श्री सुजित कदम
(श्री सुजित कदम जी की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं। इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं। मैं श्री सुजीत जी की अतिसंवेदनशील एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ। पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजीत जी की कलम का जादू ही तो है! निश्चित ही श्री सुजित जी इस सुंदर रचना के लिए भी बधाई के पात्र हैं। हमें भविष्य में उनकी ऐसी ही हृदयस्पर्शी कविताओं की अपेक्षा है। प्रस्तुत है श्री सुजित जी की अपनी ही शैली में हृदयस्पर्शी कविता “मी….!”। )
☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #13 ☆
☆ मी….! ☆
एकटाच रे नदीकाठी या वावरतो मी
प्रवाहात त्या माझे मी पण घालवतो मी
सोबत नाही तू तरीही जगतो जीवनी
तुझी कमी त्या नदीकिनारी आठवतो मी
हात घेऊनी हातात तुझा येईन म्हणतो
रित्याच हाती पुन्हा जीवना जागवतो मी
घेऊन येते नदी कोठूनी निर्मळ पाणी
गाळ मनीचा साफ करोनी लकाकतो मी.
एकांताची करतो सोबत पुन्हा नव्याने
कसे जगावे शांत प्रवाही सावरतो मी .
©सुजित कदम
मो.7276282626