( ३०/०४/ १९०९ – ११/१०/ १९६८)
कवितेचा उत्सव
☆ हर देश में तू….. ☆ राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ☆
हर देश में तू , हर भेष में तू , तेरे नाम अनेक, तू एक ही है ।
तेरी रंगभूमी यह विश्वम्भरा , सब खेल में , मेल में तू ही तो है ।।
सागर से उठा बादल बनके, बादल से फटा जल हो करके ।
फिर नहर बनी नदियां गहरी, तेरे भिन्न प्रकार तू एक ही है ।।
चींटी से भी अणु-परमाणु बना , सब जीव जगत का रूप लिया ।
कहीं पर्वत वृक्ष विशाल बना , सौंदर्य तेरा , तू एक ही है ।।
यह दिव्य दिखाया है जिसने, वह है गुरुदेव की पूर्ण दया ।
तुकड्या कहे कोई न और दिखा, बस ! मैं और तू सब एक ही है ।।
– राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित ≈