सुश्री इन्दिरा किसलय

☆ कविता ☆ “बूंदें…” ☆ सुश्री इन्दिरा किसलय ☆

○○○

बूंदें बनकर बड़े प्यार से

प्यासी  धरती    छुएं   ।

समेट लें आँचल में अपने

सौंधी सौंधी    खुशबुएं ।। 

○○○

वर्षा रूके तो गुल बूटों की

नोंकों    पर     लटकें  ।

सर्द हवा के झोंकों   से

सिहरें  काँपें और  चुएं ।।

           ○○○

बूंदों की सुइयों में कमसिन

सपने  पिरो   पिरोकर  ।

ऐसे मौसम के लिए दो घड़ी

रूमानी कपड़े     सिएं ।।

○○○

शीशमहल हीरे कभी कंचे

कभी पानी के मणिदीप ।

धरकर नाना रूप सनम

बन जाएं     बहुरूपिए ।।

○○○

बिखेर दें सीलापन इतना

जीवन के पन्नों     पर ।

जलते सूखे जज़्बातों को

मिल जाएं      हाशिए  ।।

♡♡♡♡♡

©  सुश्री इंदिरा किसलय 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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