद घेणे कधी ही योग्यच ठरेल… असा प्रवास प्रगल्भतेकडे नेणारा असेल…

 

© आरुशी दाते, पुणे 

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 9 – सीता की गीता ☆ – श्री आशीष कुमार

श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “अद्भुत पराक्रम।)

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 9 ☆

 

☆ सीता की गीता

 

देवी सीता ने कहा, “मेरी प्यारी बेटी, पत्नी को केवल अपने पति की नियति का पालन करना चाहिए । एक स्त्री  के लिए उसके पिता, उसका बेटा, उसकी माँ, उसकी सखियों, बहन, भाई, एवं स्वयं से बढ़कर भी उसका पति ही है, जो इस संसार में और उसकी आने वाली आगामी जिंदगियों में मोक्ष का उसका एकमात्र साधन है । एक स्त्री के लिए सबसे बड़ी सजावट बाह्य आभूषण नहीं बल्कि उसके पति की खुशी है ।

अपनी बेटी को अपने पति और अपने सास- ससुर को प्यार, सम्मान और स्नेह देने के लिए प्रशिक्षित करना एक माता का परम कर्तव्य है ।

देवी सीता ने आगे कहा, “अब मैं आपको पत्नी के कुछ कर्तव्यों को बताऊँगी जिन्हें हर एक पत्नी को उसकी जाति, संस्कृति, पृष्ठभूमि, देश इत्यादि के बावजूद पालन करना चाहिए । वे निम्नलिखित हैं :

  • एक अच्छी पत्नी को अपने पति के घर में खुद को स्थायी रूप से स्थापित करना चाहिए ।
  • पत्नी को अपने पति की देख रेख में ही रहना चाहिए ।
  • पत्नी को अपने पति के प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण की ओर आकर्षित रहना चाहिए और हमेशा अपने पति के प्रति ईमानदार रहना चाहिए ।
  • पत्नी को अपने पति के घर में इतना प्यार और स्नेह खोजना चाहिए कि उसे अपने माता-पिता के घर को याद ही ना आये ।
  • पत्नी को अपने पति के प्रति मधुर रूप से आचरण करना चाहिए ।

पत्नी के कुछ अन्य मुख्य गुण :

उसे केवल अपने पति की ओर कामुक होना चाहिए, उसे घर के कामो के प्रति मेहनती होना चाहिए, सर्वोत्तम व्यवहार करना चाहिए, घर को सर्वोत्तम तरीके से बनाए रखने, पति के धन- धान्य को संरक्षित करने और बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, एवं ज़रूरत वाले लोगों पर पति की कमाई का भाग खर्च करना, घर को बहुत परिपक्व तरीके से बढ़ाने के लिए, पति की कमाई को सावधानी पूर्वक इस्तमाल करना चाहिए । उसे दुःख और क्रोध से प्रभावित नहीं होना चाहिए, हर किसी को अपने अच्छे व्यवहार से खुश रखना चाहिए, उसे हर रोज सूर्योदय से पहले जागना चाहिए एवं कभी भी अपने पति से अलग होने के विषय में नहीं सोचना चाहिए ।

त्रिजटा ने कहा, “माँ मुझे जो आपने अपने ज्ञान का आशीर्वाद दिया है वह अद्भुत है, अब कृपया मुझे पति के कर्तव्यों के विषय में बताएं”

देवी सीता ने कहा, “पुत्री अपने कर्तव्यों को पूर्णतय पालन करने का सबसे अच्छा उपाय यह है की हम दूसरों के कर्तव्यों से अपने कर्तव्यों की तुलना ना करे । मैं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान की पत्नी हूँ और मैं केवल अपने पति और उनके परिवार के लिए अपने कर्तव्यों को पूरा करने के विषय में ही सोचती और जानती हूँ लेकिन पुत्री यदि तुम पूछ ही रही हो तो मैं तुमको बता दूँगी, एक बार मेरे पति ने मुझे पति के कर्तव्यों के विषय में समझाया था, वे ये हैं:

  • पति के प्यारे और प्यारे व्यवहार से पत्नी को उसके प्रति प्यार और स्नेह पैदा करना चाहिए ।
  • पति को पत्नी से कुछ छिपाना नहीं चाहिए ।
  • उसे एक अनुशासित, पवित्र जीवन जीना चाहिए ।
  • वह अपने विवाहित जीवन को बनाए रखने के लिए पैसे कमाने में सक्षम होना चाहिए।
  • पति को अपनी पत्नी का सम्मान करना चाहिए ।

मर्यादा पुरुषोत्तम मर्यादा का अर्थ है केवल वो ही कार्य करना जो एक व्यक्ति के उसकी जाति, राज्य, अवस्था आदि से निर्धारित उसके धर्म है । पुरुषोत्तम का अर्थ है पुरुषो में उत्तम या जो आदर्श पुरुष हो । पुरुषोत्तम भगवान विष्णु के नामों में से एक हैं और महाभारत के विष्णु सहस्रनाम में भगवान विष्णु के 24 वें नाम के रूप में प्रकट होता हैं । भागवत गीता के अनुसार, पुरुषोत्तम को क्षार और अक्षार के ऊपर और परे समझाया गया है या एक सर्वज्ञानी ब्रह्मांड के रूप में समझाया गया है । भगवान विष्णु के अवतार के रूप में भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, जबकी भगवान विष्णु को भगवान कृष्णा के अवतार के रूप में लीला या पूर्ण पुरुषोत्तम के रूप में जाना जाता है ।

 

© आशीष कुमार  

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मराठी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 6 ☆ माझे स्वप्न ☆ – श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

 

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है. श्रीमती उर्मिला जी के    “साप्ताहिक स्तम्भ – केल्याने होतं आहे रे ”  की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है  उनकी  परिकल्पित कविता  माझे स्वप्न.  श्रीमती उर्मिला जी  की  वृक्ष होने की कल्पना अद्भुत है  और सांकेतिक पर्यावरण का सन्देश भी देती है.  श्रीमती उर्मिला जी  को ऐसी सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाई. )

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ –केल्याने होतं आहे रे # 6 ☆

 

☆ माझे स्वप्न ☆

 

मला वाटते एक सुंदर झाड मी व्हावे !

कुणीतरी मातीत मला रुजवावें !

त्यावर झारीने पाणी फवारावे !

मग मी मस्त तरारावें !

मी एक सुंदर झाड मी व्हावे !!१!!

 

फुटावित कोवळी पाने !

कसा हिरवागार जोमाने !

दिसामाजी मी वाढतच जावें !

मी एक सुंदर झाड व्हावें !!२!!

 

यावीत सुंदर सुगंधी फुले !

तोडाया येतील मुलीमुलें !

होतील आनंदी मुलें !

मुली आवडीने केसात माळतील फुले !

होई आनंदी माझे जगणें  !!३!

 

येतील मधुर देखणी फळे !

पक्षी होती गोळा सारे !

आनंदाने खातील फळे !

चिवचिवाट करतील सारे !!४!!

 

गाईगुरे येतील सावलीत !

बसतील रवंथ करीत !

झुळुझुळू वारे वाहतील !

चहूकडे आनंद बहरेल !!५!!

 

मला भेटण्या येतील वृक्षमित्र !

काढतील सुंदर छायाचित्र !

छापून देईल वर्तमानपत्र !

मग प्रसिद्धी पावेल सर्वत्र !

बहु कृतकृत्य मी व्हावे !

मी एक सुंदर झाड व्हावें !!६!!

 

माझ्या फळातील बीज सारे !

नेतील गावोगावी सारे !

वृक्ष लावा जगवा देतील नारे !

माझे बीज सर्वत्र अंकुरें !

माझ्या वंशाला फुटतील धुमारे !

रानी वनी आनंदाचे झरे

मी एक सुंदर वृक्ष झालो रे !

मी एक सुंदर वृक्ष झालो रे !!७!!

 

©® उर्मिला इंगळे, सातारा

दिनांक:-#२०-९-१९

!! श्रीकृष्णार्पणमस्तु !!

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 7 ☆ फिरूनी जन्म घ्यावा…. ☆ – सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की  एक भावप्रवण मराठी कविता  ‘फिरूनी जन्म घ्यावा….’।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 7

☆ फिरूनी जन्म घ्यावा….

 

फिरूनी जन्म घ्यावा,
की जन्मभर फिरावे
रे मानवा ! तुची रे ठरवावे..

भरावे मनाचे गगन चांदण्याने,
की व्देषाच्या आगीत स्वतः जळावे,
रे मानवा ! तुची रे ठरवावे..

रहावे थांबून डोळ्यांच्या किनारी,
की वहावे पूरात स्वतः बुडवावे,
रे मानवा ! तुची रे ठरवावे..

जगावा प्रत्येक श्वास हृदयाचा,
की मोजक्याच श्वासात स्वतः संपवावे,
रे मानवा ! तुची रे ठरवावे..

छेडूनी अंतरी तार संगीताची,
की बेसुरी संगतीत स्वतः भिजवावे,
रे मानवा ! तुची रे ठरवावे..

कवटळून घ्यावे अथांग क्षितिजास,
की कोंडी करावी स्वतःच्या मनाची,
रे मानवा ! तुची रे ठरवावे..

जगाच्या पसा-सात, पसरूनी हरवावे,
की स्वतःच्या मनी जग निर्माण करावे,
रे मानवा ! तुची रे ठरवावे..

 

© सौ. सुजाता काळे ✍

पंचगनी, महाराष्ट्र।

9975577684

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 14 ☆ माँ तुझे प्रणाम  ☆ – डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ  -साहित्य निकुंज”के  माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार को डॉ भावना जी के साहित्य से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ. भावना शुक्ल जी की एक हृदयस्पर्शी कविता  “माँ तुझे प्रणाम ”। 

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – # 14  साहित्य निकुंज ☆

 

☆ माँ तुझे प्रणाम 

 

माँ

जीवन है

तुम्हारा नाम है

ईश्वर से पहले

तुमको प्रणाम है

तेरी याद में अब जीना है

धरती और आकाश बिछौना है

मन हैं बहुत बैचेन

बिन तेरे नहीं हैं चैन

मन नहीं करता

कलम उठाने को

लगता है

शब्द

हो गये हैं निर्जीव

लेकिन

यादें हैं सजीव

क्योंकि

जिंदगी नहीं रूकती

जिंदगी चलने का नाम है

चाहता है मन

करना है बहुत से काम

लिखना है माँ के नाम

माँ तुझे प्रणाम.

© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची

 

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मराठी साहित्य – समाजपारावरून साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ पुष्प पंधरावे # 15 ☆ नैसर्गिक आपत्ती☆ – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

 

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक,  सांस्कृतिक  एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं ।  इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से वे किसी न किसी सामाजिक  अव्यवस्था के बारे में चर्चा करते हैं एवं हमें उसके निदान के लिए भी प्रेरित करते हैं।  आज श्री विजय जी ने एक गंभीर विषय “नैसर्गिक आपत्ती ” चुना है।  श्री विजय जी ने प्राकृतिक आपदाओं  जैसे गंभीर मुद्दे पर इस आलेख में चर्चा की है।  ऐसे ही  गंभीर विषयों पर आप प्रत्येक शुक्रवार को उनके मानवीय संवेदना के सकारात्मक साहित्य को पढ़ सकेंगे।  )

 

☆ साप्ताहिक स्तंभ –समाज पारावरून – पुष्प पंधरावे # 15 ☆

 

☆ नैसर्गिक आपत्ती ☆

 

समाजपारावरून आज निसर्ग  आपत्ती विषयी जरा बोलावेसे वाटत आहे.  निसर्गाचे संरक्षण,  आणि संवर्धन जर  आपल्या हातून घडले तर हाच निसर्ग  आपल्याला वनौषधी, रानमेवा  आणि  आरोग्य संपदेने परीपूर्ण करू शकतो.

अतिवृष्टी, ढगफुटी, हिम वर्षाव, कोरडा दुष्काळ, उन्हाचा तडाखा, वाढते  उष्णता मान, वणवा, वन्यजीव,  पशुपक्षी यांच्या प्रजाती संख्या कमी होणे,  औषधी वनस्पतींचा -हास, चक्रीवादळ,भुकंप, (धरणीकंप),  कडाक्याची  थंडी,  हहवामानात झालेले प्रतिकूल बदल ,अशा प्रकारच्या नैसर्गिक आपत्ती आपण  अनुभवीत आहोत. …..

या  आपत्तीच्या काळात सर्व संकटग्रस्तांना  वेळेवर  मदत मिळतेच असे नाही.   वित्त हानी, जीवहानी, आणि मनस्ताप भोगत या नैसर्गिक आपत्तींना सामोरे जावे लागते. नैसर्गिक आपत्ती व्यवस्थापन यंत्रणा निश्चित करून  या समस्येवर मात करता येईल.  पण नैसर्गिक आपत्ती ही बहुधा  अचानक पणे उद्भवल्याने ही समस्या गंभीर स्वरूप धारण करते.  निसर्ग हानी देखील  अशा वेळी मोठय़ा प्रमाणावर झालेली दिसते.

पर्यावरण प्रेमी संघटना,  त्यांनी केलेले सर्वेक्षण याची नोंद कुठेतरी व्हायला हवी.   कारण  नैसर्गिक आपत्ती कोसळल्यावर  मनुष्य भांबावून गेलेला असतो.  त्याला  अन्न,  वस्त्र,  निवारा, या मुलभूत गरजा कशा लवकरात लवकर पुरवता येतील  याचा पाठपुरावा प्रसार माध्यमांनी करायला हवा.

जगाच्या  कानाकोप-यात घडणा-या घटनांना विविध नैसर्गिक घडामोडींना मिडीयाच जनतेपर्यंत पोहोचवतो.  मिडियाने  प्रसारीत केलेले लघुपट,  निवूदन  पाहून  अनेक वेळा विविध उपाय योजना सरकारने राबलिल्या आहेत.

आजकाल मिडिया  हेच प्रभावी माध्यम आहे की ज्याचे मुळे आपण सावधान आणि जागरूक राहू शकतो. आदिवासी भागातील तसेच मागास वर्गीय लोकांना पुरेशा सेवा सुविधा उपलब्ध करून दिल्या. नैसर्गिक धन संपत्ती चे महत्त्व समजावून त्याचे संवर्धन करण्यासाठी प्रोत्साहन दिले तर बर्‍याच नैसर्गिक आपत्ती टाळता येतील.

वरातीमागून घोडे मिरविण्यापेक्षा मिडीया चा वापर दुर्गम भागातील नागरिकांना  उपलब्ध करून दिल्यास त्यांना काही संरक्षण दिले गेल्यास वनसंपदेचे जतन  आणि संवर्धन होऊ शकते.  नैसर्गिक आपत्ती हे संकट आले तरी त्याला तोंड देण्याची क्षमता आधुनिक तंत्रज्ञानात नक्कीचआहे. फक्त त्याचा वापर समयोचित व्हायला हवा.

प्रसारमाध्यमे ही केवळ पैसा आणि प्रसिद्धी साठी  अस्तित्वात नसून समाज कल्याण  आणि समाजप्रबोधनाचे महत्त्व पूर्ण कार्य सातत्याने करीत आहेत.  स्वतःचे संसार बाजूला ठेवून हे छायाचित्रकार,  तंत्रज्ञ पूर्ण ताकदीनिशी  अपु-या सेवा सुविधा  असताना मोठय़ा साहसाने सचित्र माहिती गोळा करून त्याचे अभ्यास पूर्ण संकलन करीत  असतात. त्याची शासकीय दरबारी कुठेतरी दखल घेतली जावी  असे मला वाटते.  प्रसार माध्यमांनी जीवावर उदार होऊन दिलेल्या माहितीवरून शासनाने झोपेतून जागे व्हायचे  आणि संकटग्रस्तांना मदत केल्याचा देखावा निर्माण करायचा हे कुठेतरी थांबायला हवे.  सरकारने  उपाययोजना करताना  अशा प्रसार माध्यमांना  आवश्यक त्या सेवा सुविधा उपलब्ध करून दिल्यास  ही निसर्गाची हानी काही प्रमाणात कमी करता येईल.  सध्याचे युग प्रगतीचे,  विकासाचे आणि माहिती व तंत्रज्ञानाचे आहे हे विसरून चालणार नाही.  नैसर्गिक आपत्ती व्यवस्थापनात याचा विचार शासकीय पातळीवर सर्वतोपरी व्हायला हवा असे मला वाटते.

 

✒  © विजय यशवंत सातपुते

यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009.

मोबाईल  9371319798.

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 2 ☆ अवसर बार बार नहीं आए ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष”  की अगली कड़ी में प्रस्तुत है उनकी रचना  “अवसर बार बार नहीं आए” . अब आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़ सकेंगे . ) 

 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 2  ☆

☆  अवसर बार बार नहीं आए ☆

 

अवसर बार बार नहीं आए ।

अहो भाग्य मानव तन पाए ।।

 

फूला फूला फिरे जगत में  ।

रात दिन दौलत की जुगत में ।।

समझ सत्य हम कभी न पाये ।

अवसर बार बार नहीं आए ।।

 

धन दौलत का ओढ़ लबादा ।

ओहदों का मद भी ज्यादा ।।

कभी किसी के काम न आये ।

अवसर बार बार नहीं आए ।।

 

दुख दर्द में न बने सहभागी ।

स्वार्थ के हो गए हम रागी  ।।

मानव मूल्यों को विसराए ।

अवसर बार बार नहीं आए ।।

 

अपना कोई रूठ न पाए ।

रूठा कोई छूट न जाये ।।

नेकी अपने साथ ही जाए ।

अवसर बार बार नहीं आए ।।

 

आओ सबसे प्रीति लगायें ।

दिल में हम “संतोष”बसायें ।।

जीवन में गर यह कर पाये ।

अवसर बार बार नहीं आए ।।

 

न जाने कल क्या हो जाये ।

चलो कुछ अच्छा हम कर जाएं ।।

अवसर बार बार नहीं आए ।

अहो भाग्य मानव तन पाए ।।

@ संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सुजित साहित्य # 16 – अक्षरांशी माझ नातं…. ! ☆ – श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं।  मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ। पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  निश्चित ही श्री सुजित  जी इस हृदयस्पर्शी रचना के लिए भी बधाई के पात्र हैं। हमें भविष्य में उनकी ऐसी ही हृदयस्पर्शी कविताओं की अपेक्षा है।  श्री सुजित जी द्वारा  वर्णित कविता  संभवतः प्रत्येक साहित्यकार की कविता है. किसी भी साहित्यकार के लिए शब्दों का सम्बन्ध जन्म जन्मांतर का होता है. फिर अक्षर तो शब्दों की ही इकाई हुई न. अक्षरों से हम सभी का नाता है किन्तु ऐसा सामंजस्य कोई श्री सुजित जी जैसा संवेदनशील कवि ही कर सकता है. प्रस्तुत है श्री सुजित जी की अपनी ही शैली में  हृदयस्पर्शी  कविता   “अक्षरांशी माझ नातं…. !”। )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #16☆ 

 

☆ अक्षरांशी माझ नातं…. ! ☆ 

 

ब-याच दिवसांनंतर

पुस्तक हातात घेतलं की

मेंदूत धूळ खात पडलेली

अक्षर खडबडून जागी होतात

आणि शोधू लागतात

पुस्तकात दडलेल त्यांचं अस्तित्व

जोपर्यंत.. . .

हातातलं पुस्तक

नजरेआड होत नाही तोपर्यंत.

आणि  . . त्यांनी पुस्तकात

शोधलेल्या त्यांच्या अस्तित्वाने

मी मात्र,

अस्वस्थ होत राहतो,

पुढचे कित्येक दिवस.. . !

शोधत राहतो

अक्षरांशी

असणार माझ नातं. . . . !

सुजित

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