श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे
(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं। इस कविता में धरती माता, स्त्री और पर्यावरण के संरक्षण के लिए एक अद्भुत संदेश है । अब धरती माँ ही हमसे दान मांग रही हैं। ऐसे विषय पर इस भावप्रवण रचना के लिए श्रीमती रंजना जी आपको एवं आपकी लेखनी को नमन।)
दान मागते धरणी
वृक्षवल्ली या फुलल्या सुंदर स्वर्ग भासते अवनी।
लाड पुरविण्या कुशीत घेई धरा नसे ही जननी।
अविरत शमवी क्षुधा तृषाही भरण पोषणा सजली।
अमृत रसमय फळे चाखण्या नित्य देतसे वदनी।
सोनेरी तव किरण भास्करा शेत शिवारी डुलती।
पहाट वारा मना भुलवितो शीतल छाया सदनी।
आनंदाची करण्या उधळण चंद्र चांदणे जमती।
नयन रंम्य त्या सोनकिड्यांनी नयन मनोहर रजनी ।
निसर्गास या नकोस लावू नजर मानवा जहरी।
जीव चक्र हे अखंड फिरते वसुंधरेच्या भवनी ।
भू जल वायू टाळ प्रदूषण दान मागते धरणी।
स्वच्छंदाने खुशाल घेई उंच भरारी गगनी।
धरणीचे दान आवडले