सुजित शिवाजी कदम
(सुजित शिवाजी कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजित जी की कलम का जादू ही तो है! आज प्रस्तुत है उनकी एक भावप्रवण कविता “आसरा…!”। आप प्रत्येक गुरुवार को श्री सुजित कदम जी की रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #52 ☆
☆ आसरा…! ☆
इवलासा जिव
फिरे गवोगाव
आस-याचा ठाव
घेत असे..
पावसाच्या आधी
बांधायला हवे
घरकुल नवे
पिल्लांसाठी..
पावसात हवे
घर टिकायला
नको वहायला
घरदार..
विचाराने मनी
दाटले काहूर
आसवांचा पूर
आटलेला..
पडक्या घराचा
शोधला आडोसा
घेतला कानोसा
पावसाचा..
बांधले घरटे
निर्जन घरात
सुखाची सोबत
होत असे..
घरट्यात आता
रोज किलबिल
सारे आलबेल
चाललेले..
© सुजित शिवाजी कदम
पुणे, महाराष्ट्र
मो.७२७६२८२६२६
दिनांक 27/3/2019
अतिसुंदर तरल भावना!!!
सुंदर रचना