श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक अत्यंत भावप्रवण कविता “मला आज कळतंय ”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #44 ☆
☆ मला आज कळतंय ☆
मला आज कळतंय
की..
कामासाठी मी ..
गावापासून
किती लांब आलोय ते.. !
चार दिवस झालं
मी तहान भूक विसरून
गावच्या दिशेन चालतोय….!
पण गाव काय दिसंना..
आज पर्यंत इतकी वर्षे
गावापासून लांब पळणारा मी
आज गावातलं आणि..
माझ्यातलं अंतर
कमी होण्याची वाट पाहतोय. . !
© सुजित कदम
पुणे, महाराष्ट्र
मो.७२७६२८२६२६