आज प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की हिंदी कविता “डर” का मराठी की वरिष्ठ साहित्यकार सुश्री आसावरी काकडे जी द्वारा मराठी अनुवाद।)
श्री संजय भारद्वाज जी की मूल रचना
संजय दृष्टि – डर
मनुष्य जाति में
होता है
एकल प्रसव,
कभी-कभार जुड़वाँ,
और दुर्लभ से दुर्लभतम
तीन या चार,
डरता हूँ,
ये निरंतर
प्रसूत होती लेखनी
और जन्मती रचनाएँ,
मुझे, जाति बहिष्कृत
न करा दें….!
© संजय भारद्वाज
(शुक्र. 4 दिस. 2015 रात्रि 9:56 बजे)
मोबाइल– 9890122603, संजयउवाच@डाटामेल.भारत, [email protected]
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सुश्री आसावरी काकडे जी द्वारा मराठी भावानुवाद
मनुष्य प्रजातीत
एक प्रसूती एक जन्म…
कधी कधी जुळं जन्माला येतं
तीन-चार तर दुर्लभच …
भीती वाटतेय
निरंतर प्रसूत होणारी ही लेखणी,
तिचे अविरत सृजन
मला जातीबाहेर तर नाही करणार…?
© सुश्री आसावरी काकडे
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अनूदित मराठी रचनार्थ अभिनंदन 🙏