☆ सूचनाएँ/Information ☆
(साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समाचार)
☆ डॉ कुँवर प्रेमिल सम्मानित – अभिनंदन ☆ प्रस्तुति – श्री जयप्रकाश पाण्डेय ☆
संस्कारधानी जबलपुर के विजयनगर में अग्रसेन मंडपम में योगाचार्य रमाकांत पलहा जी ने डा कुंवर प्रेमिल जी का सम्मान किया। वहीं प्रेमिल जी ने अब तक प्रकाशित एक दर्जन पुस्तकों में से कुछेक योगा क्लास में वितरित कर यह संदेश दिया कि योगा से तन की शुद्धि होती है वहीं अच्छे साहित्य से मन की। किताबें पढ़ने की कम होती रुचि को बरकरार रखने के लिए साहित्य को अपना सच्चा मित्र बनाएं।
कार्यक्रम के उपरांत ‘जज्बा’ लघुकथा का पाठ कर, लघुकथाओं के प्रति सम्मोहन बनाए रखने के लिए लघुकथा की पुस्तकें भी वितरण की गई।
संदर्भवश डॉ प्रेमिल द्वारा पठित लघुकथा आपके लिए सादर प्रस्तुत है –
☆ लघुकथा – जज्बा ☆
(16 दिसंबर से पहले)
शहर के पार्क में कुछ महिलाएं, कुछ युवतियां सुबह-सुबह इकट्ठे होकर योगाभ्यास किया करती।
सब कुछ ठीक-ठाक होता पर सिंह आसन में जीभ बाहर निकाल कर हुंकार भरने के प्रयत्न में कमजोर पड़ जाती। मैं अक्सर सोचता कि सिंह आसन में यह सब शेरनी जैसा दमखम कहां से लाएंगी भला। मुंह से करारी आवाज़ निकलेगी तब ना। महिलाएं पुरुषों जैसा जज्बा कहां से लाएंगी आखिर।
(16 दिसंबर के बाद)
कुछ दिनों बाहर रहने के बाद पुनः शहर लौटा तब तक दिल्ली में निर्भया के साथ वह भीषण वहशी कांड हो चुका था। उस रूह कंपकंपाने वाली दास्तान से पूरा देश उबल रहा था। महिलाओं ने एकजुट होकर अपनी ताकत दिखा दी थी।
मैं फिर एक दिन इस पार्क में था। महिलाओं का सिंह आसन चल रहा था। अपनी लंबी जीभ निकाले यह वामा दल शेरनियों में तब्दील हो चुका था। अत्याचारियों को फ़ाड़कर खा जाने वाला जज्बा उन में आ चुका था। मानो, किसी ने इन्हें छेड़ने की हिमाकत की तो यह सब चीर फाड़ कर रख देंगीं। निर्भया के बलिदान ने इन्हें इतना निर्भय तो कर ही दिया था।
– और तब मेरा हाथ इन्हें सलाम करने की मुद्रा में अपने आप ऊपर उठ गया था।
– डा कुंवर प्रेमिल
प्रस्तुति – श्री जय प्रकाश पाण्डेय, जबलपुर
ई- अभिव्यक्ति परिवार की ओर से डा कुंवर प्रेमिल जी को इस विशिष्ट सम्मान के लिए हार्दिक बधाई
≈ श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈