सुश्री स्वप्ना अमृतकर
(सुप्रसिद्ध युवा कवियित्रि सुश्री स्वप्ना अमृतकर जी का अपना काव्य संसार है । आपकी कई कवितायें विभिन्न मंचों पर पुरस्कृत हो चुकी हैं। आप कविता की विभिन्न विधाओं में दक्ष हैं और साथ ही हायकू शैली की सशक्त हस्ताक्षर हैं। हमने आपका “साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती” शीर्षक से प्रारम्भ
किया है। आज प्रस्तुत है सुश्री स्वप्ना जी की कविता “रेशमी आठवणीं ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – स्वप्ना अमृतकर यांची कविता अभिव्यक्ती # -4 ☆
☆ रेशमी आठवणीं ☆
अलवारपणे वार्र्याची झुळूक येता
गुलाबी गालांस मोरपंखी हर्ष होता.. १
गोड गुपीत दडलेले मनाच्या कवाड्यांत
रेशमी आठवणींची उदी बाहेर पडे सुवांसात..२
धुंडता सहवास तुझा सुरुच फेरफटका
शहारले तन तिभे मनाला नाही सुटका..३
मेघधुनीतुन कर्णाला ऐकू येते तुझी शीळ
तेव्हा मेघमल्हार मज सुचवी कवितेची ओळ….४
© स्वप्ना अमृतकर , पुणे