श्री सदानंद आंबेकर
(श्री सदानंद आंबेकर जी की हिन्दी एवं मराठी साहित्य लेखन में विशेष अभिरुचि है। उनके ही शब्दों में – “1982 में भारतीय स्टेट बैंक में सेवारम्भ, 2011 से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेकर अखिल विश्व गायत्री परिवार में स्वयंसेवक के रूप में 2022 तक सतत कार्य। माँ गंगा एवं हिमालय से असीम प्रेम के कारण 2011 से गंगा की गोद एवं हिमालय की छाया में शांतिकुंज आश्रम हरिद्वार में निवास। यहाँ आने का उद्देश्य आध्यात्मिक उपलब्धि, समाजसेवा या सिद्धि पाना नहीं वरन कुछ ‘ मन का और हट कर ‘ करना रहा। जनवरी 2022 में शांतिकुंज में अपना संकल्पित कार्यकाल पूर्ण कर गृह नगर भोपाल वापसी एवं वर्तमान में वहीं निवास।” आज प्रस्तुत है श्री सदानंद जी की एक अप्रतिम लघुकथा “मुस्कान”। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्री सदानंद जी की लेखनी को नमन।)
☆ कथा कहानी ☆ लघुकथा – मुस्कान ☆ श्री सदानंद आंबेकर ☆
(यह किसी भी संवेदनशील लेखक की मनोवैज्ञानिक दृष्टि ही हो सकती है। इस लघुकथा के संदर्भ उनके ही शब्दों में – “दो तीन पूर्व मैंने इस स्थिति को डाकघर में देखा है, कथा हेतु संवाद बदले गये हैं ।”)
बैंक में अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हुये अमोल पंक्ति में लगा हुआ था। लगभग बारह बजे का समय था तो बैंक में ग्राहकों की भीड थी और उसके आगे भी काफी लोग लगे हुये थे।
समय व्यतीत करने के लिये वह अपने स्थान से आसपास देख रहा था, बार बार उसका ध्यान उसके वाले काउंटर पर काम कर रहे कर्मचारी की ओर जा रहा था। लगभग चौबीस पच्चीस की आयु वाला युवा जिस गति से कंप्यूटर चला रहा था उसी गति से तेज स्वर में सामने खडे लोगों से भी उलझने जैसी बातें भी कर रहा था। झल्लाहट, हल्का क्रोध, रोष उसकी बातों से प्रकट हो रहा था। अगले ग्राहक ने सौ के नोटों की बहुत सी गड्डियां काउंटर पर रखीं, उसने आंखें तरेर कर उसे देखा और फटाफट नोट मशीन में रख दिये। जमा पर्ची की रसीद पर जोर से मुहर लगाई और पटकते हुये काउंटर की खिडकी पर रखी। अगले ग्राहक को जोर से बोला- लाइये आपका क्या काम है, यूं ही देखते मत रहिये।
उसके इस व्यवहार को देख कर पंक्ति में खडे लोग अनेक प्रकार की टिप्पणियां कर रहे थे। अचानक उसका कोई फोन आया जिसे सुनते हुये भी उसने सामने वाले को आवेश में ही कुछ उत्तर दिया। तनाव उसके मुख पर स्पष्ट देखा जा सकता था।
उसी समय पीछे से उसकी ही आयु का अन्य युवक आया और झुक कर उससे धीमे स्वर में कुछ बात की जिसे सुनकर उसके चेहरे पर एक निर्मल मुस्कुराहट आई जिसने उसका रूप ही बदल गया था।
पांच मिनट बाद अमोल की बारी आई, उस कर्मचारी को देखते हुये उसने कहा साहब आप मुस्कुराते हुये बहुत स्मार्ट लगते हैं। यह सुनकर उसके मुख पर अनेक भाव आकर चले गये और तत्काल ही उसने कहा क्या मतलब, आप अपना काम कहिये।
अमोल ने भी मुस्कुराते हुये कहा मुझे अपना एटीएम कार्ड नया बनवाना है मैं सभी आवश्यक कागज लाया हूं, यह कह कर उसे आवेदन सौंप दिया। कर्मचारी कागज देखने लगा तभी अमोल फिर कहा सर आपकी स्माइल अच्छी लगती है। यह सुनकर उसने दृष्टि उठाई और पुनः वैसे ही मुस्कुराते हुये कहा सर इतनी भीड में कहां मुस्कुरा सकते हैं। झट अमोल ने कहा देखिये अभी तो मुस्कुराये कि नहीं, इसपर उसकी मुस्कुराहट और गहरी हो गई और उसने कहा आपका कार्ड परसों तक घर आ जायेगा। धन्यवाद, और कुछ काम हो तो कहिये।
पंक्ति से निकलते हुये अमोल ने देखा पीछे खडे सारे ग्राहकों के चेहरे पर भी एक मीठी-सी मुस्कान थी।
© सदानंद आंबेकर
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