(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ “कवितेच्या प्रदेशात” में उनकी एक प्यारी सी ग़ज़ल “……. आले चांदणे!”. सुश्री प्रभा जी की यह गजल चन्द्रमा की चाँदनी को जीवन दर्शन से जोड़ती हुई प्रतीत होती है। चन्द्रमा अमावस्या से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्रमा तक अपनी कलाओं और आकार से हमारे जीवन से सामंजस्य बनाये रखता है। सुश्री प्रभा जी ने इस सामंजस्य को अपनी ग़ज़ल में बेहतरीन तरीके से एक सूत्र में पिरोया है। इस अतिसुन्दर ग़ज़ल के लिए वे बधाई की पात्र हैं। उनकी लेखनी को सादर नमन ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 37 ☆
☆ गझल – ………. आले चांदणे! ☆
मध्यरात्री जन्मताना घेऊन आले चांदणे
गर्द काळ्या त्या तमाला भेदून आले चांदणे
जन्म जेथे जाहला त्या गावात माझा चांदवा
त्याच गावी आठवांचे ठेवून आले चांदणे
ती किशोरी धीट स्वप्ने गंधाळली तेजाळली
मी दुपारी तप्त सूर्या देवून आले चांदणे
नेहमी मी मोह फसवे हेटाळले या जीवनी
संशायाचे बीज का हो पेरून आले चांदणे
दूषणे सा-या जगाची सोसून मी तारांगणी
पौर्णिमेने ढाळलेले वेचून आले चांदणे
जीवनाचे गीत गाता आसावरी झंकारली
आर्ततेचे सूर सारे छेडून आले चांदणे
तारकांचा गाव आता देतो “प्रभा” आमंत्रणे
शुभ्र साध्या भावनांचे लेवून आले चांदणे
© प्रभा सोनवणे
“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011
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