श्रीमद् भगवत गीता
पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
पंचम अध्याय
(सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय)
( सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा )
कायेन मनसा बुद्धया केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति संग त्यक्त्वात्मशुद्धये ।।11।।
तन से,मन से,बुद्धि से,या इंद्रिय से मात्र
योगी करते कर्म सब लिप्ति त्याग शुद्धार्थ।।11।।
भावार्थ : कर्मयोगी ममत्वबुद्धिरहित केवल इन्द्रिय, मन, बुद्धि और शरीर द्वारा भी आसक्ति को त्याग कर अन्तःकरण की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं।।11।।
Yogis, having abandoned attachment, perform actions only by the body, mind, intellect and also by the senses, for the purification of the self. ।।11।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर
मो ७०००३७५७९८
(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)