श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दैवासुर संपद्विभाग  योग

(आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन)

असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्‌।

अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्‌।।8।।

जग का कोई न अधीश्वर कहीं न कोई आधार

भोग मात्र है सुख सही करते यही विचार ।।8।।

 

भावार्थ :  वे आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य कहा करते हैं कि जगत्‌ आश्रयरहित, सर्वथा असत्य और बिना ईश्वर के, अपने-आप केवल स्त्री-पुरुष के संयोग से उत्पन्न है, अतएव केवल काम ही इसका कारण है। इसके सिवा और क्या है?।।8।।

 

They say: “This universe is without truth, without a (moral) basis, without a God, brought about by mutual union, with lust for its cause; what else?”।।8।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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