श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
दैवासुर संपद्विभाग योग
(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्।।4।।
असुरो की संपत्ति है, दम्भ, दर्प, अभिमान
दुर्गुण, क्रोध, निठुर वचन और बडा अज्ञान ।।4।।
भावार्थ : हे पार्थ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं।।4।।
Hypocrisy, arrogance, self-conceit, harshness and also anger and ignorance, belong to one who is born in a demoniacal state, O Arjuna! ।।4।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८