श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )
नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णंव्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् ।
दृष्टवा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ।। 24 ।।
हे नभ को छूते हुये प्रभु ! व्यापक ज्यों काल
जलते फैले मुख सहित दीपित नेत्र विशाल
विविध रंग औ” रूप लख मन भारी भयभीत
धैर्य – शांति सब खो गई जीवन के विपरीत ।। 24 ।।
भावार्थ : क्योंकि हे विष्णो! आकाश को स्पर्श करने वाले, दैदीप्यमान, अनेक वर्णों से युक्त तथा फैलाए हुए मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत अन्तःकरण वाला मैं धीरज और शान्ति नहीं पाता हूँ।। 24 ।।
On seeing thee (the Cosmic Form) touching the sky, shining in many colours, with mouths wide open, with large, fiery eyes, I am terrified at heart and find neither courage nor peace, O Vishnu!।। 24 ।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर