श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
प्रथम अध्याय
अर्जुनविषादयोग
( दोनों सेनाओं के प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
( अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग )
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ।।20।।
तब कुरू सेना को सजी और व्यवस्थित देख
उद्यत लड़ने पार्थ भी हुआ धनुष्य सहेज।।20।।
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
अर्जुन उवाचः
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।।21।।
तभी कहा श्री कृष्ण से अर्जुन ने यह वाक्य
अर्जुन ने कहा-
अच्युत,रथ को ले चलो सेना मध्य तत्काल।।21।।
भावार्थ : हे राजन्! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-संबंधियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा- हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए॥20-21॥
Then, seeing all the people of Dhritarashtra’s party standing arrayed and the dischargeof weapons about to begin, Arjuna, the son of Pandu, whose ensign was that of a monkey, took up his bow and said the following to Krishna, O Lord of the Earth! place my chariot, O Krishna,In the middle of the two armies. ॥20-21॥
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)