श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
चतुर्दश अध्याय
गुणत्रय विभाग योग
(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)
अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च ।
तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन ।।13।।
उदासीनता, अप्रवृत्ति मोह व बढा प्रमाद
तमोगुण की ही वृद्धि से बढ तो है पार्थ।।13।।
भावार्थ : हे अर्जुन! तमोगुण के बढ़ने पर अन्तःकरण और इंन्द्रियों में अप्रकाश, कर्तव्य-कर्मों में अप्रवृत्ति और प्रमाद अर्थात व्यर्थ चेष्टा और निद्रादि अन्तःकरण की मोहिनी वृत्तियाँ – ये सब ही उत्पन्न होते हैं।।13।।
Darkness, inertness, heedlessness and delusion-these arise when Tamas is predominant, O Arjuna!
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
ज्ञानवर्धक