श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्थ अध्याय

( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )

 

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्‌ ।

प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ।।6।।

 

मैं अजन्म,अविनाशी आत्मा,सारे जग का ईश्वर हूँ

आत्म प्रकृति स्वाधीन शक्ति से ,अपना जन्म प्रकटता हूँ।।6।।

 

भावार्थ :  मैं अजन्मा और अविनाशीस्वरूप होते हुए भी तथा समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ।।6।।

 

Though I am unborn and of imperishable nature, and though I am the Lord of all beings, yet, ruling over My own Nature, I am born by My own Maya. ।।6।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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