डाॅ. निशिकांत श्रोत्री
इंद्रधनुष्य
☆ ॥श्री विंध्येश्वरी स्तोत्रम्॥ ☆ डाॅ. निशिकांत श्रोत्री ☆
मूळ संस्कृत स्तोत्र व त्याचा मराठी भावानुवाद :
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निशुम्भशुम्भमर्दिनीं प्रचण्डमुण्डखण्डिनीम्।
वने रणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।१॥
निशुम्भशुम्भ हारिणी मुंडचंड नाशिनी
पराक्रमी रणी वनी भजितो विंध्यवासिनी ॥१॥
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त्रिशूलरत्नधारिणीं धराविघातहारिणीम्।
गृहे गृहे निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम।।२।।
रत्नत्रिशूल धारिणी अवनी संकट हारिणी
घराघरात वासिनी भजितो विंध्यवासिनी ॥२॥
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दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥३॥
दीन दुःखहारिणी साधूसुखकारिणी
विरहशोकनिवारिणी भजितो विंध्यवासिनी ॥३॥
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लसत्सुलोलचनां लतां सदावरप्रदाम्।
कपालशूलधारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।४।।
चंचलसुनेत्र सुकुमारी सदैव शुभवरदायिनी
कपालशूल धारिणी भजितो विंध्यवासिनी ॥४॥
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करे मुदा गदाधरां शिवां शिवप्रदायिनीम्।
वरावराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।५।।
गदाहस्त शोभिणी सर्वमंगल दायिनी
सर्वरूप धारिणी भजितो विंध्यवासिनी ॥५॥
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ऋषीन्द्रजामिनप्रदां त्रिधास्यरूपधारिणिम्।
जले स्थले निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।६।।
ऋषीश्रेष्ठ कन्यका त्रिस्वरूपधारिणी
भूजले निवासिनी भजितो विंध्यवासिनी ॥६॥
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विशिष्टसृष्टिकारिणीं विशालरूपधारिणीम्।
महोदरां विशालिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।७।।
विशेष सृष्टी निर्माती प्रचंड रूपधारिणी
विशाल उदर धारिणी भजितो विंध्यवासिनी ॥७॥
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प्रन्दरादिसेवितां मुरादिवंशखण्डिनीम्।
विशुद्धबुद्धिकारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।८।।
इंद्रादि सुर सेविती मुरादि दैत्य विनाशिनी
सुबुद्ध बुद्धीदायिनी भजितो विंध्यवासिनी ॥८॥
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॥ इति श्रीविन्ध्येश्वरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
॥ इति निशिकान्त भावानुवादित श्री विंध्येश्वरीस्तोत्र संपूर्ण ॥
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© डॉ. निशिकान्त श्रोत्री
९८९०११७७५४
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈