श्री प्रतुल श्रीवास्तव
☆ आलेख – वृद्धाश्रम में घर से ज्यादा सेवा और सुख ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆
☆ अपनों से दूर 93 वृद्धों का परिवार ☆
आज सामाजिक सोच और परिस्थितियां ऐसी हो गईं हैं कि अधिकांश लोगों को अपने घर के बुजुर्ग बोझ लगने लगे हैं। ऐसे समय वृद्धाश्रमों की आवश्यकता और उपयोगिता बढ़ गई है। वृद्धाश्रमों में वृद्धों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। मैंने अपनी पारिवारिक मित्र श्रीमती भारती साहा से अक्सर उनके वृद्धाश्रम जाने और सुख सुविधा से रहते प्रसन्नचित्त वृद्धों के बारे में सुना। मेरा मन भी वृद्धाश्रम जाकर वहां की व्यवस्था देखने और खुशहाल वृद्धजनों से मिलने का हो गया और बीते रविवार मैं वहां पहुंच गया। भारती जी के साथ ही मेरी पत्नी श्रीमती विमला श्रीवास्तव भी मेरे साथ थीं। जिज्ञासा यह जानने की थी की एक ठिकाने पर इतने सारे बुजुर्गों की इतनी अच्छी देखरेख कैसे होती है कि वे सभी खुश और संतुष्ट रहते हैं।
नेताजी सुभाषचंद बोस मेडिकल कालेज, जबलपुर के पास स्थित निराश्रित वृद्धाश्रम में हम लोग संध्या 5 बजे के आसपास पहुंचे। वृद्धाश्रम के अहाते का द्वार खोलकर जैसे ही हमने अंदर प्रवेश किया तो लगा जैसे हम शहर के कोलाहल, आपाधापी, राजनीति, स्वार्थ और आपसी खींचतान की दुनिया से निकलकर एक ऐसी दुनिया में पहुंच गए हैं जहां सिर्फ अपनापन है, शांति है, सद्भाव है। वृद्धाश्रम के मुख्य प्रवेश द्वार के अंदर ही दाहनी ओर एक मंदिर बना है यहां अनेक वृद्ध पुरुष/महिलाएं बैठे हुए शांतचित्त से ईश्वर की आराधना में लीन थे। आश्रम के अत्यंत साफ सुथरे अहाते के बड़े छायादार वृक्ष और बगीचे में लगे सुंदर पौधे वहां के वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर रहे थे। आश्रमवासी अनेक वृद्ध नर/नारी अहाते में रखी बैंचों और कुर्सियों में बैठे या तो आपस में वार्तालाप कर रहे थे अथवा आत्म चिंतन में लीन थे, कुछ लोग चहल कदमी करते हुए भी नजर आए। लगा जैसे इन वृद्धों को यहां मिले सेवा, सुख और संतोष ने उनके तमाम दुखों को हर लिया है।
भारतीय रेडक्रास सोसायटी द्वारा 2 अप्रैल 1988 में स्थापित एवम संचालित इस निराश्रित वृद्धाश्रम की अधीक्षिका श्रीमती रजनीबाला सोहल हैं। उन्होंने हमारा अभिवादन स्वीकारते हुए हमें सम्मान से बैठाया। अत्यधिक सुशिक्षित, सुसंस्कृत, विनम्र रजनीबाला जी ने वार्ता के दौरान बताया कि वृद्धाश्रम के पदेन अध्यक्ष जिला कलेक्टर एवम सचिव श्री आशीष दीक्षित हैं। नगर के विभन्न क्षेत्रों में सक्रिय समाज सेवा से जुड़े 24 व्यक्ति यहां के सम्माननीय सदस्य हैं। ये सभी पूरी चिंता और जिम्मेदारी के साथ समय समय पर वृद्धाश्रम पहुंचकर यहां की व्यवस्थाओं व आवश्यकताओं पर नजर रखते हैं और उन्हें बिना विलंब पूरा करने तत्पर रहते हैं।
एक प्रश्न पर रजनीबाला जी ने बताया कि 96 लोगों के निवास की क्षमता वाले इस वृद्धाश्रम में वर्तमान में 93 वृद्ध हैं जिनमें 36 पुरुष और 57 महिलाएं हैं। यहां रह रहीं रामकली शर्मा सर्वाधिक 92 वर्ष की हैं। शांति साहू आश्रम में विगत 21 वर्षों से रह रही हैं। यहां के पुरुष निवासियों में कुछ सर्वाधिक 75 वर्ष के हैं। रजनी जी के अनुसार वृद्धाश्रम में धर्म जाति जैसा कोई बंधन नहीं है। व्यक्ति जबलपुर का निवासी हो, 60 वर्ष की उम्र हो और निराश्रित व निशक्त हो तभी उसे यहां रहने की पात्रता प्राप्त होती है। यहां रहने का कोई शुल्क नहीं किंतु पेंशन प्राप्त बुजुर्गों से कुछ सहयोग राशि ली जाती है। वृद्धाश्रम में साफ सुंदर विशाल भोजन कक्ष है जहां भोजन करने टेबिल कुर्सी लगी हैं। कार्यक्रमों आदि के लिए एक बड़ा हाल भी है।आश्रम की व्यवस्थाओं हेतु कार्यालय में 3, वृद्धों की देखरेख के लिए 4, भोजन बनाने 3, भोजन कक्ष की सफाई हेतु 1, स्वीपर 1, चौकीदार 1 और 1 एम्बुलेंस चालक है।
आश्रम का रखरखाव एवम खर्च सामाजिक न्याय विभाग से प्राप्त अनुदान से होता है। यहां निवासरत लोगों को भोजन, इलाज, दवा, वस्त्र, मनोरंजन सभी प्राप्त होता है। नगर के समाज सेवी तथा सहृदय लोग भी वृद्धाश्रम में सेवा सहयोग हेतु तत्पर रहते हैं। अनेक लोग अपने परिजनों की स्मृति में आश्रमवासियों को भोजन, चाय नाश्ता अथवा अन्य वस्तुओं का वितरण करते रहते हैं। संपन्न लोगों से आश्रम के लिए उपयोगी वस्तुएं भी प्राप्त होती रहती हैं। समय समय पर आश्रम में भी मनोरंजक, ज्ञानवर्धक कार्यक्रम होते हैं। आश्रमवासियों को नगर में आयोजित विशिष्ट समारोहों में भी ले जाया जाता है। यहां रहने वाले स्वेच्छा से जब तक चाहें अथवा अंत समय तक रह सकते हैं। रजनी जी ने बताया कि डॉ. मुकेश अग्रवाल यहां के स्थाई चिकित्सक हैं जो हफ्ते में दो दिन स्वास्थ्य परीक्षण हेतु आते हैं। एक प्रश्न पर अधीक्षिका जी ने बताया कि समाज से आए लोगों से मिलकर आश्रमवासी प्रसन्न होते हैं और उनसे खुलकर बात करते हैं। यहां रहने वाले 70 प्रतिशत लोगों से मिलने उनके रिश्तेदार/परिचित आते रहते हैं किंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनसे मिलने कभी कोई नहीं आया। आपको इनके बीच कैसा लगता है पूछने पर 13 वर्षों से यहां कार्यरत रजनी जी ने कहा मैं तो सभी बुजुर्गों में अपने माता पिता के दर्शन करती हूं। उनके दुखी, परेशान अथवा बीमार होने पर उनके पास आत्मीयता से बैठकर बातें कर उन्हें राहत पहुंचाने का प्रयास करती हूं। उन्होंने बताया की जबलपुर में 4/5 वृद्धाश्रम और भी हैं। रेडक्रास द्वारा मध्यप्रदेश में 81 वृद्धाश्रम संचालित किए जा रहे हैं। देशभर में बढ़ते वृद्धाश्रमों की संख्या वृद्धों की चिंताजनक स्थिति प्रगट करने पर्याप्त हैं। आवश्कता है वृद्धों की सेवा सुरक्षा के लिए परिवारों के साथ ही सम्पूर्ण समाज को जाग्रत करने और शिक्षा जगत के माध्यम से भी बच्चों में बुजुर्गों के प्रति आदर व प्रेम भाव भरने की। अपने परिजनों की उपेक्षा से दुखी किंतु वृद्धाश्रम की व्यवस्था और अधीक्षिका रजनी जी के स्नेह से तृप्त बुजुर्गों को देखकर हम सुख और दुख के मिश्रित भाव लिए वृद्धाश्रम से बाहर निकलते हुए सोच रहे थे कि क्या फिर ऐसा समय आएगा जब हर वृद्ध सुख शांति से अपने ही घर में रहेगा। वृद्धाश्रम बंद हो जाएंगे।
© प्रतुल श्रीवास्तव
जबलपुर, मध्यप्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈