हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 5 ☆ लघुकथा ☆ टूटते मकान ☆ – श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक लघुकथा   “टूटते मकान ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य  # 5 ☆

☆ लघुकथा – टूटते मकान   ☆

अभी-अभी नजूल की जमीन सरकार  ने खाली करवानी शुरू की. यह तो अच्छा हुआ कि पहले नोटिस और समय देकर फिर मकान तोड़े जा रहे थे.

पहाड़ी पर बने मकानों को पूरी तरह से पहाड़ ही रहना है सुन्दरता को बरकरार रखने हेतु यह कार्य किया जा रहा था.

बहुत समय पहले हमारा मकान बनाने आये कुछ मजदूरों में एक सुखिया भी आई थी. सुन्दर, धीमी आवाज, उसका मधुर स्वभाव और काम जी तोड़कर करना. ईमानदारी भी कूट कूटकर भरी थी.उसका यह स्वभाव हम सभी को बहुत पसंद आया था. मकान तैयार होने पर  काम खतम हुआ तो उसने घर पर काम करने की इच्छा जाहिर की. हमने उसे रख लिया. वह बहुत खुश होकर काम करती. पति ईंट गारा का काम और सुखिया घर-घर जाकर बर्तन पोंछा करती थी.

आज अभी-अभी दोनों पति-पत्नी हमारे घर आये और बड़े दुखी स्वर में बताने लगे “बाई जी बड़ी मेहनत मजदूरी से घर का सामान बनाया है. बोल्डर चलवा रहे हैं. हम कहाँ जायें बाईजी गाँव छोड़कर काम की तलाश में इहाँ आ गये. फ्रिज, कूलर, अलमारी पेट काट, काटकर बनाये हैं. हम सभी को उन पर दया आई. पहमने उनसे कहा. हमारे एक कमरे में अपना सभी सामान रख लो. जब तक सरकार तुम्हारा पूरी तरह रहने-खाने का इन्तजाम नहीं कर देती तुम यहीं रहो और काम करते रहो. जब तुम्हारा घर बन जाये तब कमरा खाली कर देना. इतना सुनते ही उन दोनों की आँखे भर आईं थी. वे हमें पल भर के लिए इतनी पवित्र लगी कि जैसे यह हमारे किये अच्छे काम का फल था या भ्रम…. उस समय इतनी पवित्र, प्यार और अहसान मंद थी आँखे  कि हम सभी भावुक हो गये. मैने कमरे की चाबी दी सुखिया की आँखों से खुशियाँ झलकने लगी थी. इतमीनान था, शान्ति थी. शायद यह उसकी अच्छाई का नतीजा था.

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 22 ☆ वो नज़्म ☆ – सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा

(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी  सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की  साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर  के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में  एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर (सिस्टम्स) महामेट्रो, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी  कविता “वो नज़्म ”। )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 22 ☆

☆ वो नज़्म

किसी ने समझा कि मेरी नज़्म गुलाब थी

किसी ने समझा कि साज़ छेड़ती रबाब थी

 

किसी ने कहा उसकी धार बहुत ही पैनी थी

लोग समझ बैठे कातिलाना कोई तेज़ाब थी

 

किसी ने पढ़कर “वाह-वाह” तो की, पर कहा

वो एहसासों को अच्छे से छुपाती नकाब थी

 

कोई रात भर एक टक बांधे निहारता रहा

कि उसे ऐसा महसूस हुआ वो महताब थी

 

मेरे लब चुप रहे, किसी से कभी कह न सके

वो नज़्म तेरे ही लिए लिखी थी, बेहिसाब थी

 

© नीलम सक्सेना चंद्रा

आपकी सभी रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिनाअनुमति  के किसी भी माध्यम में प्रकाशन वर्जित है।

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 18 ☆ दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है  अनुव्रता श्रीवास्तव चौधरी जी की प्रसिद्ध पुस्तक “दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा.  यह पुस्तक आज  के  धार्मिक एवं सामाजिक परिपेक्ष्य में पढ़ी जानी अत्यंत आवश्यक है । साथ ही आज की युवा पीढ़ी को उनकी विचारधारा से अवगत कराने की महती आवश्यकता है। श्री विवेक जी  का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा  कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 18☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण 

 

पुस्तक –दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण

लेखिका – अनुव्रता श्रीवास्तव चौधरी
प्रकाशक – रवीना प्रकाशन दिल्ली
मूल्य –  300 रु

☆ दार्शनिक क्रांतिकारी – संस्मरणात्मक कथा –  अमर शहीद भगत सिंह का पुनर्स्मरण  – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव 

समय की मांग है कि देश भक्त शहीदो के योगदान से नई पीढ़ी को अवगत करवाने के पुरजोर प्रयास हों . भगतसिंह किताबों में कैद हैं. उनको किताबों से बाहर लाना जरूरी है . उनके विचारो की प्रासंगिकता का एक उदाहरण साम्प्रदायिकता के हल के संदर्भ में देखा जा सकता है . आजादी के बरसो बाद आज भी साम्प्रदायिकता देश की बड़ी समस्या बनी हुई है, जब तब हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठते हैं .
भगत सिंह के युवा दिनो में 1924 में बहुत ही अमानवीय ढंग से हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए थे , भगतसिंह ने  देखा कि दंगो में दो अलग अलग धर्मावलंबी परस्पर लोगो की हत्या किसी गलती पर नही वरन केवल इसलिये कर रहे थे , क्योकि वे परस्पर अलग धर्मो के थे, तो उनका युवा मन आक्रोशित हो उठा . स्वाभाविक  रूप से दोनो ही धर्मो के सिद्धांतो में हत्या को कुत्सित और धर्म विरुद्ध  बताया गया है . क्षुब्ध होकर व्यक्तिगत रूप से स्वयं भगत सिंह तो नास्तिकता की ओर बढ़ गये  उन्होने जो अवधारणा व्यक्त की , कि धर्म व्यैक्तिक विषय होना चाहिये, सामूहिक नही वह आज भी सर्वथा उपयुक्त है.
उनके अनुसार ” साम्प्रदायिक दंगों की जड़ खोजें तो  इसका कारण आर्थिक ही जान पड़ता है।  सभी दंगों का इलाज यदि कोई हो सकता है तो वह भारत की आर्थिक दशा में सुधार से ही हो सकता है . भूख और दुख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धान्त ताक पर रख देता है। सच है, मरता क्या न करता। कलकत्ते के दंगों में एक  अच्छी बात भी देखने में आयी। वह यह कि वहाँ दंगों में ट्रेड यूनियन के मजदूरों ने हिस्सा नहीं लिया और न ही वे परस्पर गुत्थमगुत्था हुए, वरन् सभी हिन्दू-मुसलमान बड़े प्रेम से कारखानों आदि में उठते-बैठते और दंगे रोकने के यत्न करते रहे। यह इसलिए कि उनमें वर्ग-चेतना थी और वे अपने वर्ग हित को अच्छी तरह पहचानते थे। वर्ग चेतना का यही सुन्दर रास्ता है, जो साम्प्रदायिक दंगे रोक सकता है।”
भगत सिंह की विचारधारा और उनके सपनों पर  बात कर उनको बहस के केन्द्र में लाना युवा पीढ़ी को दिशा दर्शन के लिये वांछनीय है.  भगतसिंह ने कहा था कि देश में सामाजिक क्रांति के लिये किसान, मजदूर और नौजवानो में एकता होनी चाहिए. साम्राज्यवाद, धार्मिक-अंधविश्वास व साम्प्रदायिकता, जातीय उत्पीड़न, आतंकवाद, भारतीय शासक वर्ग के चरित्र, जनता की मुक्ति के लिए क्रान्ति की जरूरत, क्रान्तिकारी संघर्ष के तौर-तरीके और क्रान्तिकारी वर्गों की भूमिका के बारे में उन्होने न केवल मौलिक विचार दिये थे बल्कि अपने आचरण से उदाहरण बने . उनके चरित्र का अनुशीलन और विचारों को आत्मसात कर आज समाज को सही दिशा दी जा सकती है . उनके विचार शाश्वत हैं , आज भी प्रासंगिक हैं .
इस दृष्टि से वर्तमान स्थितियों में युवा लेखिका अनुव्रता श्रीवास्तव की यह किताब पठनीय व अनुकरणीय है जो संस्करणात्मक तरीके से भगत सिंह को समझने में मदद करती है . यदि कभी अखण्ड भारत का पुनर्निमाण हुआ तो  लाहौर बाघा बार्डर ही वह द्वार होगा जहां दोनो ओर के जन समुदाय एक दूसरे  को गले लगाने बढ़ आयेंगे , और तब लाहौर स्वयं सजीव हो बोल पड़े जैसा इस कथा में लेखिका ने उसके माध्यम से अभिव्यक्त किया है तो किंचित आश्चर्य नही , क्योंकि सच यही है कि राजनेता कितना ही बैर पाल लें पर बार्डर पार निर्बाध आती जाती हवा , स्वर लहरी और पक्षियो की बिना पासपोर्ट आवाजाही को कोई सेना नही रोक सकती .  भगत सिंग भारत पाकिस्तान दोनो ही मुल्कों के हीरो थे हैं और सदैव रहेंगे. किताब बार बार पठनीय व मनन करने योग्य है .
चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , जबलपुर

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती #29 – बिन पंखाचा पारवा ☆ श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना  एक काव्य  संसार है । आप  मराठी एवं  हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आज साप्ताहिक स्तम्भ  –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती  शृंखला  की अगली  कड़ी में प्रस्तुत है एक  भावप्रवण कविता  “बिन पंखाचा पारवा”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 29☆

☆ बिन पंखाचा पारवा ☆

 

थेंब पावसाचा आला

पान जोजवते त्याला

दिला पाळण्या खालून

होता दुसऱ्या पानाला

 

खेळवती त्याला पाने

गाती सळसळ गाणे

पेंग येता डोळ्यावर

पाट टेके धरणीला

 

होता निजला रे थेंब

तिथं आला एक कोंब

हात काढून बाहेर

देई सावली मातीला

 

काम थेंबाचे संपले

माती आड ते लपले

त्याने भुरळ घातली

किती शेधते मी त्याला

 

गेला आकाशी उडून

पंख आणले कोठून

बिन पंखाचा पारवा

पुन्हा येईल भेटीला

 

© अशोक श्रीपाद भांबुरे

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

[email protected]

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 29 – बिदाई ☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं  गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करती एक अतिसुन्दर प्रेरक लघुकथा  “बिदाई”। 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 29 ☆

☆ लघुकथा – बिदाई ☆

 

माना अम्मा का बाड़ा शहर के कोने पर मशहूर है। गरीब दुखी परिवार जिनके पास रहने सर छुपाने की जगह नहीं। सभी माना अम्मा के बाड़ा में आकर रहते थे।

माना अम्मा को कोई नहीं जानता था कि कहां की है और किस जात बिरादरी की है। सभी उसे मानते थे। और सभी उनका कहना मानते थे। इसलिए उनका नाम माना अम्मा पड़ गया था।

उसी बाड़े में फातिमा और शकुन दोनों का परिवार रहता था। मेहनत मजदूरी कर अपना अपना परिवार चला रहे थे। एक मुस्लिम परिवार और दूसरा हिंदू परिवार परंतु कहीं कोई भेदभाव नहीं।

दीपावली, होली भी साथ-साथ तो ईद, बकरीद भी मिलकर मनाते थे। फातिमा को गर्भ था। फातिमा बच्चा प्रसव के समय बहुत ही परेशान थी। उसका पति बार-बार डॉक्टर से हाथ जोड़कर कह रहा था… “मेरी फातिमा को बचा लीजिए” परंतु डॉक्टर ने कहा… “इनका शरीर बहुत ही कमजोर हो चुका है और खून की बहुत कमी हो गई है। हमारी कोशिश की जा रही है।” परंतु जो होना था वही हुआ नन्हीं सी बच्ची को जन्म देकर फातिमा शांत हो गई ।

शकुन पास में थी अस्पताल में कुछ उसको समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें?? बच्ची को सीने से लगा एक संकल्प लेकर उसे घर ले आए। सभी कहने लगे… कि मुसलमान की लड़की को क्यों पालने जा रही हो! परंतु शकुन को किसी बात की चिंता नहीं थी। और किसी की बात को उसने नहीं सुना ।

अपने पति, पुत्र और उस नन्हीं सी जान को लेकर सदा सदा के लिए बाड़ा से निकलकर दूसरे शहर को चली गई।

आज बिटिया की शादी हो रही है। बिदाई के समय मां के बहते हुए आंसू को बच्ची समझ नहीं पा रही थी। दोनों भाई बहन मां से लिपटे हुए थे और मां कह रही थी.. “बेटे अपनी बहन का अपने से ज्यादा ध्यान रखना। कभी उसे अकेला नहीं करना। हमेशा सुख दुख में उसका साथ देना और कभी मायके की कमी महसूस नहीं होने देना।” बेटा भी मां को अपलक देख रहा था। बहन ने हंसकर कहा… “यह छोड़ेगा तो भी मैं इसे पकड़ कर रखूंगी। आप चिंता ना करें।”

माना अम्मा भी उस शादी में शामिल थी। पुरानी राज की बात को जानकर बहुत ही मंद मंद मुस्कुरा रही थी और अपने आप में गर्व महसूस कर रही थी कि … आज मेरे बाड़े की अहमियत क्या है।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – आमंत्रित  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – आमंत्रित 

समारोह के आमंत्रितों की सूची बनकर तैयार थी। जुगाड़ लगाकर प्रदेश के एक राज्यमंत्री को बुला लिया था। शहर के प्रमुख अखबार के संपादक और एक चैनल के एक्जिक्यूटिव एडिटर थे। सूची में कलेक्टर थे, डीएसपी थे। कई बड़े उद्योगपति, जाने-माने वकील थे। अभिनेत्री को तो बाकायदा पेमेंट देकर ‘सेलिब्रिटी इनवाइटी’ बनाया था।

‘वे सब लोग आ रहे हैं जिनके दम पर दुनिया चलती है..’ लोअर डिवीजन की क्लर्की से रिटायर हुए अपने वयोवृद्ध पिता को लिस्ट दिखाते हुए इतरा कर साहब ने कहा।

‘ देखूँ ज़रा.., पर इसमें ईश्वर का नाम तो दिखता ही नहीं कहीं जिसके दम पर..,’ पिता ने चश्मे की गहरी नजर से एक-एक शब्द ध्यान से पढ़ते हुए अधूरा वाक्य कहकर अपनी बात पूरी की थी।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 26 – कविता – कर्फ्यू में गोरैया ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय

श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  उनकी एक सामयिक कविता “कर्फ्यू में गोरैया । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 26 ☆

☆ कविता – कर्फ्यू में गोरैया  

 

किसी दंगाई की,

तलवार से घायल,

खून से लथपथ,

बेबस सी गोरैया,

सुबह से मुंडेर पर,

टप टप खून बहाती,

बैठी सोच रही है,

ओ घर के मालिक

काश!

तू भी तलवार रखता,

तो इतनी देर तक,

यूँ  तेरी मुंडेर पर,

मुझे बैठना न पड़ता।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सकारात्मक सपने – #29 – संचार क्रांति ☆ सुश्री अनुभा श्रीवास्तव

सुश्री अनुभा श्रीवास्तव 

(सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विधि विशेषज्ञ, समाज सेविका के अतिरिक्त बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी  सुश्री अनुभा श्रीवास्तव जी  के साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम उनकी कृति “सकारात्मक सपने” (इस कृति को  म. प्र लेखिका संघ का वर्ष २०१८ का पुरस्कार प्राप्त) को लेखमाला के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने के अंतर्गत आज अगली कड़ी में प्रस्तुत है  “संचार क्रांति”।  इस लेखमाला की कड़ियाँ आप प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे।)  

 

Amazon Link for eBook :  सकारात्मक सपने

 

Kobo Link for eBook        : सकारात्मक सपने

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सकारात्मक सपने  # 29 ☆

☆ संचार क्रांति

 

विगत वर्षो में संपूर्ण विश्व में संचार क्रांति हुई है. हर हाथ में मोबाइल एक आवश्यकता बन गया है, सरकार ने इसकी जरूरत को समझते हुये ही मोबाइल, टैब व पर्सनल कम्प्यूटर मुफ्त बांटने की योजनाये प्रस्तुत की हैं. मल्टी मीडिया मोबाइल पर  कैमरे की सुविधा तथा किसी भी भाषा में टिप्पणी लिखकर उसे सार्वजनिक या किसी को व्यक्तिगत संदेश के रूप में भेजने की व्यवस्था के चलते मोबाइल बहुआयामी बहुउपयोगी उपकरण बन चुका है.

इन नवीनतम संचार उपकरणो के द्वारा इंटरनेट के माध्यम से लगभग नगण्य व्यय पर सोशल मीडिया के माध्यम से लोग परस्पर संपर्क में रह सकते हैं. सोशल मीडिया के अनेकानेक साफ्टवेयर विकसित हुये हैं. २०० से अधिक सोशल साइटस् प्रचलन में हैं, किन्तु लोकप्रिय साइट्स फेसबुक, ट्विटर, माई स्पेस, आरकुट, हाई फाइव, फ्लिकर, गूगल प्लस, ड्यूओ, स्कैप। लिंकेड इन  आदि ही हैं. इन  के द्वारा लोग परस्पर संवाद करते रहते हैं. व्यक्तिगत या सामाजिक विषयो पर इन साइट्स पर बड़े बड़े लेखो की जगह छोटी टिप्पणियो या फोटो के माध्यम से लोग परस्पर वैचारिक आदान प्रदान करते रहते हैं. संपादन की बंदिशें नही होती. इधर लिखो और क्लिक करते ही समूचे विश्व में कहीं भी तुरंत संदेश प्रेषित हो जाता है. युवा पीढ़ी जो इन संसाधनो से यूज टू है, बहुतायत में इनका प्रयोग कर रही है. एक ही शहर में होते हुये भी परिचितो से मिलने जाना समय साध्य होता है, किन्तु इन सोशल साइट्स के द्वारा लाइव चैट के जरिये एक दूसरे को देखते हुये सीधा संवाद कभी भी किया जा सकता है, मैसेज छोड़ा जा सकता है, जिसे पाने वाला व्यक्ति अपनी सुविधा से तब पढ़ सकता है, जब उसके पास समय हो. इस तरह संचार के इन नवीनतम संसाधनो की उपयोगिता निर्विवाद है.

फिल्म सत्याग्रह कुछ समय पूर्व प्रदर्शित हुई, जिसमें नायक ने फेस बुक के माध्यम से जन आंदोलन खड़ा करने में सफलता पाई, इसी तरह चिल्हर पार्टी नामक फिल्म में भी बच्चो ने फेसबुक के द्वारा परस्पर संवाद करके एक मकसद के लिये आंदोलन खड़ा कर दिया था. फिल्मो की कपोल कल्पना में ही नही वास्तविक जीवन में भी विगत वर्ष मिस्र की क्राति तथा हमारे देश में ही अन्ना के जन आंदोलन तथा निर्भया प्रकरण में सोशल नेटवर्किंग साइटस का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. गलत इरादो से इन साइट्स के दुरुपयोग के उदाहरण भी सामने आये है, उदाहरण के तौर पर दक्षिण भारत से उत्तर पूर्व के लोगो के सामूहिक पलायन की घटना फेसबुक के द्वारा फैलाई गई भ्राति के चलते ही हुई थी.

कारपोरेट जगत ने मल्टी मीडिया की इस ताकत को पहचाना है. ग्राहको से सहज संपर्क बनाने के लिये फेसबुक व ट्विटर जैसे सोशल पोर्टल का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. विभिन्न कंपनियो ने अपने उत्पादो के लिये फेसबुक पर पेज बनाये हैं, जिन्हें लाइक करके कोई भी उन पृष्ठो पर प्रस्तुत सामग्री देख सकता है तथा अपना फीड बैक भी दे सकता है. इन कंपनियो ने बड़े वेतन पर प्राडक्ट की जानकारी रखने वाले, उपभोक्ता मनोविज्ञान को समझने वाले तथा कम्प्यूटर विशेषज्ञ रखे हैं जो इन सोशल साइट्स के जरिये अपने ग्राहको से जुड़े रहते हैं व उनकी कठिनाईयो को हल करते हैं. तरह तरह की प्रतियोगिताओ के माध्यम से ये पेज मैनेजर अपने ग्राहको को लुभाने में लगे रहते हैं.

सरकारी संस्थानो में व्यापक रूप से इस तरह की उच्च स्तरीय पहल मोदी सरकार ने की है.  अनेक मंत्रियो व अधिकारियो ने अपने कार्य क्षेत्र में उत्साह से सोशल मीडिया के महत्व को समझते हुये इसके जन हित में उपयोग करने के प्रयास किये हैं. अनेक ऐसी परियोजनाये पुरस्कृत भी हुई हैं. फेसबुक की पारदर्शिता के कारण समस्यायें तथा निदान संबंधित अधिकारियो व उपभोक्ताओ के बीच साझा रहती हैं. फेस बुक पर प्राप्त सुझावो व समस्याओ के विश्लेषण से  क्षेत्र की समान समस्याओ की ओर सभी संबंधित अधिकारियो को सरलता से जानकारी मिल सकती है व उनका तुरंत निदान हो सकता है. फेसबुक की सदैव व सभी जगह उपलब्धता के कारण उपभोक्ता व नागरिको को सहज ही अपनी बात कहने का अधिकार मिल गया है. इस तरह सोशल मीडिया के उपयोग की अभिनव पहल से उपभोक्ता संतुष्टि का लक्ष्य कम से कम समय में ज्यादा पारदर्शिता तथा बेहतर तरीके से पाया जा सकेगा. फेसबुक के साथ ही चौबीस घंटे सुलभ टेलीफोन लाइनें एवं ईमेल के द्वारा भी  संपर्क करने की सुविधा भी शासन ने सुलभ की  है, अब गेद जनता की पाली में है. देखें कितना सार्थक होता है यह प्रयास.

 

© अनुभा श्रीवास्तव

Please share your Post !

Shares

मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ रंजना जी यांचे साहित्य # 28 – दिलदार मित्र ☆ श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे

श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आप उनकी अतिसुन्दर ज्ञानवर्धक रचनाएँ प्रत्येक सोमवार को पढ़ सकेंगे। आज  प्रस्तुत है  ईश्वर की स्तुति  स्वरुप  भजन/कविता   “दिलदार मित्र ” । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – रंजना जी यांचे साहित्य # 28 ☆ 

 ☆ दिलदार मित्र 

 

दिलदार मित्र माझा

लाख काढतो रे खोडी।

तुझ्या छेडण्याने गड्या

वाढे जीवनाची गोडी।

 

चिमणीच्या दाताची ती

अशी अवीट माधुरी ।

तिच्यापुढे फिकी होती

पंच पक्वान्नेही सारी।

 

तुझा प्रेमळ कटाक्ष

देई लढण्यास धीर।

कौतुकाच्या थापेला रे

मन आजही अधीर।

 

शब्दाविना कळे तुला

व्यथा माझिया मनाची।

हृदयीच्या बंधानाला

भाषा लागेना जनाची।

 

जीवनाच्या वाळवंटी

तुझ्या मैत्रीचा ओलावा।

लाख मोल सोडूनिया

शब्द सख्याचा तोलावा।

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

Please share your Post !

Shares

हिन्दी साहित्य ☆ डॉ. रामवल्लभ आचार्य ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र ‘

डॉ. रामवल्लभ आचार्य

ई- अभिव्यक्ति का यह एक अभिनव प्रयास है।  इस श्रंखला के माध्यम से  हम हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकारों को सादर नमन करते हैं।

हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं और जिन्होंनेअपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया तथा हमें हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं, उनके हम सदैव ऋणी रहेंगे । यदि हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपनी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी के साथ  डिजिटल एवं सोशल मीडिया पर साझा कर सकें तो  निश्चित ही ई- अभिव्यक्ति के माध्यम से चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लेने जैसा क्षण होगा। वे  हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत भी हैं। इस पीढ़ी के साहित्यकारों को डिजिटल माध्यम में ससम्मान आपसे साझा करने के लिए ई- अभिव्यक्ति कटिबद्ध है एवं यह हमारा कर्तव्य भी है। इस प्रयास में हमने कुछ समय पूर्व आचार्य भगवत दुबे जी, डॉ राजकुमार ‘सुमित्र’ जीप्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘ विदग्ध’ जी  एवं श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आलेख आपके लिए प्रस्तुत किया था जिसे आप निम्न  लिंक पर पढ़ सकते हैं : –

 

इस यज्ञ में आपका सहयोग अपेक्षित हैं। आपसे अनुरोध है कि कृपया आपके शहर के वरिष्ठतम साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हमारी एवं आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने में हमारी सहायता करें। हम यह स्तम्भ प्रत्येक रविवार को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारा प्रयास रहेगा  कि – प्रत्येक रविवार को एक ऐसे ही ख्यातिलब्ध  वरिष्ठ साहित्यकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से आपको परिचित करा सकें।

आपसे अनुरोध है कि ऐसी वरिष्ठतम पीढ़ी के अग्रज एवं मातृ-पितृतुल्य पीढ़ी के व्यक्तित्व एवम कृतित्व को सबसे साझा करने में हमें सहायता प्रदान करें।

☆ हिन्दी साहित्य – डॉ. रामवल्लभ आचार्य ☆ व्यक्तित्व एवं कृतित्व ☆

(आज ससम्मान प्रस्तुत है वरिष्ठ  हिन्दी साहित्यकार  डॉ. रामवल्लभ आचार्य  जी  के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विमर्श  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र ‘ जी  की कलम से। मैं  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘ विनम्र ‘ जी का हार्दिक आभारी हूँ ,जो उन्होंने मेरे इस आग्रह को स्वीकार किया।  विविध पृष्ठभूमि के साथ अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ रामवल्लभ आचार्य जी  हम सबके आदर्श हैं। )

(संकलनकर्ता  –  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ )

चार मार्च उन्नीस सौ तिरेपन के दिन भोपाल में जन्में डा. वल्लभ आचार्य जी के पिताजी  शहर के प्रतिष्ठित संस्कृतज्ञ,ज्योतिषी व कर्मकांडी विद्वान् थे तथा श्री राधा वल्लभ मंदिर के पुजारी एवं शासकीय शिक्षक थे।

आपने बी. एस. सी. तथा बी. ए. एम. एस.(बेचलर ऑफ आयुर्वेद विथ मॉडर्न मेडिसिन एंड सर्जरी) की उपाधि अर्जित की तथा १९७८ से  चिकित्सा व्यवसाय में  संलग्न हैं ।आप नेशनल. इन्टीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन के जिला शाखा सचिव, प्रांतीय सचिव, कोषाध्यक्ष,  राष्ट्रीय संयुक्‍त सचिव, एवं अनेक प्रांतीय व राष्ट्रीय समितियों के सदस्य, संयोजक व चेयरमेन रहे हैं। अनेक चिकित्सा शिविरों के आयोजन, धर्मार्थ चिकित्सा केन्द्रों के संचालन तथा समाज सेवा की अन्य गतिविधियों में संलग्न रहे डा. आचार्य को राज्य स्तरीय धन्वन्तरि सम्मान, डा. व्ही.  पी. शर्मा मेमोरियल गोल्ड मेडल अवार्ड तथा लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किये गये  । आप वर्ष १९९९ से पारिवारिक मासिक स्वास्थ्य पत्रिका  आरोग्य सुधा” का संपादन एवं प्रकाशन कर रहे हैं।

छात्र जीवन से ही डा. आचार्य की रुचि साहित्य और पत्रकारिता में रही। आपने राष्ट्र का अह्वान, गोरा बादल, महाकौशल तथा जागरण के संपादकीय विभागों में कार्य किया तथा आपके धर्म, आध्यात्म, विज्ञान, साहित्य एवं संस्कृति संबंधी लेखों तथा कविता, गीत, व्यंग्य, कहानी, साक्षात्कार तथा अन्य रचनाओं का प्रकाशन धर्मयुग, हिन्दुस्तान, सरिता, मुक्ता, चंपक, बाल भारती, कल्याण, नव भारत, नई दुनिया, भास्कर, जागरण सहित अनेक पत्र पत्रिकाओं में हुआ ।

आप आकाशवाणी एवं दूरदर्शन द्वारा अनुमोदित गीतकार हैं । आपके लिखे गीतों, संगीत रूपकों, नाटक-प्रहसन, टेलिफिल्म व धारावाहिकों का प्रसारण आकाशवाणी व दूरदर्शन के विभिन्न केन्द्रों, राष्ट्रीय व विदेश प्रसारण सेवा द्वारा किया गया। आपने फिल्म “अहिंसा के पुजारी” के लिये गीत तथा अनेक नाटकों व धारावाहिकों के लिए शीर्षक गीत भी लिखे । प्रसिद्ध गायकों यथा- हरि ओम शरण, अनूप जलोटा, अनुराधा पौड़वाल, उदित नारायण, रूप कुमार राठौर, कल्याण. सेन, घनश्याम वासवानी, राजेंद्र काचरू, शेवन्ती सान्याल, प्रभंजय चतुर्वेदी, प्रकाश पारनेरकर, आदि के स्वरों में आपके भक्तिगीतों के कैसेट्स व सीडीज वीनस, टी सीरीज, ई एम आई आदि कंपनियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जारी किये।  आपके भजनों को साध्वी ऋतंभरा सहित अनेक प्रवचनकारों और भजनमंडलियों द्वारा गाया जाता है। आपके देशभक्ति गीत व सरस्वती वंदना का गायन अनेक विद्यालयों में किया जाता है । राष्ट्रीय स्वतंत्रता के इतिहास पर लिखे आपके संगीत रूपक “मुक्ति का महायज्ञ” की दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति भारत भवन सहित देश के अनेक मंचों पर की जा चुकी है।

डॉ. आचार्य की प्रकाशित पुस्तकें हैं – “राष्ट्र आराधन”, “गीत श्रंगार”, “सुमिरन”, गाते गुनगुनाते”, “अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो” तथा “पांचजन्य का नाद चाहिये” (सभी गीत संकलन)। “शब्दायन” व “गीत अष्टक” (द्वितीय) सहित अनेक संकलनों में भी आपकी रचनायें प्रकाशित हुई। आपको “अभिनव शब्द शिल्पी”, ” राष्ट्रीय नटवर गीत सम्मान”, ” साहित्य श्री”, “तुलसी साहित्य सम्मान”, “जहूर बख्श बाल साहित्य सम्मान”, “चन्द्र प्रकाश जायसवाल बाल साहित्य सम्मान”, “राजेन्द्र अनुरागी बाल साहित्य सम्मान”, “विशिष्ट साधना सम्मान” एवं “भारत भाषा भूषण” सहित अन्य सम्मान प्राप्त हुए हैंसाहित्य सागर पत्रिका द्वारा आप पर विशेषांक का प्रकाशन किया गयाआप भोपाल की प्रथम साहित्यिक संस्था “कला मंदिर” के अध्यक्ष, अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन के जिलाध्यक्ष, प्रांतीय महामंत्री एवं राष्ट्रीय सचिव के दायित्व का निर्वाह कर चुके हैं तथा सम्प्रति मध्य प्रदेश लेखक संघ के प्रादेशिक अध्यक्ष हैं

 

संकलन –  श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

Please share your Post !

Shares
image_print