श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अध्याय 18  

(सन्यास   योग)

अर्जुन उवाच

सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्‌ ।

त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ।।1।।

अर्जुन ने पूछा-

महाबाहु श्री कृष्ण! मैं उत्सुक हॅू भगवान

‘त्याग‘ और सन्यास का मुझे दीजिये ज्ञान ।।1।।

 

भावार्थ :  अर्जुन बोले- हे महाबाहो! हे अन्तर्यामिन्‌! हे वासुदेव! मैं संन्यास और त्याग के तत्व को पृथक्‌-पृथक्‌ जानना चाहता हूँ।।1।।

I desire to know severally, O mighty-armed, the essence or truth of renunciation, O Hrishikesa, as also of abandonment, O slayer of Kesi!।।1।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected] मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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