श्री सदानंद आंबेकर 

 

 

 

 

 

(  श्री सदानंद आंबेकर जी की हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में विशेष अभिरुचि है। गायत्री तीर्थ  शांतिकुंज, हरिद्वार के निर्मल गंगा जन अभियान के अंतर्गत गंगा स्वच्छता जन-जागरण हेतु गंगा तट पर 2013 से  निरंतर प्रवास श्री सदानंद आंबेकर  जी  द्वारा रचित यह समसामयिक लघुकथा ‘अगले बरस तू जल्दी आ’ हमें वर्तमान जीवन के कटु सत्य से रूबरू कराती है । बंधुवर  श्री सदानंद जी  की यह लघुकथा पढ़िए और स्वयं तय करिये। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्री सदानंद जी की लेखनी को नमन ।

 लघुकथा  – अगले बरस तू जल्दी आ

पवित्र कैलाश  पर्वत की श्वेत चोटी पर सविता देवता की प्रथम रश्मियों के आगमन के साथ ही भगवान शिव  गुफा से बाहर आये तो देखा गणाधीश  विनायक का पृथ्वी से आगमन हो चुका है।

भोले नाथ से प्रसन्न वदन से पूछा – कहो वत्स इस बार कैसी रही पृथ्वी की यात्रा ?

पिता का चरण वंदन कर गणनाथ ने शून्य  में देखते हुये अनमने भाव से कहा – ठीक ही रही पिताश्री।

महादेव ने कुछ चिंता से पूछा – क्या बात है पुत्र कुछ अप्रसन्न दिख रहे हो? क्या इस बार भारत भू पर तुम्हारी उचित उपासना नहीं हुई?

मंगलमूर्ति ने नीची दृष्टि से ही उत्तर दिया – उपासना तो सदैव की भांति हुई किंतु इस बार उस पुण्यभूमि भारतवर्ष  एवं शेष  क्षेत्रों में स्थिति को देखकर मुझे मानव पर बहुत दया आई।

भगवान गंगाधर ने पूछा – अरे, ऐसा क्या हो गया ? सब कुशल तो है ? किसी देवता ने कोई श्राप आदि तो नहीं दिया ?

गणनाथ ने बहुत धीमे स्वर कहा – ऐसा तो लगता नहीं है, पर भारत माता के सब पुत्र बहुत कष्ट में हैं। इन दिनों पूरी धरती पर एक भयावह बीमारी चल रही है जिसके कारण भगवान ब्रह्मा की बनाई धरती पर हाहाकार मचा हुआ है। इस बार भारतवर्ष  में मेरी स्थापना भी बहुत कम स्थानों पर हुई है। इसके अतिरिक्त पूरे देश  में मुझे जलप्रलय की सी स्थिति दिखाई दी, चहुंओर असुरक्षा, महिला उत्पीडन, हत्या की अनेक घटनायें, बड़े बड़े  देश एक दूसरे से युद्ध को उद्यत दिख रहे थे। उस बीमारी के संकट के कारण गरीब मनुष्य  की तो छोड़ें पूरे संसार की अर्थव्यवस्था संकट में आ गई है। अनेकानेक लोगों के सेवा और व्यवसाय बंद हो गये हैं। कुल मिलाकर बहुत ही चिंताजनक स्थिति निर्मित दिखाई दी और जब कल अंतिम दिन बिदाई के समय भक्तों ने कहा – अगले बरस तू जल्दी आ तो मेरा मन भर आया कि ऐसी विपरीत स्थिति में मैं कैसे फिर जाऊंगा !!!!  पिताश्री ये ऐसी स्थिति क्यों हुई है ?

यह सुनकर भोलेनाथ ने गंभीर होकर उत्तर दिया – तो यह बात है , पुत्र, यह सब मानव का ही किया हुआ है, अनियमित-असंयमित जीवन, प्रकृति का दोहन, अति लालसा के कारण अपराध, इन सबकी परिणति इस रूप में है। इसके लिये मनुष्य  को स्वयं ही प्रयास करने होंगे, अपना दृष्टिकोण बदलना होगा तो हम भी उनका साथ देंगे, अन्यथा मेरी बनाई हुई व्यवस्था के अनुसार मनुष्य  को महाविनाश  के लिये तैयार रहना होगा- – –
कहते कहते भगवान शिव  की मुख मुद्रा भी गंभीर होती चली गई।   .  .  .  .  .  .  .  .  .

©  सदानंद आंबेकर

शान्ति कुञ्ज, हरिद्वार (उत्तराखंड)

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
image_print
3.7 3 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

2 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Shyam Khaparde

अच्छी रचना

Srushti Kelapure

Wow!! Bahut hi achha likha hai