श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
अध्याय १७
(आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद)
(ॐ तत्सत्के प्रयोग की व्याख्या)
अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्।
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह।।28।।
श्रद्धा रहित हवन, तप, दान, आदि जो कार्य
‘असत्‘ हैं , जो परलोक में कहीं नही स्वीकार्य।।28।।
भावार्थ : हे अर्जुन! बिना श्रद्धा के किया हुआ हवन, दिया हुआ दान एवं तपा हुआ तप और जो कुछ भी किया हुआ शुभ कर्म है- वह समस्त ‘असत्’- इस प्रकार कहा जाता है, इसलिए वह न तो इस लोक में लाभदायक है और न मरने के बाद ही।।28।।
Whatever is sacrificed, given or performed, and whatever austerity is practiced without faith, it is called Asat, O Arjuna! It is naught here or hereafter (after death).।।28।।
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुनसंवादे श्रद्धात्रयविभागयोगो नाम सप्तदशोऽध्याय : ॥17॥
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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