सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता – “दर्द” 📚 सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

🏵️

समय पखेरू

अपने महाकार डैनों तले

उड़ा जा रहा है

पसरी हुई पृथ्वी से

अनासक्त

अनथक

अनवरत

यात्रा पथ अनंत !!

*

कहीं तो अवश है वह भी

पीछे मुड़ नहीं सकता

संभवतः शापित

*

लोग उसकी कमी के

स्मारक बनाते हैं

यादें,तस्वीरें, मूर्तियां ,किताब

दे देते हैं

कई कई नाम

अपनी पसंद के!!

*

काश !समय

दो घड़ी ठहरने की कला

जान पाता

सृष्टि का दर्द

इतना गहरा न होता !!

🏵️

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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