सुश्री प्रभा सोनवणे
(आज प्रस्तुत है सुश्री प्रभा सोनवणे जी के साप्ताहिक स्तम्भ “कवितेच्या प्रदेशात” में एक भावप्रवण कविता “पंढरीची वारी”। यह कैसी विडम्बना है कि आज भक्त अपने हृदय में भक्तिभाव के रहते हुए भी प्रभु के दर्शन नहीं कर पा रहे हैं और प्रभु भी अपने भक्तों को दर्शन नहीं दे पा रहे हैं। आज सब के पैर महामारी के प्रकोप से बंधे हुए हैं । बरसों पुरानी परंपरा थम सी गई है मानों प्रभु कह रहे हों आज पंढरपुर बंद है, अपने घरों में ही मुझे स्मरण करो। मैं स्वयं तुम्हारे घर पर ही दर्शन दूंगा। एक अप्रतिम रचना । सुश्री प्रभा जी द्वारा रचित भक्तिभावपूर्ण रचना के लिए उनकी लेखनी को सादर नमन ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप निश्चित ही प्रत्येक बुधवार सुश्री प्रभा जी की रचना की प्रतीक्षा करते होंगे. आप प्रत्येक बुधवार को सुश्री प्रभा जी के उत्कृष्ट साहित्य को साप्ताहिक स्तम्भ – “कवितेच्या प्रदेशात” पढ़ सकते हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कवितेच्या प्रदेशात # 54 ☆
☆ पंढरीची वारी ☆
पंढरीच्या राया
नाही आता वारी
तूच ये सत्वरी
घरी माझ्या!
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केली ज्यांनी वारी
सदोदित पायी
घेई हृदयाशी
देवा त्यांना
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एकदाच गेले
वारी मध्ये तुझ्या
केली मनोमन
नित्य पूजा
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थकले पाऊल
अवेळीच माझे
नाही आले पुन्हा
तुझ्या भेटी
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आली महामारी
जगतात सा-या
पंढरीच्या फे-या
बंद आता
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तूच माझी भक्ती
तूच माझी शक्ती
देई बळ फक्त
जगण्याचे
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सांग आता भक्ता
येऊ नको दूर
रे पंढरपूर
बंद आता
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हे लाॅकडाऊन
सर्वांनी पाळावे
घरीच रहावे
सुरक्षित
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पांडुरंग ध्यानी
पांडुरंग मनी
झाले मी हो जनी
अंतर्बाह्य
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© प्रभा सोनवणे
“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पंधरा ऑगस्ट चौक, विश्वेश्वर बँकेसमोर, पुणे 411011
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