श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
(ज्ञाननिष्ठा का विषय )
सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे।
समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा॥
सिद्धि प्राप्त कर व्यक्ति ज्यों , करता ब्रह्म की प्राप्ति
सुन यह सच्चा ज्ञान औ”, यह ही सच्ची रीति ।।50।।
भावार्थ : जो कि ज्ञान योग की परानिष्ठा है, उस नैष्कर्म्य सिद्धि को जिस प्रकार से प्राप्त होकर मनुष्य ब्रह्म को प्राप्त होता है, उस प्रकार को हे कुन्तीपुत्र! तू संक्षेप में ही मुझसे समझ॥50॥
Learn from Me in brief, O Arjuna, how he who has attained perfection reaches Brahman, that supreme state of knowledge.
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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