श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
(संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन )
अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम् ।
अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम् ।। 10।।
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ।
सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम् ।। 11।।
अद्भुत दर्शन , मुख कई ,अनुपम नेत्र अनेक ,
अलंकार युत दिव्य कई , शस्त्र एक से एक ।। 10।।
दिव्य पुष्प मालायें थी , दिव्य गंध का लेप
अचरजकारी बहुमुखी , किन्तु देह थी एक ।। 11।।
भावार्थ : अनेक मुख और नेत्रों से युक्त, अनेक अद्भुत दर्शनों वाले, बहुत से दिव्य भूषणों से युक्त और बहुत से दिव्य शस्त्रों को धारण किए हुए और दिव्य गंध का सारे शरीर में लेप किए हुए, सब प्रकार के आश्चर्यों से युक्त, सीमारहित और सब ओर मुख किए हुए विराट्स्वरूप परमदेव परमेश्वर को अर्जुन ने देखा।। 10 – 11 ।।
With numerous mouths and eyes, with numerous wonderful sights, with numerous divine ornaments, with numerous divine weapons uplifted (such a form He showed).।। 10।।
Wearing divine garlands and apparel, anointed with divine unguents, the all-wonderful, resplendent (Being), endless, with faces on all sides.।। 11।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर