श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
प्रथम अध्याय
अर्जुनविषादयोग
( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
( दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन )
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः ।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ।।17।।
काशिराज धनुवीर ने औ” शिखण्डी रथवान
राजा विराट, धृष्टद्युम्न व सात्यकि वीर महान।।17।।
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते ।
सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।18।।
द्रुपद द्रौपदी पुत्र सब,महाबाहु अभिमन्यु
सब राजाओं ने किया शंखनाद निज भिन्न।।18।।
भावार्थ : श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि, राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु- इन सभी ने, हे राजन्! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाए॥17-18॥
The king of Kasi, an excellent archer, Sikhandi, the mighty car-warrior, Dhristadyumna and Virata and Satyaki, the unconquered ।।17।।
Drupada and the sons of Draupadi, O Lord of the Earth, and the son of Subhadra, the mighty-armed, all blew their respective conches! ।।18।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)