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(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)
श्री संजय भारद्वाज, अध्यक्ष हिंदी आंदोलन परिवार
हिंदी आंदोलन परिवार, पुणे का वार्षिक हिंदी उत्सव सम्पन्न
भारतीय भाषाएँ बचेंगी तो ही संस्कृति और जीवनशैली बचेंगी। जीवन के हर क्षेत्र में भाषा का निरंतर प्रयोग करना ही उसे जीवित और उपयोगी रखता है। मौलिक विचार और अनुसंधान केवल अपनी भाषा में ही हो सकता है। गत 27 वर्ष से हिंदी और भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में हिन्दी आंदोलन परिवार सक्रिय है। बिना किसी अनुदान के अपने सदस्यों के दम पर खड़ा यह संगठन, इस क्षेत्र के सर्वाधिक सक्रिय संगठनों में से एक है। आप हैं तो हिंआंप है।
उपरोक्त विचार हिंदी आंदोलन परिवार के संस्थापक, अध्यक्ष श्री संजय भारद्वाज के हैं। संस्था के वार्षिक हिंदी उत्सव और सम्मान समारोह में उपस्थित जनो को वे कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में संबोधित कर रहे थे।
हिंआप के वार्षिक हिंदी उत्सव में हिन्दी के दो तपस्वी प्रचारकों श्री जयराम गंगाधर फगरे एवं श्री तानाजी काशीनाथ सूर्यवंशी को हिंदीभूषण सम्मान से अलंकृत किया गया। साहित्यकार ऋता सिंह, प्रस्तर कला की मर्मज्ञ अनिता दुबे को हिन्दीश्री सम्मान प्रदान किया गया। हिन्दी रंगमंच के प्रसार के लिए श्री युवराज शाह, श्री अभिजीत चौधरी एवं श्रीमती धनश्री हेबलीकर को हिंदीश्री सम्मान प्रदान किया गया। सम्मान में स्मृतिचिह्न, शॉल, नारियल एवं तुलसी का पौधा प्रदान किया गया।
अपने उद्बोधन में श्री जयराम फगरे ने कहा कि गांधीजी ने अपने पुत्र को हिंदी प्रचार के लिए दक्षिण भारत भेजकर परिक्रमा आरम्भ की थी। अब प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया भर में हिंदी को पहुँचाकर उस परिक्रमा को पूरा किया है।
श्री तानाजी सूर्यवंशी ने अपनी यात्रा में स्व. गो.म. दाभोलकर की प्रेरणा को याद किया। अपने गुरुतुल्य मार्गदर्शक फगरे जी की उपस्थिति में सम्मान प्राप्त होने को उपलब्धि बताया। अपने सहकर्मियों के सहयोग को आठ संस्थाएँ संचालित कर पाने की नींव बताया। उन्होंने हिंदी आंदोलन परिवार की संस्थापक भारद्वाज दंपति के कार्य को आदर्श बताया। संजय भारद्वाज के साहित्यिक अवदान की विशेष चर्चा की।
श्रीमती ऋता सिंह ने उनके योगदान को मान्यता देने के लिए हिंआंप का धन्यवाद किया। अपनी साहित्यिक यात्रा में हिंआंप की प्रेरणा और मार्गदर्शन को उन्होंने मील का पत्थर बताया। श्रीमती अनिता दुबे ने कहा कि प्रस्तर कला के लिए प्रशंसा तो मिली पर पहला पुरस्कार आज हिंआंप से मिला। उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी यात्रा को उपहास से उल्लास की यात्रा का नाम दिया।
श्री युवराज शाह ने कहा कि उनका सारा जीवन विभिन्न आंदोलनों में बीता है। रंगमंच भी इसी आंदोलनधर्मिता की एक कड़ी है। श्री अभिजीत चौधरी ने स्वतंत्र थियेटर द्वारा पंद्रह वर्ष पूर्व हिन्दी नाटक आरम्भ करने की चुनौतियाँ का उल्लेख किया। हिन्दीश्री का श्रेय आपने थियेटर की सफलता को दिया। श्रीमती धनश्री हेबलीकर ने स्वतंत्र थियेटर के विकास में हिंआंप और भारद्वाज दंपति के सहयोग का उल्लेख किया। उन्होंने सामुदायिक थियेटर पर भी प्रकाश डाला। अपने वक्तव्य में शारदा स्तवन भी प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की प्रस्तावना एवं स्वागत वक्तव्य सुधा भारद्वाज ने किया। कोविडकाल और हिंआंप पर स्वरांगी साने ने संस्था की भूमिका रखी। अतिथियों का परिचय अपर्णा कडसकर, डॉ.लतिका जाधव, डॉ. मंजु चोपड़ा ने दिया। आभार प्रदर्शन अलका अग्रवाल ने किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में कोविडकाल में दिवंगत हुए संस्था के सदस्यों एवं हितैषियों को श्रद्धांजलि दी गई। तत्पश्चात क्षितिज द्वारा प्रस्तुत श्री संजय भारद्वाज द्वारा लिखित समूहनाटक ‘जल है तो कल है’ का मंचन किया गया। विश्वभर में घट रहे भूजल की समस्या और संभावित समाधान पर नुक्कड़ नाटक शैली में इसे प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसका निर्देशन श्री अभिजीत चौधरी एवं रचनात्मक निर्देशन श्रीमती धनश्री हेबलीकर ने किया है। सहयोग श्री युवराज शाह का है। मंचन के बाद कलाकारों को सम्मानित किया गया।
हिंदी उत्सव का संचालन समीक्षा तैलंग ने किया। सुशील तिवारी, अरविंद तिवारी, वीनु जमुआर, माया मीरपुरी, नंदिनी नारायण, आशु गुप्ता, कृतिका, जाह्नवी, साराक्षी ने विशेष सहयोग किया। कार्यक्रम में उल्लेखनीय संख्या में साहित्यकार और भाषा प्रेमी उपस्थित थे। प्रीतिभोज के बाद आयोजन ने विराम लिया।
साभार – क्षितिज ब्यूरो
हार्दिक अभिनंदन हिंदी आंदोलन परिवार ! जय हो
सफल सार्थक आयोजन। सराहनीय कार्य , प्रशंसनीय प्रस्तुति।
सफल, सुंदर व सार्थक आयोजन के लिए हार्दिक बधाई।