ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–45

☆ ई-अभिव्यक्ति को अपार स्नेह / प्रतिसाद के लिए आभार  रिश्तों / संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित

 प्रिय मित्रों,

आज के संवाद के माध्यम से मुझे पुनः आपसे विमर्श का अवसर प्राप्त हुआ है।

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक ई-अभिव्यक्ति  वेबसाइट को मिला 1,51,900+ विजिटर्स (सम्माननीय एवं प्रबुद्ध लेखकगण/पाठकगण) का प्रतिसाद’। पुनः आपके साथ संवाद करना निश्चित ही मेरे लिए गौरव के क्षण हैं।  इस अकल्पनीय प्रतिसाद एवं इन क्षणों के आप ही भागीदार हैं। यदि आप सब का सहयोग नहीं मिलता तो मैं इस मंच पर इतनी उत्कृष्ट रचनाएँ देने में  स्वयं को असमर्थ पाता। मैं नतमस्तक हूँ ,आपके अपार स्नेह के लिए।  आप सबका हृदयतल से आभार। 

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ये रिश्ते भी बड़े अजीब होते हैं, जो हमें पृथ्वी के किसी भी कोने में  बसे जाने अनजाने लोगों से आपस में अदृश्य सूत्रों से जोड़ देते हैं। अब मेरा और आपका ही रिश्ता ले लीजिये। आप में से कई लोगों से न तो मैं व्यक्तिगत रूप से मिला हूँ और न ही आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिले हैं किन्तु, स्नेह का एक बंधन है जो हमें बांधे रखता है। आप में से कई मेरे अनुज/अनुजा, अग्रज/अग्रजा, मित्र, परम आदरणीय /आदरणीया, गुरुवर और मातृ पितृ  सदृश्य तक बन गए हैं। ये अदृश्य सम्बन्ध मुझमें ऊर्जा का संचार करते हैं। मेरा सदैव प्रयास रहता है और ईश्वर से कामना करता हूँ  कि मैं अपनी इस सम्बन्ध को आजीवन निभाऊं। और आपसे भी अपेक्षा रखता हूँ कि मेरे प्रति यह स्नेह ऐसा ही बना रहेगा।

मेरा और आपका सम्बन्ध मात्र रचनाओं के आदान प्रदान तक ही सीमित नहीं है, इस सम्बन्ध में हमारी संवेदनाएं भी जुडी हुई हैं। संभवतः संवेदनहीन सम्बन्ध कभी सार्थक नहीं होते। हाल ही में मैंने कर्नल अखिल साह जी एवं डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘ गुणशेखर’ जी द्वारा रचित दो रचनाएँ ‘माँ’ शीर्षक से प्रकाशित की थी, जो अत्यंत संवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी हैं और उन्हें पाठकों का भरपूर स्नेह / प्रतिसाद मिला। मेरे पास ऐसे ही “पिता” से सम्बंधित रचनाएँ भी प्राप्त हुई हैं जो शीघ्र प्रकाश्य हैं। इन रचनाओं ने ह्रदय को झकझोर दिया। इसके बाद संबंधों पर इतनी सुन्दर रचनाएँ आने लगीं जिसकी मैंने कभी कल्पना ही नहीं की थी। श्री विवेक चतुर्वेदी जी की नवीन पुस्तक “स्त्रियां घर लौटती हैं’  पर विभिन्न लेखक लेखिकाओं की समीक्षाएं और टिप्पणियां सम्पादित करते समय पढ़ कर विस्मित हूँ । यह पुस्तक हिंदी साहित्य के क्षितिज पर नए आयाम गढ़ रही है। आज प्रकाशित श्री संजय भारद्वाज जी की मानवीय संबंधों पर आधारित समसामयिक रचना “आमरण” हमें विचार करने हेतु प्रेरित करती है।

मैंने ऊपर जिन संबंधों की चर्चा की है उनमें रक्त संबंधों के अतिरिक्त भी ऐसे कई सम्बन्ध हैं जिन पर अति सुन्दर साहित्य रचा गया है। मेरा मानना है कि कोई भी साहित्य जो आज तक रचा गया है उसका आधार कोई सम्बन्ध या रिश्ता न हो ऐसा शायद ही संभव हो । कई सम्बन्ध ऐसे होते हैं जिनके बारे में हम भावनात्मक रूप से लिख देते हैं किन्तु वे सम्बन्ध परिपेक्ष्य में रहते हैं ।

रिश्तों / संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित

ई-अभिव्यक्ति साहित्य में सकारात्मक नए प्रयोग करने के लिए कटिबद्ध है। मेरे उपरोक्त विचारों से आप निश्चित रूप से सहमत होंगे। इस पूरी प्रक्रिया में मन में एक विचार आया कि क्यों न आपसे रिश्तों या संबंधों पर आधारित रचनाएँ आमंत्रित की जाएँ और अपने प्रबुद्ध पाठकों से साझा की जाएँ ।

वैसे तो पारिवारिक रिश्तों की एक लम्बी फेहरिश्त है जिनमें प्रपौत्र- प्रपौत्री  से लेकर परनाना-परनानी, परदादा-परदादी तक जिनसे हम हर दिन रूबरू होते रहते हैं । वैसे तो संबंधों की लम्बी फेहरिश्त असीमित है।  कुछ सम्बन्ध और रिश्ते जो इस समय मेरे मस्तिष्क में आ रहे हैं आपसे उदाहरणार्थ साझा करने का प्रयास करता हूँ। इससे परे भी आपके मस्तिष्क में कई सम्बन्धो होंगे जो हम साझा करना चाहेंगे ।

पति पत्नी, प्रेमी प्रेमिका, मित्र, पड़ौसी  तो सामान्य हैं ही। आज जब इंसानियत तार तार हो रही है ऐसे में  मानवीय सम्बन्ध, हमारा राष्ट्र से सम्बन्ध, प्रकृति एवं पर्यावरण से सम्बन्ध, पालतू एवं अन्य जानवरों से सम्बन्ध,  थर्ड जेंडर जो कभी कभार हमसे रूबरू होते हैं उनसे सम्बन्ध,  समाज में बमुश्किल स्वीकार्य रिश्ते (लिव-इन रिलेशनशिप, समलैंगिक) और ऐसे बहुत सारे सम्बन्ध और रिश्ते जो आपके विचारों में आ रहे हैं और मेरे विचारों में नहीं आ पा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह कि कोई भी और कैसा भी सम्बन्ध या रिश्ता।

तो फिर देर किस बात की कलम / कम्प्यूटर कीबोर्ड पर शुरू हो जाइये और भेज दीजिये किसी भी संबंध / रिश्ते पर आधारित अपनी हिंदी/मराठी /अंग्रेजी में रचना  (कविता /लघुकथा /आलेख) अधिकतम 500-750 शब्दों में । ई-अभिव्यक्ति को किसी भी रूप में प्रकाशित करने की स्वतंत्रता  की आपकी अनुमति के साथ रचना पर कॉपीराइट आपका। हाँ रचना प्रेषित करते समय इस मंच के मूलमंत्र जो डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी  के आशीर्वचन में व्याप्त है का अवश्य ध्यान रखें। 

सन्दर्भ : अभिव्यक्ति 

संकेतों के सेतु पर, साधे काम तुरन्त ।
दीर्घवायी हो जयी हो, कर्मठ प्रिय हेमन्त ।।

काम तुम्हारा कठिन है, बहुत कठिन अभिव्यक्ति।
बंद तिजोरी सा यहाँ,  दिखता है हर व्यक्ति ।।

मनोवृत्ति हो निर्मला, प्रकट निर्मल भाव।
यदि शब्दों का असंयम, हो विपरीत प्रभाव।।

सजग नागरिक की तरह, जाहिर  हो अभिव्यक्ति।
सर्वोपरि है देशहित, बड़ा न कोई व्यक्ति ।।

–  डॉ राजकुमार “सुमित्र”

आपसे अनुरोध है कि हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार जो आज भी हमारे बीच उपस्थित हैं और जिन्होंने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को यदि हम अपनी पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ी से साझा करें तो उन्हें निश्चित ही ई- अभिव्यक्ति के माध्यम से चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने जैसा क्षण होगा। इस प्रयास में हमने कई वरिष्ठतम  साहित्यिक विभूतियों से चर्चा की है एवं व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर  ससम्मान आलेख समय समय पर  प्रकाशित कर रहे हैं। आपसे अनुरोध है कि ऐसी वरिष्ठतम  पीढ़ी के मातृ-पितृतुल्य पीढ़ी के कार्यों को सबसे साझा करने में हमें सहायता प्रदान करें। 

आज बस इतना ही।

हेमन्त बावनकर

7 मार्च 2020

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