श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय 18
( भक्ति सहित कर्मयोग का विषय )
मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्वमहाङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥
मुझमें हो ध्यानस्थ तो , होगा संकट पार
यदि न सुनेगा तो सहज, संभव शीघ्र विनाश।।58।।
भावार्थ : उपर्युक्त प्रकार से मुझमें चित्तवाला होकर तू मेरी कृपा से समस्त संकटों को अनायास ही पार कर जाएगा और यदि अहंकार के कारण मेरे वचनों को न सुनेगा तो नष्ट हो जाएगा अर्थात परमार्थ से भ्रष्ट हो जाएगा॥58॥
Fixing thy mind on Me, thou shalt by My Grace overcome all obstacles; but if from egoism thou wilt not hear Me, thou shalt perish.
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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