श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे

(वरिष्ठ  मराठी साहित्यकार श्रीमति उर्मिला उद्धवराव इंगळे जी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से संबंध रखने के कारण आपके साहित्य में धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्कारों की झलक देखने को मिलती है. इसके अतिरिक्त  ग्राम्य परिवेश में रहते हुए पर्यावरण  उनका एक महत्वपूर्ण अभिरुचि का विषय है। आज प्रस्तुत है श्रीमती उर्मिला जी की वैशाख मास  मनाये जाने वाले पर्वों से लेकर पर्यावरण तक का विमर्श करती हुई  एक कविता  “वैशाखातल्या झळा”उनकी मनोभावनाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय है।  ऐसे सामाजिक / धार्मिक /पारिवारिक साहित्य की रचना करने वाली श्रीमती उर्मिला जी की लेखनी को सादर नमन। )

☆ केल्याने होतं आहे रे # 33 ☆

☆ वैशाखातल्या झळा ☆ 

काव्यप्रकार:षडाक्षरी

विषय: वैशाख वणवा

 

अक्षय तृतीया

मुहुर्ताचा सण

आंब्यांचा नैवेद्य

देवाजीचं देण !!१!!

 

वैशाख वणवा

उसळली आग

गेली करपून

द्राक्षांची ती बाग !!२!!

 

बुद्ध पूर्णिमेला

पूजा चैत्यभूमी

बाबासाहेबांची

हीच कर्मभूमी !!३!!

 

वैशाख वणवा

उष्म्याचा कहर

वसंत ऋतूत

फुलांना बहर !!४!!

 

वैशाख वणवा

अंगाची हो लाही

उन्हामुळं सारी

करपली मही !!५!!

 

तप्त झाली हवा

तापली ती धरा

आता आम्हा वृक्ष

देतील सहारा !!६!!

 

त्याच्याच साठीहो

वृक्ष तुम्ही लावा

देखभाल करा

झाडे ती जगवा !!७!!

 

©️®️ उर्मिला इंगळे

सातारा, महाराष्ट्र.

दिनांक.२-५-२०

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments