श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

चतुर्दश अध्याय

गुणत्रय विभाग योग

(भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण)

 

मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः ।

सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः सा उच्यते।।25।।

मानापमान औं मिच-रिपु जिसको सदा समान

कार्य करे निष्काम तो त्रिगुणातीत उसे जान।।25।।

 

भावार्थ :  जो मान और अपमान में सम है, मित्र और वैरी के पक्ष में भी सम है एवं सम्पूर्ण आरम्भों में कर्तापन के अभिमान से रहित है, वह पुरुष गुणातीत कहा जाता है।।25।।

 

The same  in  honour  and  dishonour,  the  same  to  friend  and  foe,  abandoning  all undertakings-he is said to have crossed the qualities.।।25।।

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १, शिला कुंज, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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