श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
त्रयोदश अध्याय
(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च ।
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम् ।।8।।
इन्द्रियों से वैराग्य हो, अहंकार से दूर
जन्म-मृत्यु, जरा, व्याधि,दुख द्वेष खोज भरपूर ।।8।।
भावार्थ : इस लोक और परलोक के सम्पूर्ण भोगों में आसक्ति का अभाव और अहंकार का भी अभाव, जन्म, मृत्यु, जरा और रोग आदि में दुःख और दोषों का बार-बार विचार करना।।8।।
Indifference to the objects of the senses, also absence of egoism, perception of (or reflection on) the evil in birth, death, old age, sickness and pain,।।8।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर