सुश्री प्रभा सोनवणे

(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ  “कवितेच्या प्रदेशात” में  आपकी एक अत्यंत भावपूर्ण कविता “या अज्ञात प्रदेशात…. ।  मैं विस्मित हूँ और निःशब्द भी । एक अतिसंवेदनशील  एवं परिपक्व कवि की अंतरात्मा की  बेबाक प्रतिध्वनि है यह कविता। वह जब अपने रचनाशील संसार में आत्ममुग्ध हो कर  सृजन कार्य में  लिप्त रहता है, तो वास्तव में एक अज्ञात प्रदेश में ही रहता है।  वह वरिष्ठतम रचनाकारों की तुलना में  अपने अस्तित्व और सीमाओं को समझते हुए  अपने अस्तित्व के किसी  एक कोने को  थामने का प्रयास करता है जो पकड़ से छूटता जाता है। अप्रतिम रचना। इस अतिसुन्दर  एवं भावप्रवण  कविता के लिए  वे बधाई की पात्र हैं। उनकी लेखनी को सादर नमन ।  

मुझे पूर्ण विश्वास है  कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप  प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी  के उत्कृष्ट साहित्य का साप्ताहिक स्तम्भ  – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते  हैं।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 41 ☆

☆ या अज्ञात प्रदेशात…. ☆ 

 

एका  अज्ञात प्रदेशात वावरते  आहे..

वर्षानुवर्षे….. इथली भाषा मला  आवगत नाही….

मी साधू शकत नाही संवाद….

इथल्या कुणाशी च …..

मी माणूस  आहे म्हणून….

मन.. शरीर..भावना….

आणि कवी असल्यामुळे..

जरा जास्तच संवेदनशीलता….

षड्रिपू ही वास करताहेत…

माझ्या शरीरात….

शरीराला बहुधा म्हातारपणाचा शाप…

 

धसकायलाच होतं हल्ली…

दीर्घायुषी माणसं पाहून…

 

मी कुणी  कुडमुडी कवयित्री नाही,

निश्चितच….

पण बालकवी,साने गुरुजीं सारखी महान ही नाही….

मी लिहू ही शकत नाही त्यांच्या सारखं  आणि घेऊही शकत नाही निर्णय इतके धाडसी…..

 

खसखशी एवढे अस्तित्व संपूनही जात नाही चुटकी सरशी!

 

उगाचच लांबत रहातं आयुष्य…..

एक प्रचंड मोठं ओझं वागवीत….

चालत रहाते……

या अज्ञात प्रदेशात…

माझ्या अस्तित्वाच्या कुठल्या च खुणा सापडत नाहीत..

मी खणत रहाते….खणत रहाते खणतच रहाते…

 

एखाद्या शापित  आत्म्यासारखी…..

भू तलावरच्या या अज्ञात प्रदेशात…..

 

© प्रभा सोनवणे

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011

मोबाईल-९२७०७२९५०३,  email- [email protected]

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Prabha Sonawane

धन्यवाद हेमंतजी, बहुत बहुत शुक्रिया सर ?