श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
नवम अध्याय
( जगत की उत्पत्ति का विषय )
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् ।।8।।
अपने प्राकृत नियम वश फिर फिर रचता सृष्टि
सहज प्रकृति आधीन है यह संम्पूर्ण समष्टि।।8।।
भावार्थ : अपनी प्रकृति को अंगीकार करके स्वभाव के बल से परतंत्र हुए इस संपूर्ण भूतसमुदाय को बार-बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ।।8।।
Animating My Nature, I again and again send forth all this multitude of beings, helpless by the force of Nature.।।8।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर