श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

अष्टम अध्याय

(ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )

( भक्ति योग का विषय )

 

सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च ।

मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्‌ ।।12।।

ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्‌।

यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्‌ ।।13।।

 

संयम से सब द्वार रूंध मन से हदय निरोध

प्राणों को धर शीर्ष में साधक साधे योग।।12।।

ओंकार का नाद कर मुझे जो करते याद

जो तजता है देह वह पाता पद अविवाद।।13।।

            

भावार्थ :  सब इंद्रियों के द्वारों को रोककर तथा मन को हृद्देश में स्थिर करके, फिर उस जीते हुए मन द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, परमात्म संबंधी योगधारणा में स्थित होकर जो पुरुष ‘ॐ’ इस एक अक्षर रूप ब्रह्म को उच्चारण करता हुआ और उसके अर्थस्वरूप मुझ निर्गुण ब्रह्म का चिंतन करता हुआ शरीर को त्यागकर जाता है, वह पुरुष परम गति को प्राप्त होता है ।।12 – 13।।

 

Having closed all the gates, confined the mind in the heart and fixed the life-breath in the head, engaged in the practice of concentration,।।12।।

Uttering the  monosyllable  Om-the  Brahman-remembering  Me  always,  he  who departs thus, leaving the body, attains to the supreme goal.।।13।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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