श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण एवं संवेदनशील कविता “कर्जमाफी…”। यह अकेली चिड़िया जीवन के कटु सत्य को अकेली अनुभव करती है , साथ ही अपने बच्चों को स्वतंत्र आकाश में उड़ते देखकर उतनी ही प्रसन्न भी होती है। यह कविता हमें और हमारे अंतर्मन को झकझोर कर रख देती है। कल्पना करिये जब कृषक आत्महत्या कर लेता है और कृषक के पुत्र को देवघर में लिखी चिट्ठी मिलती है तो पुत्र पर क्या गुजरती होगी। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #38☆
☆ कर्जमाफी… ☆
बाबा तू जाण्याआधी
एका चिठ्ठीत लिहून
ठेवलं होतंस
मी देवाघरी जातोय म्हणून.. .
पण..
आम्हाला असं ..
वा-यावर सोडून
तो देव तरी तुला
त्याच्या घरात घेईल का…?
पण बाबा तू. . .
काळजी करू नकोस
त्या देवाने जरी तुला त्याच्या
घरात नाही घेतलं ना तरी
तू तुझ्या कष्टाने उभ्या केलेल्या
ह्या घरात तू
कधीही येऊ शकतोस
कारण .. . बाबा
आम्हाला कर्ज माफी नको होती
आम्हाला तू हवा होतास …!
आम्हाला तू हवा होतास …!
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