कवी राज शास्त्री
(कवी राज शास्त्री जी (महंत कवी मुकुंदराज शास्त्री जी) का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। आप मराठी साहित्य की आलेख/निबंध एवं कविता विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। मराठी साहित्य, संस्कृत शास्त्री एवं वास्तुशास्त्र में विधिवत शिक्षण प्राप्त करने के उपरांत आप महानुभाव पंथ से विधिवत सन्यास ग्रहण कर आध्यात्मिक एवं समाज सेवा में समर्पित हैं। विगत दिनों आपका मराठी काव्य संग्रह “हे शब्द अंतरीचे” प्रकाशित हुआ है। ई-अभिव्यक्ति इसी शीर्षक से आपकी रचनाओं का साप्ताहिक स्तम्भ आज से प्रारम्भ कर रहा है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “ किमया…”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – हे शब्द अंतरीचे # 9 ☆
☆ किमया… ☆
कोरड्या नदीला
अपेक्षा पावसाची
ओरडणाऱ्या पावश्याला
आशा एक पर्जन्य थेंबाची..
स्वाती नक्षत्र पाऊस
थेंब अगणित पडती
तरी एकाच थेंबाचे
शुभ्र वेधक मोती बनती..
गाईच्या कासेला
गोचीड बिलगती
सोडून पय अमृत
रक्त प्राशन करिती..
पडला साधा पाऊस
ओढ्यास पूर येई
उन्हाळ्यात महानदी
रखरखीत वाळवंट होई..
कुणास मिळे पुरणपोळी
कुणास चटणी भाकर
कुणी उपाशी तसाच
असाध्य दुःखाचा डोंगर..
गरीब गरीब राहिले
श्रीमंत, पैश्यात लोळले
नाहीच काही जवळ धन
कुणी मरण समीप केले..
खूप विचित्र गड्या
निसर्गाची माया
आलोत जन्मास भूवरी
साधू काही छान किमया..
© कवी म.मुकुंदराज शास्त्री उपाख्य कवी राज शास्त्री.
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