श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय १७
(आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद)
विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्।
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते ।।13।।
मंत्रहीन, दक्षिणा रहित, श्रद्धा रहित जो यज्ञ
उसे तामसी मानते सभी विज्ञ, शास्त्रज्ञ ।।13।।
भावार्थ : शास्त्रविधि से हीन, अन्नदान से रहित, बिना मन्त्रों के, बिना दक्षिणा के और बिना श्रद्धा के किए जाने वाले यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं ।।13।।
They declare that sacrifice to be Tamasic which is contrary to the ordinances of the scriptures, in which no food is distributed, which is devoid of Mantras and gifts, and which is devoid of faith. ।।13।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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