डाॅ. मीना श्रीवास्तव

☆ पर्यटक की डायरी से – मनोवेधक मेघालय – भाग-८ ☆ डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆

(डेव्हिड स्कॉट ट्रेल (David Scott Trail))

प्रिय पाठकगण,

आपको हर बार की तरह आज भी विनम्र होकर कुमनो! (मेघालय की खास भाषामें नमस्कार, हॅलो!)

फी लॉन्ग कुमनो! (कैसे हैं आप?)

एक शक (पिछले भाग का और इस भाग का भी) 

यह सब तो ठीक ही है, यह मावफ्लांग का घना जंगल, यहाँ मेरी ही कोई शिकार करे तो? (यहाँ के जानवरों ने ये नियम थोड़े न पढ़े होंगे!) मित्रों, इसीलिये अपना साथ निभाने वाला, यहाँ के एक-एक पदचिन्ह को पहचानने वाला स्थानीय गाइड जरुरी है, उसका अनुसरण करते जाइये, सीधी      ( हो या ना हो) पगडण्डी मत छोड़िये, घनघोर जंगल में घुस कर संकट को आमंत्रित करने वाली जरुरत से ज्यादा हिम्मत मत कीजिये! आप बाघ की तलाश मत कीजिये, वह भी जानबूजकर आपको तलाशते हुए नहीं आएगा!!! ईमानदारी से बताती हूँ, ईश्वर की इस अनाहत निर्मिति ने हमें इतना अभिभूत कर दिया था कि, इस रमणीय जंगल में हमारे मन में एक बार भी ऐसे वैसे विचारों ने झाँकने की हिम्मत तक नहीं दिखाई|  मित्रों, यह जंगल अवश्य देखिए, चार एक घंटों की मोहलत रहने दीजिये! गाईड के भरोसे पर निश्चिन्त हो जाइये, उसके पास बंदूक वग़ैरा नहीं होती, मात्र होती है असीम श्रद्धा! आप अगर सच्चे प्रकृतिप्रेमी हैं, तो यह वनवैभव नहीं बल्कि, साक्षात् वनदेवता अपने विशाल हरित बाहुपाश में आपको बद्ध करने के लिए सिद्ध है!

डेव्हिड स्कॉट ट्रेल (David Scott Trail):

मेघालय का यह सबसे पुराना पादचारी रास्ता है| डेविड स्कॉट नामक ब्रिटिश प्रशासक ने भारत के उत्तर पूर्व भाग में करीबन ३० वर्ष (१८०२-१८३२) कार्य किया| उसने संपूर्ण खासी पर्वतश्रृंखला की पैदल यात्रा की| उस समय आसाम से सिल्हट(अभी का बांग्लादेश) का अंतर करीबन १०० किलोमीटर था! इस मार्ग पर घोडा-गाड़ियां ले जाने योग्य रास्तों की खोज की गई! इसे माल ढुलाई के लिए इस्तेमाल किया जाना था!यहीं है वह पूर्व खासी पर्वतश्रृंखलाओं में से जाने वाला ट्रेल, इसे डेविड स्कॉट का ही नाम दिया गया है! मूलतः १०० किलोमीटर का अति दुर्गम और कठिनतम मार्ग, परन्तु अब पर्यटकों की सुविधा के लिए छोटे छोटे हिस्सों में विभाजित किया गया है| समुद्र तल से ४८९२ फीट की ऊंचाई पर इस प्राकृतिक सौंदर्य से सजी पगडण्डी पर मार्गक्रमण करते हुए आपको नजर आएंगे छोटे-छोटे शांत गांव, प्राचीन पवित्र वनसम्पदा, विविध औषधी वनस्पतियां, ऑर्किड, मॅग्नोलिया जैसे फूलों की बहार, रबर के पेड़, ब्लॅकबेरी तथा गूसबेरी जैसे ताज़े फल, विस्तीर्ण हरे-भरे चरागाह के मैदान, छोटी-बड़ी जलधाराएँ, जलप्रपात, छोटी-बड़ी झीलें, एकाश्म, पथरीले पुल इत्यादी इत्यादी| कृत्रिमता का जरासा भी स्पर्श नहीं, यहीं है इस मार्ग का बिलकुल सच्चा प्राकृतिक लावण्य! इसका मुख्य कारण है यहाँ मानव का आवागमन बहुत ही कम है!

साहसी ट्रेकर्स यह संपूर्ण मार्ग (१०० किलोमीटर)४-५ दिनों में (गांव में रैनबसेरा करते हुए) चलते हुए पूरा करते हैं | परन्तु इससे अधिक व्यावहारिक और लोकप्रिय ऐसा एक दिन का (करीबन ४ से ६ घंटों में पूरा कर सकते हैं) १६ किलोमीटर का मार्ग उपलब्ध है| मावफ्लांग (Mawphlang) से लाड मावफ्लांग (Lad Mawphlang) ऐसा यह मार्ग है|

इस ट्रेल की शुरवात करने के लिए पहले शिलाँग से २५ किलोमीटर दूर मावफ्लांग गांव में पहुंचना जरुरी है, फिर इस गांव से यात्रा शुरू करते हुए मार्गक्रमण करते रहना है, जब तक लाड मावफ्लांग तक आप पहुँच न जाएँ! इस दीर्घ मार्गिका में क्या नहीं है यह पूछिए! प्रकृति का मुक्त संचार, हरीतिमा से परिपूर्ण पर्वत, खाइयां तो हैं ही, साथ ही जिसका हमें दर्शन अत्यंत दुर्लभ हो वह संपूर्ण तल एकदम स्वच्छ और अच्छे से नज़र आए ऐसा निर्मल जल, सब कुछ सिनेमास्कोपिक चलचित्र के समान! एक छोटी सरिता तरंगिणी अपने रुपहले जल की मचलती लहरों का नादस्वर लेकर लगातार हमारा साथ देते रहती है| इस राह में बीच बीच में उमियम नदी हमें दर्शन देती है| मित्रों, उमियम यानि “अश्रुपात की बाढ़”| इस नाम के उत्त्पत्ति की दिल को छू लेने वाली कहानी बताती हूँ! दो बहनें स्वर्ग से पृथ्वी पर आ रही थी, उस दौरान, बीच राह में एक बहन खो गई, और उसे खोजने वाली दूसरी बहन के अश्रुपात से इस उमियम नदी का निर्माण हुआ!

मेरी बेटी आरती, जमाई उज्ज्वल और पोती अनुभूती ने यह ट्रेक पूरा किया| आरती का अनुभव उसीके शब्दों में नीचे दे रही हूँ!

“मेघालय ट्रिप के अंतिम दिन हमने किया हुआ यह ट्रेक बहुत ही इंटरेस्टिंग था| हमारे गाईड (दालम) के साथ हमने सुबह ९ बजे इस १६ किलोमीटर लम्बे  प्रवास की शुरवात की| प्राकृतिक वातावरण के निकट समय बिताने का अनूठा अनुभव लेने के लिए हम बहुत ही  उत्सुक थे| हमारा गाइड बीच बीच में ताजी रसदार बेरी तोड़ कर दे रहा था| वहां के पानी के प्रवाह और सुंदर निर्झरों का जल अत्यंत स्वच्छ और शीतल था| सीधे प्रवाह और निर्झरों से यह जल पीना यह तो हम शहरवासियों के लिए एक अनोखा ही अनुभव था| चलने के तनाव और परिश्रम से मुक्ति पाने के लिए हम हर निर्झर में मुँह और हाथ पाँव धो रहे थे, उससे श्रमपरिहार तो हो ही रहा था, परन्तु हमारा मन भी प्रसन्न हो उठा था| ट्रेक के आरम्भ में ही एक कुत्ता हमारे साथ हो लिया और पहले ८ किलोमीटर तक लगातार वह हमारे साथ ही था! उसे हमसे अधिक हमारे पास मौजूद चिप्स और अन्य जंक फूड में ज्यादा रस है, ऐसा लग रहा था! चिप्स का पॅकेट खोलने की महज आवाज से वह चौकन्ना हो जाता था और जब तक कि हम उसे थोडासा हिस्सा नहीं देते थे, तबतक, हमें उससे छुटकारा नहीं मिलता था! (हमारे एक फोटो में वह भी दिखाई दे रहा है) दालम ने हमें एक मनोरंजक कथा बतलाई| प्राचीनकाल में मानव बहुत मजबूत शरीर का धनी होता था| एक ही आदमी एक बड़ा (पाषाण) एकाश्म आराम से उठा लेता था, परन्तु उसे उठाने के पहले वह इस एकाश्मश से सुन्दर संवाद साधता था और उसकी अनुमति भी लेता था| यद्यपि पाषाण उससे बात नहीं कर सकता था, फिर भी यह कहा जाता है कि, उस आदमी को उस पाषाण के स्पंदन सुनाई देते थे!मानव से ऐसी प्यार भरी गुहार सुनने के पश्चात् वह पाषाण नरम हो उठता था!  मित्रों, कहानी में ही क्यों न हो, प्रकृति से संवाद साधने वाले ये वन्य जीव!  हमें उनकी भावनाओं का आदर करना ही चाहिए, सच कहूं तो, प्रकृति का रक्षण करने के लिए अब प्रकृति से अभिन्न रूप से जुड़े मानव की ही नितांत आवश्यकता है!

हमने एक गांव में दोपहर का खाना मॅगी और नीम्बू पर निपटाया| कुछ स्कूली बच्चों से मिलने के बाद यह ज्ञात हुआ कि वे स्कूल पहुँचने के लिए इसी कठिन मार्ग पर रोज आना जाना करते हैं, चाहे मौसम कितना ही ख़राब क्यों न हो! कुछ स्थानीय स्त्रियां उनके शिशुओं को पीठ पर बांध कर जाते हुए इसी रास्ते पर मिलीं!(इन बहादुर बच्चों को और स्त्रियों को हमारा अर्थात साष्टांग कुमनो!)यहाँ कोई भी वाहन नहीं हैं, कोई भी नेटवर्क चलता नहीं है | एक बार आपने ट्रेक का आरम्भ किया तो फिर उसे समाप्त करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता! हमारा यह प्रकृति के संग किया सुन्दर प्रवास सायंकाल ४ बजे समाप्त हुआ| यह ट्रेक हमें जिंदगी भर याद रहेगा!हमारे गाईड दालम ने (DalamLynti Dympep, आयु केवल २२ वर्ष, मु.पो. मावफलांग, फोन क्र ८८३७०४०९५८) हमें अत्यंत उत्तम मार्गदर्शन किया और संपूर्ण प्रवास में हमारी सर्वतोपरी मदद की| हम दिल से उसके बहुत बहुत आभारी हैं! हमारी सलाह है कि, इस प्रवास में साथ निभाने के लिए गाईड लेना बिलकुल  जरुरी है! दालम जैसा गाइड हो तो कितने ही संकट क्यों न आएं, उन पर विजय पाना आसान होगा, इसमें कोई शक नहीं! नीचे के फोटो में तीन एकाश्म (मोनोलिथ्स) और उनके साथ नजर आ रहा है दालम!”

प्रिय पाठकगण, यह प्रवास अब शिलाँग तक आ चुका है! अगले मेघालय दर्शन के भाग में आपको मैं ले चलूंगी, शिलाँग, अर्थात मेघालय की राजधानी में और उसके आसपास के अद्भुत प्रवास के लिए!

तो अभी के लिए खुबलेई! (khublei) यानि खास खासी भाषा में धन्यवाद!)

टिप्पणी

*लेख में दी जानकारी लेखिका के अनुभव और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी पर आधारित है| यहाँ की तसवीरें व्यक्तिगत हैं!  

डेविड स्कॉट ट्रेल के कुछ व्हिडिओ यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं|    

©  डॉ. मीना श्रीवास्तव

ठाणे 

मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय

image_print
5 2 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments