ई-अभिव्यक्ति: संवाद- 40                

 

☆ ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक ☆

 

सम्माननीय लेखक एवं पाठक गण सादर अभिवादन

 

हम अत्यंत कृतज्ञ है हमारे सम्माननीय गांधीवादी चिन्तकों, समाजसेवियों एवं सभी सम्माननीय वरिष्ठ एवं समकालीन लेखकों के जिन्होंने इतने कम समय में हमारे आग्रह को स्वीकार किया.  इतनी उत्कृष्ट रचनाएँ सीमित समय में उत्कृष्टता को बनाये रखते हुए एक अंक में प्रकाशित करने के लिए असमर्थ पा रहे थे। इसलिए ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक के स्तर और गुणवत्ता को बनाए रखने की दृष्टि से यह निर्णय लिया गया कि ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक को दो अंकों में प्रकाशित किया जाए और साप्ताहिक स्तंभों को दो दिनों के लिए स्थगित किया जाए।

हमें यह बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता है कि हमारे सम्माननीय लेखकों/पाठकों ने इस प्रयास को हृदय से स्वीकार किया एवं हमें अपना सहयोग प्रदान किया।

आज के दिन महात्मा गांधी जी एवं लाल बहादुर शास्त्री जी ने जन्म लिया था। साथ ही यह वर्ष बा और बापू कि 150वीं जयंती का भी अवसर है।

हम ई-अभिव्यक्ति परिवार की ओर से उन्हें सादर नमन करते हैं।

इस विशेषांक के प्रकाशन को हमने महज 4 दिनों के अथक प्रयास से सफलता पूर्वक प्रकाशित किया है। इस विशेषांक के प्रकाशन के लिए हम प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक एवं समाजसेवी श्री मनोज मीता जी, प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक  श्री राकेश कुमार पालीवाल जी, महानिदेशक (आयकर) हैदराबाद, व्यंग्य शिल्पी एवं संपादक श्री प्रेम जनमेजय, डॉ सुरेश कांत, गांधीवादी चिनक श्री अरुण डनायक, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कुंदन सिंह परिहार,  डॉ मुक्ता (राष्ट्रपति पुरस्कार से पुरस्कृत) एवं पूर्व निदेशक हरियाणा साहित्य अकादमी तथा समस्त सम्माननीय लेखकगणों के हम हृदय से आभारी हैं। साथ ही सम्माननीय लेखक जो हाल ही में ई-अभिव्यक्ति से जुड़े हैं उनका स्वागत करते हैं.

इस सफल प्रयास के लिए अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी के समर्पित सहयोग के बिना इस विशेषांक के प्रकाशन की कल्पना ही नहीं कर सकता।

इस अंक में हमने पूर्ण प्रयास किया है कि- हम स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति का सकारात्मक प्रयोग करें। व्यंग्य विधा में साहित्यिक रचना की प्रक्रिया में सकारात्मकता एवं नकारात्मकता के मध्य एक महीन धागे जैसा अंतर ही रह जाता है। हम अपेक्षा करते हैं कि आप साहित्य को सदैव सकरात्मक दृष्टिकोण से ही लेंगे।

इस विशेषांक के सम्पादन की प्रक्रिया से मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। इस प्रक्रिया और आत्ममंथन से जिस कविता का सृजन हुआ, वह आपसे साझा करना चाहता हूँ।

 

बापू!

तुम पता नहीं कैसे

आ जाते हो

व्यंग्यकारों के स्वप्नों में?

किन्तु,

मत आना बापू

कभी भी मेरे स्वप्नों में।

 

न तो मैं

तुम पर कोई फिल्म बनाकर

सफल बनना चाहता हूँ

और

न ही करना चाहता हूँ

अपने विचार कलमबद्ध

तुम्हारे कंधों का सहारा लेकर।

बेशक,

मेरे कंधे उतने मजबूत न हो

गांधी के कंधों की तरह।

 

क्यों कोई नहीं चाहता

आत्मसात करना

गांधी दर्शन?

क्यों

कोई नहीं ढूँढता लोगों में गांधी?

क्यों लोग ढूँढना चाहते हैं

गांधी में व्यंग्य

क्यों नहीं ढूंढते

गांधी में गांधी

गांधी में गांधी-दर्शन ?

क्यों

लोगों को दिखता हैं

गांधी में

सफलता का सूत्र?

 

मैं नहीं बन सकता गांधी

और

न ही बनना चाहता हूँ गांधी

क्योंकि

एक गांधी का जन्म

एक बार ही होता है

एक सदी में।

हाँ,

कर सकता हूँ

गांधी से सीखने का प्रयास

किन्तु,

नहीं कर सकता

गांधी पर परिहास।

 

आज बस इतना ही।

 

हेमन्त बावनकर

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

3 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Mukta Mukta

बहुत सुंदर प्रस्तुति व मननशील कविता।

समीक्षा तैलंग

आपके इस प्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई। उत्कृष्ट विशेषांक, प्रतिष्ठित साहित्यकार। एक से बढ़कर एक रचनाएं। आपकी मेहनत को नमन। ई-अभिव्यक्ति को ढेरों शुभकामनाएं। इसी गति में बढ़ती चलो।